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पराग एक रोबोट की तरह अपना काम निबटा कर दफ्तर जाया करता था और दफ्तर से लौट कर घर आने पर एक अंधेरे कोने में बैठ जाया करता था. शायद शीतल की याद के साथ रहना चाहता था. नवजात शिशु के रोने पर यंत्रचालित मशीन की तरह चल कर आता, उसे चुप करा कर फिर अंधेरे में बैठ जाता. यही उस की दिनचर्या थी. दोनों वृद्ध माताएं बच्ची की परवरिश में लगी रहती थीं. 2 दिन वहां रुक कर हम वापस मुंबई लौट आए. मैं ने और सुरेश ने सब को आश्वासन दिया कि जब भी हमारी जरूरत पड़े, हमें खबर कर दें. पराग ने शिशु की देखभाल के लिए एक दाई रख ली. मौसीजी कब तक पराग के घर में पड़ी रहतीं. आखिर उन का अपना कहलाने वाला इस दुनिया में कोई और था भी तो नहीं.

मैं ने आग्रह कर के मौसीजी को अपने पास बुला लिया. मौसीजी दिन भर शीतल की ही बातें किया करती थी. मैं भी उन्हें बातें करने को प्रोत्साहित किया करती थी. इस तरह खुल कर बातें करने से उन का दुख कुछ तो कम हो रहा था. 2 महीने मेरे पास रहने के बाद मौसीजी ने वापस लौटने की इच्छा जाहिर की. वे कुछ हद तक सामान्य भी हो गई थीं. मैं भी अब उन पर रुकने के लिए दबाव नहीं डालना चाहती थी. मैं ने उन से कहा, ‘‘जब भी मन हो, बेझिझक मेरे पास आ जाइएगा.’’शीतल को गुजरे करीब 3 महीने हुए थे कि मां ने मुझे खबर दी कि मौसीजी ने बताया है कि पराग शादी कर रहा है. मौसीजी जैसे सांसारिक बंधनों से, मोहमाया से अपनेआप को मुक्त कर चुकी थीं. उन्हें अब कोई खबर विचलित नहीं कर सकती थी. पर खबर सुन कर मैं अवाक रह गई. पराग तो शीतल के गुजरने के बाद इस कदर टूट गया था कि मुझे डर लग रहा था कि कहीं उस का नर्वस बे्रकडाउन न हो जाए. मेरा दिल इस बात पर विश्वास करने से इनकार कर रहा था. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कोई इतनी जल्दी कैसे बदल सकता है. मैं सुरेश के दफ्तर से लौटने का इंतजार करने लगी. सुरेश ने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उन्हें देखते ही मैं फट पड़ी, ‘‘सुरेश, जानते हो, पराग शादी कर रहा है. अभी मुश्किल से 3 महीने बीते होंगे शीतल को गुजरे और वह शादी के लिए तैयार हो गया. ये सारे मर्द एक जैसे होते हैं. एक नहीं तो दूसरी मिल जाएगी.’’

सुरेश भी खबर सुन कर अचरज में पड़ गए. फिर तुरंत ही संभल कर उन्होंने कहा, ‘‘उमा, ऐसा नहीं कहते. शीतल अगर नहीं रही तो इस में पराग का क्या दोष? वह कितने दिन उस के शोक में बैठा रहेगा? बच्ची को संभालने वाला भी तो कोई चाहिए न? उस की बूढ़ी मां कब तक उसे संभालेगी?’’

सुरेश की बातों ने मुझे सांत्वना देने के बजाय आग में घी का काम किया. मैं चीखने लगी, ‘‘हांहां, आप भी तो मर्द हो, पराग का पक्ष तो लोगे ही. कल अगर मुझे कुछ हो जाए तो आप भी दूसरी शादी करने से बाज नहीं आओगे. बच्ची का बहाना मत बनाओ. बच्ची की आड़ में अपनी इच्छा पूरी की जा रही है. यही काम यदि कोई औरत करे तो समाज उस पर शब्दों के बाण चलाने से नहीं चूकेगा,’’ मैं आक्रोश में आ कर पराग और सुरेश ही नहीं, बल्कि पूरी पुरुष जाति को कोसने लगी. सुरेश ने मेरे भड़कने पर भी अपना आपा नहीं खोया. शांत स्वर में मुझे समझाने लगे, ‘‘उमा, तुम अभी गुस्से में हो. गुस्से में जब लोग अपना संयम खो बैठते हैं तो सहीगलत का निर्णय नहीं ले पाते. इस तरह दूसरों पर इलजाम लगाना तुम्हें शोभा नहीं देता.’’

