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कई हफ्तों तक राकेश ने रेखा की गतिविधियों पर सूक्ष्म नजर रखी, मन ही मन पड़ताल की, उस की अलमारी टटोली, पर ऐसा कोई सुबूत हाथ नहीं लगा जिसे वह रेखा के सामने रख देता. आखिर एक रात को खाना खाते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘यह राजीव कौन है?’’

‘‘मेरे साथ बैंक में काम करता है,’’ रेखा ने जवाब दिया.

‘‘तुम इसे कब से जानती हो?’’ राकेश ने रोटी का टुकड़ा प्लेट में ही रख दिया.

‘‘इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हो?’’ रेखा ने पति की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘इसलिए कि आजकल यह अकसर तुम्हारे साथ दिखाई देता है,’’ राकेश ने तनिक तेज स्वर में कहा.

‘‘हम बैंककर्मी 8-10 घंटे साथसाथ काम करते हैं. जाहिर है, कभी चायकौफी भी साथ बैठ कर पी लेते हैं,’’ रेखा ने ठंडे स्वर में कहा.

राकेश खाना खाते हुए सोचने लगा कि दफ्तर में सहयोगियों का आपस में हंसनाबोलना, साथसाथ चाय पीना, लंच करना तो चलता ही रहता है, इस का गलत मतलब नहीं निकालना चाहिए और गृहस्थी की तो नींव ही विश्वास पर टिकी है. उसे रेखा पर शक नहीं करना चाहिए. आखिर वह घर और दफ्तर दोनों की जिम्मेदारी कितनी कुशलता से निभाती है.

राकेश ने अपनी शादी से पहले ही यह तय कर लिया था कि वह अपने अहं को कभी बैडरूम में नहीं ले जाएगा. टूटने की हद तक बात को बढ़ा देना किसी भी रिश्ते के लिए नुकसानदेह होता है और वैवाहिक संबंधों की तो नींव ही सैक्स पर आधारित है. सैक्स उतना ही जरूरी है जितना कि पेड़पौधे को पनपने के लिए खादपानी जरूरी है. सो, राकेश ने रेखा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘चलो, सब सोते हैं.’’

रेखा भी बिना किसी विरोध के तुरंत मोनू को गोदी में उठा कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई.

सुबह जब राकेश की आंख खुली तो रेखा कमरे में नहीं थी.

राकेश बाथरूम से फारिग हो कर जब ड्राइंगरूम में आया तो देखा, रेखा धीरेधीरे किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस के बातचीत का स्वर इतना धीमा था कि राकेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. राकेश को देखते ही रेखा ने फोन काट दिया और बोली, ‘‘अरे, आप उठ गए, मैं तो कौफी के लिए आप का इंतजार कर रही थी.’’

रेखा रसोई की तरफ चली गई और राकेश आरामकुरसी पर बैठ कर अखबार की खबरें देखने लगा. कुछ ही क्षणों बाद रेखा ने राकेश की तरफ कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह लो, कौफी.’’

राकेश को कौफी का कप दे कर रेखा अपने कमरे की तरफ बढ़ गई. राकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

रेखा ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘रेखा, तुम ने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया, यह सुबहसुबह किस का फोन था?’’ राकेश ने कमरे में आते हुए पूछा.

‘‘मेरे बैंक की एक महिला कर्मचारी का फोन था. आज वह बैंक नहीं आएगी, यही बताने के लिए उस ने फोन किया था,’’ रेखा ने कहा.

‘‘पर तुम इतनी उखड़ीउखड़ी क्यों हो?’’ राकेश ने पत्नी की तरफ ध्यानपूर्वक देखते हुए पूछा.

‘‘तुम मेरे दफ्तर के तनाव को नहीं सम?ा सकते,’’ रेखा ने शांत स्वर में जवाब दिया.

‘‘दफ्तर में कोई तनाव है तो उसे कहो, मिलजुल कर ही घरबाहर की समस्याओं से निबटा जा सकता है,’’ राकेश ने पत्नी के पास खड़े होते हुए कहा.

रेखा शून्य में ताकती रही, कुछ बोली नहीं. फिर अपने दैनिक कार्यों को निबटाने में लग गई.

राकेश ने घड़ी देखी और वह जल्दी से बाथरूम में घुस गया. सुबह का समय कामकाजी दंपतियों के लिए व्यस्त होता है.

धीरेधीरे एक हफ्ता बीत गया. इस बीच राकेश ने रेखा की मनपसंद फिल्म के टिकट ला कर उसे अचानक चौंका दिया और एक शाम उस की मनपसंद का खाना भी उसे होटल में खिलाया. वह  दांपत्य में आई एकरसता को तोड़ देने में विश्वास करता था. राकेश ने एकएक ईंट जोड़ कर अपनी गृहस्थी की इमारत खड़ी की थी, कभी पत्नी का दिल न दुखाया था और न ही किसी सुखसुविधा की कमी होने दी थी.

एक दिन राकेश गुस्से से भरा हुआ दफ्तर से लौटा और आते ही रेखा से बोला, ‘‘यह राजीव तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था?’’

‘‘हां, कैरम और बैडमिंटन में वह मेरा पार्टनर होता था. वह मेरा अच्छा दोस्त था,’’ रेखा ने निर्विकार भाव से कहा.

