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“यही कि आयुषी शादी के बाद जौब करने का नाम भी नहीं लेगी. और उसे उन के हिसाब से चलना पड़ेगा. अब बता, जहां इंसान को अपनी एक छोटी सी छोटी बात के लिए ससुराल वालों का मुंह ताकना पड़े, वहां कोई खुल कर सांस भी कैसे ले सकता है, भला? आयुषी के मांपापा ने तो यही सोच कर बेटी को उन के घर ब्याह दिया कि इतने बड़े घर में बेटी की शादी हो रही है तो उसे नौकरी करने की जरूरत ही क्या है. सही बात है, लेकिन इंसान की अपनी भी कोई ज़िंदगी होती है कि नहीं? शादी के बाद न तो वह अपनी ससुराल वालों से पूछे बिना अपने किसी दोस्त से मिल सकती है, न ही अपने मन का कुछ कर सकती है. यहां तक कि अपने मांपापा से मिलने के लिए भी उसे पति और सासससुर की इजाजत लेनी पड़ती है.”

“ओह, बाप रे,” दीप्ति भौचक्की सी बोली, “वैसे, सुना है बहुत बड़ा परिवार है उस का.”

“हां, सही सुना है तुम ने. आयुषी के ससुर के दोनों छोटे भाई, उन के परिवार, एक विधवा बूआ सास और 85 साल की दादी सास, सब एकसाथ एक ही घर में रहते हैं. उन का अपना कपड़े का बिजनैस है जिसे सब साथ मिल कर चलाते हैं.”

“इस का मतलब भरापूरा परिवार मिला है उसे,” दीप्ति हंसी.

“भरापूरा परिवार नहीं, बड़ा बुरा परिवार मिला है उस बेचारी को. आजाद पंछी की तरह उड़ने वाली लड़की पिंजरे में कैद हो कर रह गई है,” अफसोस जताती कनक बोली, तो हंसती हुई दीप्ति बोली कि हां, मगर सोने के पिंजरे में.

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