"संपूर्ण देश में नमो... नमो हो रहा है और तुम गायब हो... भला ऐसी होती है पत्रकारिता... तुम जैसे जिम्मेदार कलमवीर से ये उम्मीद नहीं थी... " संपादक ने रोहरानंद को घूरते हुए कहा.
-" ओह, सर ! सौरी."
-"सौरी, कहने से काम नहीं चलेगा . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का सात दिवसीय जन्मदिवस मनाया जा रहा है और तुम आराम फरमा रहे हो, कुछ तो अपने पेशे की प्रति कर्तव्य निर्वहन करो. ऐसा समय 365 दिन में आता है... हमारे प्रसार, विज्ञापन सब डैमेज हो रहे हैं ." संपादक ने व्हील चेयर पर बैठे बैठे तल्ख स्वर में कहा.
संपादक जी ने आगे कहा, " परेशान हो, ठीक है, मगर तुम्हारा पत्रकारिता धर्म क्या है? आज से ही अपना काम स्फूर्ति से कर के दिखाओ आज ही नमो का साक्षात्कार चाहिए वरना तुम्हारी छुट्टी."
- "यस सर." कहता हुआ रोहरानंद घबराया नमो को ढूंढने सड़क पर था . माहौल अजीब सा था, कुछ लोग खुशियां मना रहे थे, कुछ लोग कुछ लोग गिरती अर्थव्यवस्था से गमजदा थे. इस सब के बीच चहुं और नारे गूंज रहे हैं, बैनर, पोस्टर लगे हुए है. चौक चौराहे पर जन्मोत्सव अपने शबाब पर है. रोहरानंद सड़क पर इधर-उधर नमो को देखता, निहारता, ढूंढता आगे बढ़ा .हाथ में कलम और नोटबुक तो थी ही.
एक युवती कुछ बच्चों के साथ चली जा रही थी रोहरानंद ने उसे सम्मान के साथ रुकने का इशारा किया और उससे कहा, - "मैं नमो को ढूंढ रहा हूं, क्या मुझे नमो का पता बता सकती हैं बड़ी कृपा होगी."
युवती मादक भाव लिए मुस्कुराई बोली,-" नमो से मिलना कौन सी बड़ी बात है.मैं तुम्हें अभी नमो से मिला सकती हूं ."