‘‘सिर्फ अच्छा दोस्त…’’ अर्थपूर्ण नजरों से रेखा को घूरते हुए राकेश बोला, ‘‘और आजकल तुम दोनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी?’’

‘‘खिचड़ी, कैसी खिचड़ी? यह महज एक इत्तफाक है कि शादी के 3 वर्षों बाद वह अचानक उसी बैंक में तबादला हो कर आ गया जहां मैं काम करती हूं. बस और कुछ नहीं,’’ रेखा ने संयत स्वर में जवाब दिया.

‘‘तुम जानती हो मैं उसे नापसंद करता हूं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘यह जरूरी तो नहीं कि तुम मेरे सभी बैंककर्मियों को पसंद करो,’’ रेखा ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘रे…खा…’’ राकेश चीखा.

‘‘चीखो मत, मैं तुम्हारी पत्नी हूं, कोई निर्जीव किताब नहीं हूं. राकेश, आज मु?ो इस बात का गहरा अफसोस हो रहा है कि मैं तुम्हारी कल्पना की पोषण मूर्ति नहीं बन सकी,’’ रेखा का स्वर शांत था.

‘‘पहेलियां मत बुझाओ,’’ राकेश बोला, ‘‘जो कहना चाहती हो, साफसाफ कहो.’’

‘‘सबकुछ साफ है, तुम अपने गुस्से के कारण साफ नहीं देख पा रहे हो.’’

दोनों कुछ देर चुप बैठे रहे, फिर रेखा उठी और अपने घरेलू काम में व्यस्त हो गई.

कई दिन ठीक से गुजर गए. एक शाम राकेश दफ्तर से लौटा तो रेखा घर पर नहीं थी. मोनू घर की नौकरानी के साथ था. राकेश ने नौकरानी से पूछा, ‘‘मोनू ने दूध पिया?’’

‘‘नहीं साहब, मोनू मेरे हाथ से आज दूध ही नहीं पी रहा है,’’ विमला ने दूध से भरी बोतल उठा कर दिखाते हुए कहा.

राकेश ने मोनू को गोद में उठा लिया और विमला के हाथ से दूध की बोतल ले कर मोनू को दूध पिलाने लगा. अपने पिता की गोद में लेटा मोनू खुश था और बालसुलभ चंचलता के साथ दूध पी रहा था. राकेश ने घड़ी पर नजर डाली और सोचने लगा, अब तक तो रेखा को घर पहुंच जाना चाहिए. रोज तो वह इस समय तक घर आ जाती है. तभी फोन की घंटी बजी. राकेश ने रिसीवर उठाया, उधर से दीदी की आवाज आई, ‘‘भैया, रेखा घर पहुंच गई?’’

‘‘दीदी, क्या रेखा तुम्हारे पास गई थी?’’ राकेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, उसे मैं ने बुलाया था. यहां से आधा घंटा पहले गई है, पहुंचती ही होगी,’’ कह कर उधर से फोन कट गया.

अपनी दीदी का फोन सुन कर राकेश का गुस्सा शांत हो गया और वह चिंता में डूब गया. दीदी ने रेखा को क्यों बुलाया था और रेखा भी उसे बताए बगैर दीदी के पास चली गई. आखिर रेखा के मन में क्या उधेड़बुन चल

रही है, क्या राजीव को ले कर कोई समस्या है?

तभी रेखा ने घर में प्रवेश किया, वह बेहद थकी हुई और तनाव में थी. उस ने आते ही अलमारी खोल कर उस में अपना पर्स टांगा और गाउन उठा कर बाथरूम में घुस गई.

रेखा नहाधो कर निकलती सीधी रसोई में पहुंची. उस के सधे हाथ जल्दीजल्दी रात के खाने का प्रबंध करने लगे. राकेश ने कुछ देर इंतजार किया कि रेखा उसे खुद ही दीदी के घर जाने का कारण बता देगी, परंतु वह चुप थी.

राकेश ने रसेई में आ कर पूछा, ‘‘आज तुम दीदी के यहां गई थीं?’’

रेखा ने आश्चर्य से पति की तरफ देखा क्योंकि उसे यह उम्मीद नहीं थी कि दीदी के घर जाने की बात राकेश को मालूम हो जाएगी, पर राकेश को यह कैसे पता चला कि वह दीदी के यहां गई थी? रेखा ने स्थिति पर विचार करते हुए धीरे से कहा, ‘‘हां.’’

‘‘दीदी के यहां तुम क्यों गई थीं?’’

‘‘मिलने,’’ गैस पर दाल चढ़ाते हुए रेखा बोली.

‘‘मु?ो बिना बताए दीदी के यहां जाने का उद्देश्य क्या है?’’ राकेश अब परेशान हो गया था.

‘‘अगर दीदी फोन कर के यह न बतातीं कि तुम वहां गई थीं तो मु?ो पता भी नहीं चलता.’’

‘‘तुम्हें दीदी ने बताया है?’’ रेखा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘आज तक जो तुम मु?ा से छिपाती आ रही हो, वह अब तुम्हें सचसच बताना होगा, रेखा,’’ राकेश ने सख्त स्वर में कहा.

‘‘तुम मु?ा पर इतना शक करने लगे हो कि अब अपमान करने पर उतर आए,’’ कहते हुए रेखा फफकफफक कर रो पड़ी.

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