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राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘जब मेरी माहवारी आनी बंद हुई तो आशंका से भर उठी. कोई अनहोनी से मन सिहर उठा. चुपके से मैं एक लेडी डाक्टर से मिली. उस ने प्रैग्नैंसी टैस्ट कराए तो रिजल्ट देख कर मेरे होश उड़ गए. मैं पेट से थी. घर में मां के अलावा कोई न था. पापा औफिस के सिलसिले में किसी दूसरे शहर में गए हुए थे.

‘अब मां को किस मुंह से बताती कि मैं प्रैग्नैंट हूं. मां पर यह जान कर क्या गुजरेगी. मां को हम दोनों बहनों पर बहुत भरोसा था. जब मेरा जन्म हुआ तो पापा के लाख सम झाने पर भी मां न मानी थीं. अपना औपरेशन करा लिया था, बोली थीं, 2 बच्चे ही काफी हैं. दोनों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देंगे. उन्हें विश्वास था कि हम दोनों बहनें ऐसा कोई काम न करेंगी जिस से उन का सिर नीचे  झुक जाए.

‘मां बहुत बोल्ड महिला थीं. उन्होंने पापा से कहा था कि इस देश को लड़कियों की सख्त जरूरत है. जिस प्रकार देश में कन्याभ्रूण हत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है वह आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत घातक है. उन का यह भी मानना था कि लड़के की प्रतीक्षा में लड़कियों की संख्या बढ़ाना उतना ही देश के लिए घातक है जितना भ्रूण हत्या करना. दोनों ही स्थितियों में जनसंख्या संतुलन बिगड़ता है. एक से जनसंख्या की वृद्धि होती है तो दूसरे से लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात घटता है.

‘मां को मैं कैसे बताती कि प्रैग्नैंसी के पीछे मेरा कोई कुसूर नहीं है बल्कि यह एक हादसे का परिणाम है. मैं मां को सबकुछ बताना चाहती थी. उस की गोद में रोना चाहती थी लेकिन विवश थी. न रो सकती थी न कुछ बता सकती थी. इस राज को सिर्फ दीदी जानती थीं, लेकिन दीदी को भी क्या पता कि यह सिर्फ हादसा नहीं था, एक जीवन का कारण भी था. इसी उधेड़बुन में 15 दिन और गुजर गए.

‘आखिरकार, मैं ने दीदी को बताने का निर्णय लिया. समय का चक्र तो देखिए, जहां पहली संतान मां को खुशी देती है वहीं मेरे लिए यह संतान अभिशाप बन गई थी.

‘बेटी, एक कुंआरी मां इस हालत में किस असहनीय पीड़ा से गुजरती है, यह तुम न सम झोगी.

‘फोन पर सबकुछ बताना रिस्की था, पता नहीं फोन कब किस के फोन से इंटरकनैक्ट हो जाए, इसलिए मैं ने दीदी से कहा, ‘दीदी एक भयानक समस्या में फंस गई हूं, तुम प्लीज मु झे तुरंत मिलो. पापा बाहर गए हैं, इसलिए मां को अकेली छोड़ कर मैं नहीं आ सकती.’

‘दीदी ने कहा, ‘शैली, बहुत गंभीर समस्या न हो तो थोड़े दिन रुक जा, तुम्हारे जीजाजी का तबादला लखनऊ हो गया है, हम सभी वहां शिफ्ट करने की तैयारी कर रहे हैं.’

‘दीदी, समस्या काफी गंभीर है, मैं बहुत दिनों तक रुक नहीं सकती.’

‘तो बता, क्या बात है?’

‘फोन पर नहीं बता सकती, दीदी,’ मैं ने चिंतित और घबराई आवाज में कहा.

‘मां को बताया?’

‘मां को नहीं बता सकती, दीदी. समस्या कुछ ऐसी है.’

‘तो सुनो, मैं अगले हफ्ते आऊंगी. तब तक हम लोग लखनऊ शिफ्ट कर जाएंगे.’

