नोएडा की एक सोसाइटी में 4 सहेलियों को नियमित रूप से सुबहशाम देखा जाता था जिन्हें देख कर वहां के निवासी ‘चार सहेलियां खड़ीखड़ी...’ गीत जरूर गुनगुनाते थे. सर्दीगरमी, धूपकुहरा हो लेकिन वे आती जरूर थीं, बारिश में भी छाता ले कर अपना दोस्ताना निभाती थीं. वे कोई बचपन, स्कूल, कालेज या औफिस की दोस्त नहीं थीं. इसी सोसाइटी में उन की मित्रता ने जन्म लिया था. चारों सुबहशाम सैर करने की शौकीन थीं. इसी शौक ने उन्हें दोस्ती के मजबूत बंधन में बांध दिया था. उम्र के मामले में भी  समान थीं लगभग 50 और 55 के बीच की. चारों युवा बच्चों की मां थीं.

पहली सहेली राधिका थी जो अपने सासससुर और नोएडा में ही बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत अपने युवा बेटे के साथ रहती थी. उस के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

दूसरी थी शाहाना जो अपने पति और छोटी बेटी सारा के साथ रहती थी. बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी. तीसरी थी गुरबीर कौर जो अपने पति, सास और बड़े बेटे के साथ रहती थी और जिस का नोएडा में ही मेडिकल स्टोर था. और छोटा बेटा पुणे में बीटैक कर रहा था. चौथी थी कैथरीन जिस का अपने पति से तलाक हो गया था और वह अपनी  एकलौती बेटी एंजेलिका के साथ रहती थी.

चारों एकदूसरे के धर्म का पूरा मानसम्मान करती थीं. किसी के धर्म को ले कर कोई कुतर्क, वादविवाद या बहस में नहीं पड़ती थीं. दीवाली, बड़ा दिन, ईद और वैशाखीलोहिड़ी पर एकदूसरे को बधाई देती थीं और सभी के त्योहार सम्मिलित रूप से मनाती थीं. अपनेअपने त्योहारों पर मिठाई, सेवईं, मक्के की रोटी, सरसों का साग और केक इत्यादि का आदानप्रदान होता रहता था.

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