2 दिन बाद पराग का ईमेल आया, ‘‘दीदी, मैं शादी कर रहा हूं. बहुत ही सादे ढंग से मंदिर में हो रही है शादी. बाकी मिलने पर बताऊंगा.’’ मैं ने इस संक्षिप्त से मेल पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

एक दिन दोपहर का वक्त था. बच्चे स्कूल गए थे. काम निबटा कर मैं थोड़ा आराम कर रही थी. शीतल के बारे में ही सोच रही थी कि मुझे उस टेप की याद आई जिस में बच्चों की आवाज के साथसाथ शीतल की आवाज भी टेप थी. टेप चला का सुनने लगी कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो देखा सामने पराग खड़ा था. अभी तक पराग से मेरी नाराजगी दूर नहीं हुई थी फिर भी औपचारिकतावश मैं ने पराग को अंदर बुलाया. टेप में शीतल की आवाज सुन कर चौंक गया पराग. वह कुछ कहना चाहता था, पर इतना भावुक हो गया कि उस की आवाज भर्रा गई. अचानक अपनी भावना पर काबू न पा सकने के कारण फूटफूट कर रोने लगा. मैं ने उसे पीने को पानी दिया. वह कुछ देर यों ही बैठा रहा. फिर उस ने मुझ से फिर शुरू से टेप चलाने को कहा.

थोड़ा संयत होने पर मैं ने उसे खाना खाने को कहा. उस ने जवाब में कहा, ‘‘दीदी, मुझे भूख नहीं है. आप बस थोड़ी देर मेरे पास बैठिए. मैं औफिस के काम से मुंबई आया हूं. आप से अकेले में बातें करना चाहता था, इसलिए आप के पास चला आया.’’

मैं ने उसे शादी की मुबारकबाद दी तो कुछ देर चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप सोच रही होंगी कि मैं ने इतनी जल्दी शादी कैसे कर ली? क्या करता दीदी, मैं मजबूर हो गया था. मां दमे की मरीज हैं कब तक श्रेया की देखभाल करतीं. मां की सहायता के लिए मैं ने 2 दाइयां रखीं. पहली आई बच्ची के मुंह में दूध का बोतल दे कर ऊंघती रहती थी. दूध किनारे से बह जाता था. दूसरी रखी तो घर से चीजें गायब होने लगीं. मामाजी आए थे, उन के समझाने पर मैं ने शादी के लिए हां कह दिया. मामाजी ने अखबारों में इश्तहार दे दिया. कई परिवारों की ओर से जवाब आया. मैं ने किसी भी लड़की की तसवीर की ओर नजर तक नहीं डाली. बस आए हुए पत्रों को पढ़ता रहा. तभी एक पत्र ने मेरा ध्यान आकर्षित किया. यह पत्र गरिमा के पिता ने लिखा था. शादी के 1 साल बाद ही गरिमा के पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. पत्र पढ़ने के बाद मैं ने उन से संपर्क किया. मैं जब गरिमा से मिला तो मैं ने देखा कि गरिमा का बाह्यरूप अत्यंत साधारण था. पति की मृत्यु के बाद वह छोटीमोटी नौकरी करती हुई उद्देश्यहीन जीवन जी रही थी. गरिमा ने मुझे एक और बात बताई कि जब वह काफी छोटी थी, उस की मां नहीं रही थीं और विमाता ने ही उसे पाला था.

‘‘उस वक्त मुझे यही लगा कि जिस लड़की ने इस छोटी सी जिंदगी में इतने सारे उतारचढ़ाव देखे हों, वह मेरी श्रेया की देखभाल अवश्य अच्छी तरह करेगी. दूसरी बात जो उस वक्त मेरे जेहन में आई, वह यह थी कि गरिमा से शादी कर के मैं न सिर्फ श्रेया के लिए एक अच्छी मां ले कर आऊंगा, बल्कि एक अबला को भी नवजीवन दूंगा.’’ पराग के मुंह से उस के विचार जानने के बाद और यह जानने के बाद कि उस ने बाह्य रूप को ताक पर रख कर एक योग्य लड़की का चुनाव किया था, मुझे लज्जा आने लगी अपनेआप पर कि मैं ने पराग को कितना गलत समझा था. अकसर हम बिना पूरी जानकारी के लोगों के बारे में कितनी गलत राय बना लेते हैं.

श्रेया साल भर की हो गई थी. पराग ने उस के जन्मदिन की तसवीर भेजी थी. गुलाबी रंग की फ्रौक में परी लग रही थी श्रेया. श्रेया का जन्मदिन और शीतल की बरसी की तारीख एक ही थी. सुबह श्रेया को जन्म दे कर, उसी रात को नहीं रही थी शीतल. पराग ने लिखा था कि शीतल की खुशियों के लिए उस ने पूरे धूमधाम से श्रेया का जन्मदिन मनाया था, क्योंकि वह श्रेया की खुशियों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता था.

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