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उन के विचार से यदि उन्होंने स्वयं को अपने वास्तविक लक्ष्य से हटा कर राजनीति में उल झा दिया होता तो आज जो कुछ उन्होंने अर्जित किया है, कदापि नहीं कर पाते. ‘‘इस भेंट में डा. तनवीर ने यह भी कहा कि वे देश की वर्तमान राजनीति और नेताओं को बहुत ही तुच्छ मानते हैं. ‘‘निश्चित ही उन के ये विचार अब्बा के विचारों से भिन्न थे. वे तो अपने भावी दामाद को अपने ही रंग में रंगा देखना चाहते थे. फिर यहां तो मामला बिलकुल उलटा था.’’ ये पंक्तियां पढ़ कर मेरे भीतर आक्रोश की एक लहर दौड़ गई. साजिद चाचा का मैं बहुत आदर तो करता था लेकिन उन के व्यक्तित्व के इस पहलू से मु झे बेहद चिढ़ थी.

राजनीति और नेतागीरी उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गई थी और वे यह मानते थे कि आज के युग में यदि कोई सुखमय जीवन व्यतीत करने की क्षमता रखता है तो केवल एक सफल नेता ही. इस में व्यक्ति खोता कुछ नहीं है और पाता सबकुछ है. सूफी के लिए वे सदैव ऐसे ही वर की खोज में रहे हैं.  मु झे याद है कि एक बार उन्होंने एक  ऐसे लड़के को पसंद किया था जो  3 बार बीए की आखिरी परीक्षा में फेल हो चुका था और चौथी बार परीक्षा में बिठाने से उस के बाप ने उसे रोक दिया था. उन्हीं दिनों विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. इस लड़के ने एक प्रत्याशी के लिए चुनावप्रचार का कार्य शुरू कर दिया. बाद में वह प्रत्याशी तो चुनाव हार गया परंतु इन साहबजादे ने चुनावप्रचार से प्राप्त इतनी रकम बाप को जुटा दी जितनी 3 वर्ष में उस की पढ़ाई पर खर्च नहीं हुई थी. यह देख कर बाप का हौसला बढ़ा और उस ने इसे नगरनिगम के चुनाव में खड़ा कर दिया.

साहबजादे चूंकि लंबी अवधि तक कालेज में रहे थे, इसलिए छात्रवर्ग से अच्छे संबंध थे. सो, उन के ही माध्यम से अपने लड़के के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों को बिठा दिया जिस से वह निर्विरोध पार्षद हो गया.  साजिद चाचा उस के इस गुण से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उस लड़के की प्रतिभा को परख कर उसे अपना दामाद बनाने का निश्चय कर लिया परंतु जब घर में बात चली, चाची और वाजिद से परामर्श हुआ तो गाड़ी पटरी से उतर गई. वाजिद ने इस रिश्ते को एकदम नापसंद कर दिया. उस का कहना था कि गुंडागर्दी के आधार पर चुनाव जीतना कोई बड़ा कारनामा नहीं है. ऐसे लोग जितनी जल्दी ऊपर चढ़ते हैं, उतनी ही जल्दी नीचे भी गिर पड़ते हैं. इसलिए वह सूफी के लिए ठोस धरातल पर खड़े किसी लड़के को ही पसंद करेगा. साजिद चाचा ने बहुत तर्क दिए परंतु वाजिद को राजी नहीं कर सके. ऐसा एक बार नहीं, अनेक बार होता आया है.

‘‘इन लोगों के विचारों की इस भिन्नता का नतीजा जाहिर है. लेकिन शिकायत अब्बा की ही क्या की जाए, भाईजान के दृष्टिकोण से भी आप परिचित हैं.’’ हां, वाजिद के दृष्टिकोण से भी मैं परिचित हूं. बहुत पहले कहीं से एक प्रस्ताव आया था. लड़का किसी सरकारी प्रतिष्ठान में प्रबंधक था. विभागीय परीक्षाएं देने के बाद पदोन्नति के अवसर थे. लड़का स्वस्थ और सुंदर था. बाप पुलिस विभाग में किसी ओहदे पर थे. घर में केवल मां थी. सबकुछ ठीक था. सूफी की मां को यह रिश्ता बहुत पसंद था और उन्होंने साजिद चाचा को भी किसी प्रकार तैयार कर लिया था परंतु वाजिद ने केवल इसलिए इसे नापसंद कर दिया था कि लड़के के अन्य रिश्तेदार सामान्य परिवारों से संबंध रखते थे. इन रिश्तेदारों में कोई डाक्टर, इंजीनियर, कलक्टर आदि नहीं था. उसे यह गवारा नहीं था कि उस की बहन ऐसे लोगों में ब्याह कर जाए जो सामान्य स्तर के हों.

एक अन्य रिश्ता केवल इसलिए   पसंद नहीं आया था कि लड़का  जिस व्यवसाय में था, उस में ऊपरी आमदनी के साधन नहीं थे. उस का विचार था कि सीमित आय वाला व्यक्ति समय के अनुरूप जीवनयापन करने में असमर्थ रहता है. इस प्रकार सूफी के लिए वर का चयन करते समय वाजिद जिस मापदंड का प्रयोग करता है, उस से मैं कभी पूरी तरह सहमत नहीं रहा. उसे ले कर भी सूफी की शिकायत मु झे उचित ही लगी. मैं आगे पत्र पढ़ने लगा. ‘‘इन दोनों के अतिरिक्त घर में मां हैं. उन की अपनी अलग ही सोच है. यदि  किसी बिंदु पर अब्बा और भाईजान एकमत हो जाते हैं तो मां अड़ जाती हैं अपनी पसंद पर.

‘‘पिछली गरमी में छोटे खालू घर आए थे. उन के बड़े भाई का लड़का अकील स्टील फैक्टरी में इंजीनियर है. अम्मा उन के घर गई थीं. सलमा भी साथ गई थी. उस ने आ कर बताया था कि इन लोगों का खुद का बहुत बड़ा मकान है. घर में हर प्रकार की सुखसुविधा के आधुनिक साधन उपलब्ध हैं. अकील की मां बहुत मिलनसार, हंसमुख और रहमदिल महिला हैं. घर में अकील की 3 बहनें हैं. एक की शादी हो चुकी है. 2 अभी पढ़ रही हैं.  4 भाई हैं. 2 छोटे, 2 बड़े. बड़े भाइयों की पत्नियां भी शिक्षित और व्यवहारकुशल हैं. ये सब लोग संयुक्त परिवार के रूप में हंसीखुशी साथ रहते हैं. ‘‘सब ने अम्मा का खूब आदरसत्कार किया.

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