लोकेश विद्यालय में नयानया आया था. वह 8वीं कक्षा का छात्र था. वह अधिकतर गंभीर रहता था. बहुत कम बोलता था और कक्षा में एकदम अलग बैठता था. खेलते समय भी वह एक कोने में अकेला खड़ा दिखाई देता. उस का कोई दोस्त नहीं था. लोकेश इतना उदास क्यों रहता है, यह हम नहीं जान सके, किंतु उस के कुछ शरारती साथियों ने उस के इस सीधेपन का खूब लाभ उठाया. वे जबतब उसे चिढ़ाते. उस की भाषा पर उस की मैदानी बोली का प्र्रभाव था इसलिए उस के बोलने के लहजे का बच्चे खूब मजाक उड़ाया करते थे. पर लोकेश बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए चुपचाप उन की फबतियां सुनता रहता. कभीकभी तो बच्चों को इस बात पर भी गुस्सा आता कि वह उन के चिढ़ाने का बुरा क्यों नहीं मानता और उन की बातों का उत्तर क्यों नहीं देता?

लोकेश के पिता मनोरंजन कर अधिकारी थे. किसी कारण दंड के रूप में उन का स्थानांतरण शहर से कसबे में कर दिया गया था. कई वर्ष से एक ही स्थान पर रहने से उन का परिवार ऊब गया था और इस ऊब का असर लोकेश पर भी पड़ा था. उस के पिता तो पहले ही चिड़चिड़े स्वभाव के थे और इस तबादले से तो वे और भी चिड़चिड़े हो गए थे. पहाड़ में मैदान जैसी सुविधाएं नहीं होतीं इसलिए वे बारबार सरकार को कोसते रहते थे. घर में अकसर तनाव का माहौल रहता था. उस तनाव का असर लोकेश पर भी पड़ता था और इसीलिए वह कक्षा में गंभीर बना रहता था. यह उन दिनों की बात है, जब पहाड़ में पहाड़ी क्षेत्र को अलग राज्य बनाए जाने का आंदोलन चल रहा था. आएदिन हड़ताल, जुलूस, सभा, गोष्ठियां होती रहती थीं. इस आंदोलन के कारण लोगों में पहाड़ी और मैदानी का भेदभाव कूटकूट कर भर गया था. यह भावना बच्चों में भी आ गई थी. वे अकसर अपने मैदानी साथियों को कहते कि जब उत्तराखंड राज्य बनेगा तो तुम्हें तो यहां से भागना पड़ेगा.

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