‘अच्छा दीदी,’ मैं ने कोई उपाय न देख कर एक हफ्ता इंतजार कर लेना ही उचित सम झा.

‘दीदी ने एक हफ्ता इंतजार करने को कहा था, लेकिन तबादले के फौरन बाद जीजाजी को ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना पड़ गया था. दोनों बच्चों का नए स्कूल में नामांकन करना था, सो दीदी 15 दिनों बाद आईं. तब तक तुम पेट में 3 महीने की हो गई थीं. अब तो थोड़ाथोड़ा पेट भी दिखने लगा था. एक दिन मां ने टोका था, ‘शैली, अपने शरीर पर ध्यान दो, अभी से पेट निकल जाएगा तो बाद में कंट्रोल करना मुश्किल हो जाएगा.’

‘अब मैं मां को क्या बताती. चुप रह जाने के अलावा कोई उपाय न था.

‘दीदी को देख कर उन्हें अपने कमरे में ले गई और उन से लिपट कर रोने लगी.

‘अब बताओ भी कि बात क्या है, केवल रोनेधोने से समस्या का हल थोड़े निकल जाएगा.’

‘दीदी पेट में…

‘मैं हकलाई. दीदी ने भी आने के बाद मेरे पेट को मार्क किया था. वे बिना पूरी बात बताए ही सम झ गईं.

‘यह तो अच्छा नहीं हुआ. तुम ने बताने में इतनी देर क्यों कर दी?’

‘मु झे ऐसी कोई आशंका न थी, दीदी. शुरू में एकदो बार मिचली आई थी तो सामान्य मिचली सम झ कर नजरअंदाज कर दिया था. मेरा पीरियड तो पहले भी कभीकभी देर से आता था तो सोचा आ जाएगा. किंतु जब 2 महीने बीत गए तो कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी. जब गाइनीकोलौजिस्ट से मिली तब कन्फर्म हुआ. मां से बताने का साहस न हुआ. आप सबकुछ जानती थीं, इसलिए आप से बताने का निर्णय लिया. तब तक बहुत देर हो चुकी थी.’

‘सुन कर दीदी के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं. कुछ देर दीदी सोचती रहीं. जीजाजी और बच्चों को छोड़ कर आई थीं, इसलिए दूसरे दिन ही लखनऊ लौटना था. घर में मांपापा अकेले थे. मैं मां के काम में हाथ बंटाती थी.

‘ध्यान से सुन, किसी को कानोंकान इस बारे में खबर न होनी चाहिए. मैं मां से बात करती हूं. तुम्हें लखनऊ चलना होगा. अब तुम्हारे जीजाजी को सबकुछ बताना होगा. बिना उन की मदद के हम लोग कुछ नहीं कर सकते. तुम्हारा अबौर्शन कराना होगा. समय नहीं बचा है, देर होने पर कोई डाक्टर अबौर्शन के लिए भी तैयार न होगा क्योंकि तब तक तुम्हारे लिए काफी रिस्की हो जाएगा.’

‘दीदी ने न जाने मां को क्या सम झाया था, मां मु झे एक हफ्ते के लिए दीदी के साथ लखनऊ भेजने पर तैयार हो गई थीं. तभी पापा ने औफिस से मां को फोन किया कि उन्हें औफिस के जरूरी काम से एक हफ्ते के लिए बाहर जाना है. उन का जरूरी सामान तैयार रखे. मां बोली, ‘बेटी तुम्हारे पापा न रहेंगे तो मैं अकेली पड़ जाऊंगी. शैली को एक हफ्ते बाद ले जाना.’

‘सुन कर दीदी असमंजस में पड़ गईं. मां को अब कैसे बताएं कि मु झे दीदी के साथ तुरंत जाना जरूरी है. एकएक दिन मेरे लिए भारी पड़ रहा था. मेरे मन में विचार आया. मां को अब सबकुछ बता देना ही चाहिए. फिर अगले ही क्षण उन के ब्लडप्रैशर और हार्ट की बीमारी का ध्यान आ गया. मां हलका सा भी तनाव बरदाश्त नहीं कर पातीं. उन का ब्लडप्रैशर तुरंत हाई हो जाता है. मां तो इस हादसे को बरदाश्त ही न कर पाएंगी. अगर उन्हें कहीं कुछ हो गया तो इस के लिए मैं खुद जिम्मेदार होऊंगी.

