‘‘क्या करूं अम्मा, बच्चों की पढ़ाई का इतना प्रेशर था कि मैं चाह कर भी नहीं आ पाई. पर, अब तो आ गई हूं और आप को पता है... दो घंटे में छोटी भी आ जाएगी.’’
‘‘क्या... छोटी भी आ रही है,’’ अम्मा ने हैरत से चहकते हुए पूछा.
‘‘हां, ये तो तू सही कह रही है, वह तो बचपन से ही ऐसी ही है,’’ कहती हुई अम्मा किचन से पानी और उस की पसंद के बेसन के लड्डू की प्लेट ले कर खुशी से हुलसती हुई आ गईं.
‘‘अरे वाह अम्मा, सारे जमाने के बेसन के लड्डू खा लो, पर आप के हाथ का स्वाद कहीं भी नहीं मिलता,’’ कह कर अंशू एकसाथ बेसन के दो लड्डू खा गई.
"अम्मा, अब मैं नहाधो लूं. तब तक छोटी और बच्चे भी आ जाएंगे, फिर एकसाथ सब मस्ती करेंगे."
‘‘अरे बिट्टो, खाने में क्या खाएगी बता दे. वही बनवा लेती हूं,’’ अम्मा ने कहा.
‘‘बनवा लेती हूं मतलब... आप ने खाना बनाने वाली लगाई है क्या? आप को तो कभी उन का काम पसंद ही नहीं था. आप तो इतना जातपांत और छुआछूत मानती थी, फिर ऐसा कैसे, कब और क्यों हो गया अम्मा,’’ अंशू ने हैरत से एकसाथ कई सवाल दाग दिए.
‘‘देखो बेटा, ध्यान से देखो. ये तुम्हारी अम्मा ही हैं न... तुम्हें याद होगा, जब तुम 12वीं में थीं, तुम्हारी अम्मा को टाइफायड हुआ था. तब लाख कहने के बाद भी इन्होंने काम वाली नहीं लगाने दी थी. मैं और तुम काम कर कर के पस्त हो गए थे,’’ कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए बाबूजी ने शायद अंशू के प्रश्नों को सुन लिया था और सो वे भी अम्मा को छेड़ने का कोई मौका कहां छोड़ने वाले थे.