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घबराहट से मौशमी के हाथों से मोबाइल छूट गया. ‘अब किसे बुलाऊं?’ तभी कुछ सोच कर उस ने अपने घर के पास रहने वाले अपने औफिस के हमउम्र सहकर्मी अनुराग को फोन लगाया और उसे सबकुछ बताया.

अनुराग मिनटों में उस के घर पहुंच गया और उस ने रोतीकराहती प्रीशा को गाड़ी में लिटा कर ड्राइव करते हुए एक बढ़िया अस्पताल की ओर गाड़ी मोड़ दी.

मौशमी घबराहट से धुकधुक करते दिल से दर्द से बेहाल रोती हुई बेटी को चुप कराने में लगी थी.

अस्पताल पहुंचते ही एमर्जेंसी वार्ड में डाक्टरों की टीम प्रीशा को चैक करने लगी. कुछ ही देर में एक सीनियर डाक्टर ने आ कर अनुराग और मौशमी से कहा, “आप की बिटिया के दोनों पैरों के घुटनों में मल्टिपल फ्रैक्चर हैं. उन का मेजर औपरेशन अभी करना पड़ेगा. आप वेटिंग लाउंज में वेट करिए. टैंशन मत लीजिए. सबकुछ अच्छा होगा.”

मौशमी औपेरेशन थिएटर के सामने वेटिंग लाउंज में पड़े एक रिक्लाइनर पर लेट गई. मन में खयालों का बवंडर चल रहा था.

‘प्रीशा का औपरेशन सफल हो जाए तो मैं अनाथालय के 2 बच्चों की पूरी पढ़ाईलिखाई स्पौंसर कर दूंगी. बस, वह अपने पैरों पर ठीकठाक खड़ी हो जाए.

‘उफ़, अगर औपरेशन के बाद उस के पांवों में लचक रह गई तो?

‘वह कभी चल ही नहीं पाई तो?

‘वह व्हीलचेयर पर हमेशा के लिए आ गई तो…’

मौशमी के जेहन में यों अनगिनत दुश्चिंताओं का लावा खदबदा रहा था और उस की आंखों से आंसू झर रहे थे.

उसे यों आंसू बहाते देख अनुराग उस के निकट आया और उस के कंधे थाम उस के आंसू पोंछ उस से बोला, “चिंता मत करो मौशमी. प्रीशा बहुत जल्दी ठीक हो जाएगी. आजकल ऐसे औपरेशन आम हैं. उस का औपरेशन करने वाले डाक्टर शहर के नामी डाक्टर हैं. प्रीशा सुरक्षित हाथों में है.”

अनुराग की ये बातें सुन मौशमी के आंसुओं का बांध टूट गया और वह अनुराग के कंधे से लग कर फूटफूट कर बिलख पड़ी.

प्रीशा के गिरने के बाद से ही वह मन ही मन घुट रही थी. बड़े भाई और देवर के घर आने के लिए साफसाफ मना कर देने पर वह बेहद बेबस महसूस कर रही थी. उस के शहर में बड़े भाई और देवर को छोड़ कर उस के परिचय के दायरे में कोई भी तो ऐसा नहीं था जो इस आड़े वक़्त में उस की ओर मदद का हाथ बढ़ा सकता. पति की मृत्यु के वक़्त इन दोनों के साथ संबंधों में कुछ कारणोंवश खटास आ गई थी, जिस की वजह से आज उन दोनों ने उस के बुरे वक़्त में उस का साथ नहीं दिया था. यह बात उसे रहरह कर खाए जा रही थी. साथ ही, इकलौती बेटी के ऊपर आई यह विपदा उसे शिद्दत से चिंतित कर रही थी, तभी उस ने अपने मोबाइल पर नज़र डाली. औपरेशन चलते हुए 3 घंटे बीत चुके थे. वह तेज चाल से वेटिंग लाउंज से निकल कर औपरेशन थिएटर के सामने पहुंच गई. औपरेशन थिएटर के बाहर लाल बत्ती अभी तक जल रही थी.

तभी वह भक्क से बुझ गई और कुछ ही देर में डाक्टरों की टीम बाहर आ गई.

“निश्चिंत हो जाइए मैडम, औपरेशन कामयाब रहा.”

“ओह डाक्टर, थैंक यू सो वेरी मच डाक्टर,” मौशमी ने दोनों हाथ जोड़ कर कृतज्ञतापूर्वक डाक्टर को शुक्रिया अदा किया.

अगले दिन भाई और देवर दोनों महज़ खानापूर्ति के लिए आधेआधे घंटे के लिए अस्पताल आए.

औपरेशन की पूरी रात और अगले दिन और रात अनुराग अपनी बीवी से शहर से बाहर जाने का बहाना बना कर उस के साथ पूरे दिन और रात रहा.

अस्पताल में लगभग एक सप्ताह के स्टे के दौरान अनुराग ने मौशमी को भरपूर मानसिक संबल दिया. इतना कि उस एक हफ्ते में वे दोनों खासे अच्छे मित्र बन गए.

वह अभी सालभर पहले ही मौशमी के सहकर्मी के रूप में डेपुटेशन पर उस के औफिस आया था.

अनुराग एक बेहद जिम्मेदार और समझदार, लेकिन तनिक स्वच्छंद प्रकृति का इंसान था. उसे शादी के बाद भी महिलाओं से गंभीर फ्लर्टिंग करने से गुरेज़ न था. अमूमन स्वच्छंद प्रकृति की महिलाएं उस की अतिआकर्षक, वाकपटु शख्सियत से आकर्षित हो उस के सामने बिछबिछ जातीं, लेकिन अनुराग ऐसी महिलाओं को तनिक भी भाव न देता. वह इस खेल का माना हुआ खिलाड़ी था. कोई महिला जितनी ज्यादा उस की इस किस्म की मंशा का प्रतिरोध करती, इस खेल में उसे उतना ही ज्यादा मजा आता.

जब से करीब वर्षभर पहले अनुराग डेपुटेशन पर उस के औफिस में आया था, वह पहले दिन से मन ही मन विधवा मौशमी के प्रति शिद्दत से आकर्षित था. उस को शुरू से ही वह भूरी आंखों और तीखे नयननक्श वाली कोमलांगी बहुत अच्छी लगी थी.

मौशमी दृढ़ चरित्र की, यथार्थवादी, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्थिर महिला के तौर पर अपने औफिस में लोकप्रिय थी, जो पति की मृत्यु के बाद इश्कबाज, ओछी मानसिकता वाले पुरुषों के प्रति एक्स्ट्रा सजग हो गई थी. वह किसी को अपने ऊपर हाथ तक न रखने देती. पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद वह उस की यादों के सहारे अपनी बेटी के साथ पूरी जिंदगी काटने का मानस बना चुकी थी.

अनुराग ने उस के स्वभाव की इस प्रवृत्ति को बहुत पहले भांप लिया था और इसलिए वह मौशमी से सुरक्षित फ़ासला बनाए रखता. मौशमी का सान्निध्य उसे बेहद भला लगता.

प्रीशा के अस्पताल प्रवास के बहाने उसे मौशमी को निकट से जानने का मौका मिला.

जैसेजैसे उसे मौशमी के साथ समय बिताने का मौका मिला था, वह उस से नज़दीकी बढ़ाना चाह रहा था, और इसी चाहत के चलते वह उस के निकट आता गया.

प्रीशा का अस्पताल प्रवास खत्म हुआ. उसे अस्पताल से घर आए दूसरा ही दिन था, कि उसे दोपहर बाद बहुत तेज बुखार आ गया.

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