‘दीदी अब क्या होगा?’ मैं ने चिंतित होते हुए पूछा.

‘दीदी अपना माथा पकड़ कर बैठ गईं.

‘कहते हैं न कि विपत्ति आती है तो अकेले नहीं आती.

‘कुछ सोच कर दीदी ने कहा, ‘चल, उसी गाइनीकोलौजिस्ट के यहां चलते हैं जिस ने तुम्हारा टैस्ट किया था. तुम्हारे जीजाजी को मैं बोल देती हूं, बच्चों को किसी तरह एकदो दिन संभाल लें. इस बीच तुम्हारे जरूरी टैस्ट वगैरह करवा लेते हैं. सभी रिपोर्ट्स ले कर मैं लखनऊ चली जाऊंगी और अबौर्शन का सारा इंतजाम कर के मैं यहां चली आऊंगी. तुम्हें मैं लखनऊ भेज दूंगी. तुम्हारे जीजा को बता दूंगी. वे सबकुछ संभाल लेंगे.’

‘तय कार्यक्रम के अनुसार हम ने सारे टैस्ट करवा लिए. पेट में बच्चा स्वस्थ था. 3 माह से कुछ ज्यादा का ही हो गया था. डाक्टरनी ने कहा, ‘मां को कैल्शियम, आयरन और फौलिक एसिड की गोलियां दें. वरना जच्चाबच्चा दोनों कमजोर हो जाएंगे.’ उस ने कुछ गोलियां लिख दीं. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में बच्चा साफ दिखाई पड़ रहा था.

‘तो क्या मैं अपने बच्चे की हत्या करने जा रही हूं?’ अचानक विचार कौंधा तो मैं नर्वस हो गई.

‘दीदी ने कहा, ‘अब बच्चे के लिए गोलियों का क्या करेंगे. इसे जन्म थोड़े ही देना है.’ फिर मां से विदा ले कर वे चली गईं.

‘इस बीच मु झे अजीबअजीब सपने आते. कभी लगता, बच्चा रो रहा है. मैं उसे दूध पिला रही हूं. कभी लगता, बच्चे को मु झ से कोई छीन कर भाग रहा है और मैं उस के पीछे रोते हुए दौड़ रही हूं. बड़ा ही तनावग्रस्त समय काटा था मैं ने उस पीरियड में. फिर दीदी आ गईं. अब मु झे लखनऊ जाना था. पापा के आने तक दीदी को मां के साथ रहना था. दीदी ने लखनऊ का रिजर्वेशन भी करवा दिया था. मेरे अबौर्शन का सारा इंतजाम भी करवा आई थीं. जीजा ने सुना तो मेरा सहयोग करने के लिए तैयार हो गए. दीदी बोलीं, ‘संयोग से डाक्टरनी के हसबैंड तुम्हारे जीजाजी को जानते हैं, बोले हैं कि वे सारा इंतजाम करवा देंगे.’

‘पर मैं अकेले जाने के लिए तैयार न हुई, कहा, ‘दीदी, जैसे इतने दिन गुजर गए हैं वैसे 2-3 दिन और गुजर जाएंगे. मैं अकेले न जाऊंगी.’

‘दीदी ने कहा, ‘मूर्ख मत बन. अब तुम्हारे लिए एकएक मिनट भारी पड़ रहा है. गर्भ में भ्रूण बहुत तेजी से बढ़ता है. देर करोगी तो अबौर्शन न हो पाएगा. बच्चे को जन्म देना पड़ेगा. फिर तुम्हारी तो जिंदगी बरबाद होगी ही, बच्चा भी जीवनभर अभिशप्त जीवन जिएगा.’

‘किंतु मैं तैयार न हुई तो दीदी पापा के आने तक रुक गईं.

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