मुंबई जैसे व्यस्त शहर में रहने वाले राजेश को संगीत बहुत पसंद है. वह अच्छा गाता भी है. लेकिन उन्हें इस पर कुछ करने का समय नहीं मिला, क्योंकि उन्हें अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने की जिम्मेदारी थी. आज उन्हें जब भी समय मिलता है, अपने पसंदीदा गीत को उठा कर धुन के साथ अकेले घर में ही गा लेता है और सोशल मीडिया पर शेयर करता है. उस के फैन फौलोवर्स लाखों में हैं और उसे बहुत अच्छा लगता है, जब उस के गाने को सुन कर लोग उस की तारीफ करते हैं. उस का अकेलापन भी दूर होता है और उसे गाना गाने की इच्छा भी पूरी हो जाती है. इसे ही कराओके कहते हैं, जिस का क्रेज आजकल यूथ से ले कर वयस्क सभी को है.
असल में कराओके आत्म मनोरंजन का एक रूप है, जो मूल रूप से जापान का है, जिस में संगीत की रिकौर्डिंग होती है, लेकिन लोकप्रिय गीतों के शब्द नहीं, बल्कि धुन होती है, ताकि लोग शब्दों को स्वयं गा सकें और अपने पसंदीदा गायक कलाकारों के संगीत का आनंद उठा सकें.

कराओके का इतिहास

दुनिया की पहली कराओके मशीन का आविष्कार करने वाले उद्यमी शिगेइची नेगीशी है. 100 वर्ष की आयु में उन का निधन हो गया है. नेगीशी, जिन का 1967 का ‘स्पार्को बौक्स’ प्रोटोटाइप था, जिस में कई उपकरणों के धुन शामिल होते थे, उस के साथ वे गाना गाने का आनंद उठाते रहे. वहीँ से जापान के कराओके क्रेज की शुरुआत हुई है.
कराओके आजकल प्रसिद्ध है, लेकिन इस की शुरुआत 1971 के आसपास कोबे, जापान में हुई थी. रेस्तरां और बार में लोग मशीनें किराए पर लेते थे और उस के साथसाथ रात भर माइक्रोफोन में गाते थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...