कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अकील की मां ने बहुत खुशी के साथ रिश्ता करने की बात कही. ‘‘सलमा ने घर आ कर तारीफों के पुल बांध दिए पर अम्मा का चेहरा उतरा हुआ था. सलमा के मुंह से इन लोगों की तारीफें सुन कर वे गरज उठीं, ‘मु झे नहीं ब्याहना उस घर में अपनी लड़की को. वह घर है या इंसानों का जंगल. कुल मिला कर  14-15 आदमी होंगे घर में. जेठानियां हैं, जेठ हैं, ननदें हैं, देवर हैं, सासससुर हैं. मेरी लड़की भला किसकिस के नाजनखरे उठाएगी. इतने लोगों के बीच रह कर सुख का जीवन कैसे जी सकती है? फिर जब लड़के के मांबाप, बड़े भाईबहन मौजूद हैं तब उस की सारी आमदनी तो इन्हीं लोगों के हाथों में पहुंचती होगी.

ऐसा लड़का आजादी के साथ पत्नी के शौक कैसे पूरे कर सकता है? मैं नहीं दे सकती ऐसे घर में अपनी लड़की को.’’ यों कह कर अम्मा ने खालू के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया.  मैं सोचने लगा कि वाकई चाची का स्वभाव ऐसा ही है. वे चाहती हैं कि उन की लड़की किसी ऐसे घर में ब्याह कर जाए जहां कोई उस पर हुकूमत करने वाला न हो. घर में पूरी तरह से उसी का एकाधिकार रहे. इसलिए वे सदैव ऐसे वर की तलाश में रहती हैं जो अपने मांबाप का इकलौता हो. यदि घर में सासननद हों तो लड़का शादी के बाद अपनी पत्नी को ले कर अलग घर बसा कर रहने का इच्छुक हो.

इस के अतिरिक्त इस बात पर भी उन की नजर रहती है कि लड़के की आमदनी में हिस्सा बंटाने वाले तो घर में नहीं हैं अथवा लड़के पर किसी प्रकार का कोई पारिवारिक उत्तरदायित्व तो नहीं है. यदि घर में पढ़ने वाले छोटे भाईबहन हैं या शादी के लायक बहनें हैं तो घर में आय के क्याक्या साधन हैं. साथ ही, वे इस बात का भी ध्यान रखती हैं कि लड़के के सगेसंबंधियों से कभी उन का कोई  झगड़ा तो नहीं रहा है.  मु झे याद है कि एक बार उन के ही  पड़ोस के डा. रिजवी की बेगम ने  अपने देवर का पैगाम भेजा था. लड़का शिक्षा विभाग में व्याख्याता पद पर नियुक्त हुआ था और प्रादेशिक शिक्षक संघ का महामंत्री था. साजिद चाचा को यह रिश्ता एकदम पसंद था. वाजिद को भी यह रिश्ता पसंद था क्योंकि लड़के के भाई, बाप, चाचा आदि सभी राजपत्रित अधिकारी थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...