सविता के छोटे बेटे विकास ने एक दिन आ कर अपनी मां से कहा, ‘‘मां, आप हम ढाई प्राणियों के लिए भी घरखर्च के लिए 2 हजार लेती हैं और भैयाभाभी के अलावा उन के 3 बच्चे हैं, उन से भी 2 हजार रुपए ही लेती हैं, यह कहां का न्याय है?"

‘‘क्यों रे, अब तू कमाने वाला हो गया है तो न्यायअन्याय समझाने आया है?जब तक तेरी नौकरी नहीं थी तब तक बड़े ही तो घर का पूरा खर्च चला रहा था. उस समय तेरा न्याय कहां चला गया था?’’ सविता ने उसी से प्रश्न किया. बड़े बेटे प्रवाश का वह नाम नहीं लेती थीं, ‘बड़े’ कह कर ही बुलाती थीं.

‘‘उस समय मैं कमाता नहीं था तो कहां से देता,’’ विकास ने सफाई दी.

‘‘संयुक्त परिवार का नियम ही यह कहता है कि जो कमाए और ज्यादा कमाए वही ज्यादा खर्च करे. और उस हिसाब से तेरी आमदनी बड़े से ज्यादा है इसलिए घर के खर्चें में तेरा योगदान ज्यादा होना चाहिए. पर मैं तो दोनों से बराबर ही लेती हूं. अगर तुम लोग अलग रहते तो क्या 2 हजार रुपए में खर्च चल जाता?’’ सविता ने तर्क किया.

‘‘क्यों नहीं चल जाता. हम लोगों का खर्च ही कितना है?’’ विकास बोला.

‘‘तो ठीक है, कुछ दिन तुम लोग अलग रह कर भी देख लो. जब तबीयत भर जाए तो साथ रहने आ जाना,’’ सविता ने दोटूक जवाब दे दिया.

विकास ने नौकरी लगते ही कंपनी के फ्लैट में जाने का सोचा था, पर उस समय तो सब के समझानेबुझाने के साथ ही रहने को राजी हो गया था मगर पिछले कुछ दिनों से उस की पत्नी दिव्या उसे कंपनी का फ्लैट लेने को उकसा रही थी. विकास ने उस के कहने पर क्वार्टर के लिए अरजी तो दे दी थी और एक फ्लैट उसे अलाट भी हो गया था, परंतु अलग जाने की बात को मां से कैसे कहे यह उस की समझ में नहीं आ रहा था.

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