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राजीव उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका गया था लेकिन वहीं का हो कर रह गया. अच्छी पढ़ाई के फलस्वरूप उसे वहां बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई. नौकरी के 4 महीने के अंदर ही उस ने अपनी अमेरिकी सहकर्मी से शादी भी कर ली.

मैं मन ही मन सोचती, ‘सच में, आज की दुनिया बहुत ही तीव्रगति से भाग रही है. कुछ समय पहले तक मेरा राजीव खानेपहनने तक में मेरी सलाह लेता था, अब वह शादी जैसे अहम विषय पर भी खुद ही निर्णय लेने लगा.’

राजीव के व्यवहार से हम पतिपत्नी बहुत उदास थे. राजेश गंभीर स्वभाव के हैं, इसलिए प्रकट नहीं करते थे लेकिन मुझ से अपनी उदासी छिपाई नहीं जाती थी. राजेश मुझे समझाते, ‘सविता, उदास होने से कोई फायदा नहीं है, बेटा तरक्की कर रहा है, खुश है, यह सोच कर खुश रहो, ज्यादा उम्मीद न लगाओ.’ मैं उदासीनता से कहती, ‘राजीव की तरक्की से तो मैं बहुत खुश हूं लेकिन हमारे बारे में सोचना भी तो उस का कर्तव्य है. इसे वह कैसे भूल बैठा. अपने देश में नौकरी करता, यहां की लड़की से शादी करता, हमें भी अपनी खुशी में भागीदार बनाता. वह तो वहीं का हो कर रह गया.’

राजेश मुझे समझाते हुए कहते, ‘आज के युग में यह बहुत ज्यादा हो रहा है. हमारे देश के युवा विदेश की चकाचौंध से आकर्षित हो कर वहीं रचबस जाते हैं. हमारे कई परिचितों के बच्चों ने भी ऐसा किया है.’

‘मुझे बहुत आश्चर्य होता है, बच्चों के ऐसे व्यवहार पर,’ मैं ने कहा तो राजेश ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘देखो सविता, राजीव के व्यवहार से स्पष्ट है कि वह लौट कर हमारे पास नहीं आ रहा है. अब तो उस के फोन भी बहुत कम आते हैं, आते भी हैं तो चंद सैकंड के लिए, मात्र औपचारिकता. वह अपनी दुनिया में मस्त है.’

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