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‘‘हांहां अम्मा वही न, जो हमेशा नौकरों, मेहमानों और अपने बरतन सब अलग रखती थीं और अंकल ब्राह्मïण के अलावा अन्य निम्न जाति के लोगों को हेयदृष्टि से देखते थे. और तो और वे अपने घर में दलितों को तो न केवल जमीन पर बैठाते थे, बल्कि उन से स्पर्श होने पर नहाते भी थे. तुम दोनों सहेलियां बिलकुल एकजैसी विचारधारा वाली ही तो थी. एकदूसरे की पूरक, कट्टर जातिवादी. इसीलिए तो अचरच है अम्मा कि तुम्हें अचानक क्या हो गया इतना बड़ा परिवर्तन. बाबूजी बता रहे थे कि तुम ने अपनी विचारधारा बिलकुल पलट ली है,’’ दोनों बहनें एक स्वर में बोल उठीं.

‘‘हांहां वही मेरी पक्की सहेली तनुजा, पिछले साल तनुजा के पति दीनदयाल भयंकर रूप से बीमार हो गए. पीलिया से हुई बीमारी की शुरुआत कब गंभीर हेपेटाइटिस बी हो गया कि उन की जान पर ही बन आई थी. केजीएमसी अस्पताल में वे एक माह तक भरती रहे. बच्चों के आने तक उन की देखभाल घर के नौकरों ने ही की. शरीर में खून की बहुत कमी हो गई थी. डाक्टरों ने तुरंत खून का इंतजाम करने को कहा. लाख कोशिश करने पर भी खून का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. तब उन के ड्राइवर ने ही उन्हें सहर्ष 3 यूनिट खून दिया था, जिस की बदौलत किसी तरह पंडितजी की जान बच पाई थी. जो तनुजा हमेशा नौकरों के बरतन अलग रखती थी. उस समय वही हाथ जोड़ कर अपने घर के ड्राइवर कैलाश से कह रही थी, ‘‘बेटा किसी तरह अंकल की जान बचा लो." क्योंकि सभी परिचितों में केवल कैलाश ही था, जिस का ब्लड ग्रुप पंडितजी से मैच किया था और वह अपने मालिक के लिए सबकुछ करने को तैयार हो गया. अब उसी का खून उन की रगों में दौड़ रहा है. उस समय मैं और तेरे बाबूजी अस्पताल में ही थे. जो बात तुम्हारे बाबूजी के बरसों से समझाने से भी मुझे समझ नहीं आई, वह पंडितजी की दशा देख कर झट से समझ में आ गई.

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