रेखा पर राकेश का शक धीरेधीरे बढ़ता जा रहा था. अपने प्रेम और मेहनत से बनाए आशियाने को वह बिखरता हुआ महसूस करने लगा था, पर क्या वाकई रेखा अपने 3 बरस के वैवाहिक जीवन को ताक पर रख कर मर्यादा की रेखा लांघ रही थी?
सड़क पार कर के मारुति कार की तरफ बढ़ते हुए युवकयुवती की तरफ देख कर राकेश के पांव तुरंत स्कूटर के ब्रेक पर पड़े. स्कूटर रुक गया तो उस ने युवती की तरफ ध्यान से देखा. उस का संदेह क्षणभर में ही दूर हो गया, क्योंकि उस की आंखें अपनी पत्नी रेखा को पहचानने में भूल नहीं कर सकती थीं.
इस युवक के साथ आज दूसरी बार वह रेखा को देख रहा था. राकेश ने मुड़ कर सड़क के उस तरफ देखा, जहां से वे दोनों अभीअभी निकले थे. वह होटल वृंदावन था जो शहर में अभी नयानया खुला था और आम लोगों की पहुंच से दूर होने के कारण दिन में लगभग खाली रहता था.
वे दोनों युवकयुवती जब मारुति कार में बैठ कर चल दिए तो राकेश का खून खौल उठा था, पर वह अपने को संयत रखते हुए कार का पीछा करने लगा. कुछ ही देर में कार इलाहाबाद बैंक के सामने जा कर पार्किंग में खड़ी हो गई और वे दोनों कार से उतर कर बैंक में चले गए.
आज से पहले भी राकेश ने रेखा को इसी युवक के साथ बैंक के बाहर घूमते हुए देखा था. रेखा ने तो जैसे वैवाहिक जीवन के 3 बरसों को एक तरफ हाशिए पर रख दिया था और मर्यादा भूल कर वह पराए पुरुष के साथ स्वच्छंदता से शहर में घूम रही थी.
राकेश की सम?ा में नहीं आ रहा था कि आखिर उस से ऐसी कहां चूक हो गई जो रेखा उस से दूर होती जा रही है.
राकेश अपने दफ्तर लौट आया, पर शाम तक उस का किसी काम में मन नहीं लगा. उसे बारबार रेखा पर गुस्सा आ रहा था और महसूस हो रहा था कि प्रेम और मेहनत से बनाया उस का आशियाना अब कभी भी टूट कर बिखर सकता है.
शाम को जब राकेश घर पहुंचा तो यह देख कर हैरान रह गया कि रेखा नहाधो कर गुनगुनाती हुई रसोई में शाम का खाना बनाने में व्यस्त थी. राकेश ने रसोई के दरवाजे के पास खड़े हो कर कहा, ‘‘आज तुम भूतनाथ बाजार गई थीं?’’
‘‘हां,’’ रेखा ने चावल बीनते हुए उत्तर दिया.
‘‘तुम्हारे साथ वह युवक कौन था?’’ राकेश का स्वर तेज हो गया.
‘‘राजीव,’’ रेखा ने संक्षिप्त उत्तर दिया और अपने काम में व्यस्त हो गई.
‘‘तुम राजीव के साथ वृंदावन होटल गई थीं?’’ राकेश ने पहले की तरह तेज स्वर में पूछा.
‘‘ओह, तुम परेशान मत होओ,’’ कह कर रेखा फिल्टर में पानी भरने लगी.
तभी मोनू रेखा के पास आ कर ठुनकने लगा, ‘‘मम्मी, भूख लगी है.’’
‘‘ओह, राजा बेटे को दूध चाहिए, चलो, अभी बोतल साफ करते हैं, मोनू के लिए दूध बनाते हैं, मोनू दूध पिएगा… मोनू राजा बेटा बनेगा…’’ रेखा तरहतरह के वाक्य उछालती हुई मोनू के लिए दूध बनाने लगी.
मोनू अपनी मम्मी को दूध बनाते हुए देखने लगा, फिर मम्मी के हाथ से दूध की बोतल ले कर पलंग पर जा लेटा और दूध पीने लगा.
राकेश ने हिकारत से रेखा की तरफ देखा और फिर अपने कमरे में चला गया. उस के मन में रेखा के चरित्र को ले कर तरहतरह के विचार बनबिगड़ रहे थे. वह सोचने लगा कि यह औरत 2 नावों में पैर कर रख जीवन की नदी को पार करना चाहती है.
राकेश ने बाथरूम में नहाते हुए ठंडे दिमाग से इस मुसीबत की जड़ तक पहुंचने की ठानी. वह उस युवक के बारे में सोचने लगा जो रेखा के साथ घूमता था. राकेश अपने परिवार को टूटने से भी बचाना चाहता था और जगहंसाई का पात्र भी नहीं बनना चाहता था.