रितु वर्मा

वान्या फोन रखते ही एक अजीब सी घुटन से भर गई थी. क्या करे वह इस रिश्ते का? क्यों ऐसा कोई कानून
नहीं है कि बच्चे अपने मातापिता को भी तलाक दे सकें... वह जिंदगी में जितना आगे बढ़ना चाहती थी उतना ही उस के पापा अनिकेत उसे कीचड़ में घसीट लेते थे.

बहुत देर तक वह यों ही गुमसुम सी बैठी रही. तभी उस की मम्मी मनीषा ने आ कर कमरे की लाइट जलाई और बोली,"क्या हुआ वानु, इतनी परेशान क्यों हो?"

वान्या आंखों में आंसू भरते हुए बोली,"आज फिर आप के पति के कारण मैं मुसीबत में पड़ गई हूं।"

मनीषा हंसते हुए बोली,"मेरे पति या तुम्हारे पापा..."

वान्या गुस्से में बोली,"आप तो बड़े मजे से उन से अलग हो गई हैं मगर क्या कोई अदालत है जहां पर मैं उन से तलाक ले सकूं?"

मनीषा बोली,"आखिर क्या किया है अनिकेत ने?"

वान्या बोली,"मेरे ओहदे के नाम पर कहीं पर दलाली कर रहे हैं। कहते फिर रहे है कि मैं वान्या मैडम का पापा हूं और इसलिए उन्हें पता है कि कौन सी कंपनी को टैंडर मिलेगा..."

मनीषा कुछ सोचते हुए बोली,"यह तो अनिकेत की पुरानी आदत है। उस ने हमेशा रिश्तों को अपने फायदे के लिए ही इस्तेमाल किया है। 56 साल की उम्र में भी उस की आदत में सुधार नहीं हुआ है।"

वान्या बालों का जुड़ा लपेटते हुए बोली,"जब भी फोन करते हैं हमेशा ऐसा दिखाते हैं जैसे मैं ने उन के साथ कुछ गलत किया हो।"

मनीषा बोली,"दिल पर क्यों लेती हो बेटा?"

वान्या बोली,"मैं दिल पर कैसे न लूं मम्मी। वे कभी भी मेरे लिए नहीं थे मगर जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हो गई हूं तो अपने पिता होने का फर्ज मुझे क्यों याद करवा रहे हैं..."

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