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‘‘मैडम, नमस्कार,’’ प्रतिभा ने अनु के हाथों में मिठाई का पैकेट रखा और कंधे पर शाल ओढ़ा दी, ‘‘मैडम, मुझे एमफिल की डिगरी मिली, विशिष्टता के साथ. यह देखो, मेरा प्रबंध. सर की अचानक मृत्यु हो गई, जीवित होते तो उन्हें कितनी खुशी होती. उन्होंने मुझे समय दे कर मेरा अच्छा मार्गदर्शन किया था.’’

प्रतिभा ने अनु के हाथों में सुनहरे अक्षरों में मढ़ा, मखमली वस्त्र में लिपटा प्रबंध रखा. अनु ने चश्मा लगा कर पढ़ा, ‘राम सहाय की कथाएं और समग्र अभ्यास.’

‘‘अच्छा पिंट है और साजसज्जा भी अच्छी है.’’

‘‘मैडम, आप दोनों ने बहुत मदद की. इसलिए काम शीघ्र ही पूरा हुआ. सर ने शोध सामग्री सहर्ष दी थी जो ठीकठाक और तिथिवार थी.’’

‘‘प्रतिभा, तुम ने भी प्रयास किया, घंटों साथ चर्चा की.’’

‘‘सर मुझ पर खुश थे, पूरा समय दिया. दूसरा मार्गदर्शक कोई भी इतना ज्यादा सहयोगी नहीं सिद्ध होता.’’

‘‘प्रबंध मेरे पास छोड़ दो. आराम से पढ़ूंगी.’’

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‘‘यह प्रति आप के लिए ही है. अब पीएचडी के लिए ‘राम सहाय साहित्य का समग्र अध्ययन’ विषय चुना है, सो मुझे सर के उपन्यास, नाटक, ललित लेखन, निबंध, वृत्तपत्रीय लेखन और आत्मकथन सब का सम्यक अनुशीलन करना पड़ेगा. सो, आप को फिर से तकलीफ देनी है. सर के पत्र, पाठक और संपादक के आए हुए खत, साक्षात्कार सब देखना पड़ेगा. आत्मकथन से लेखक की जिंदगी का सही अंदाज लगता है. सर की निजी डायरी पढ़नी पड़ेगी. आप को कोई आपत्ति तो नहीं?’’

‘‘डायरी में दैनंदिन काम की जंत्री होगी,’’ अनु ने असमंजस में पड़ कर कहा.

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