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“नहीं, मतलब जौब तो करूंगी ही करूंगी मैं. लेकिन अगर पति बहुत पैसे वाला हो तो पैसा जोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी न मुझे, समझ. आराम से उड़ाऊंगी और क्या,” दीप्ति हंसी और बोली, “सोच रही हूं इस बार मेरे मनमुताबिक कोई अच्छा लड़का मिले तो हां कर दूंगी शादी के लिए.”

“ये ले, अब तुझ जैसी काबिल और सुंदर लड़की को अच्छे लड़के की क्या कमी. खुद तेरे औफिस में ही तुझ पर कई मरने वाले हैं. लेकिन तू ही है कि किसी को घास नहीं डालती,” बोल कर कनक हंसी.

“अरे, तू भी क्या बोल रही है,” दीप्ति झेंप गई. लेकिन कनक को पता है कि कैसे औफिस में सब उस से दो बातें करने को तरसते हैं. पर दीप्ति ही है कि किसी को भाव नहीं देती. और वो जिगर तो दीवाना ही है इस का. दीप्ति को खुश करने के लिए जाने वह कैसेकैसे स्वांग रचता है. अकसर वह अपने घर से अपनी मां के हाथों का बना थेपला, बटाटा बड़ा, भजिया और जाने क्याक्या गुजराती डिश ले कर आता ताकि दीप्ति खा कर उस की तारीफ करे. वह तरसता कि दीप्ति एक बार उस की बाइक के पीछे आ कर बैठ जाए, तो उस की बाइक धन्यधन्य हो जाए. लेकिन दीप्ति थी कि उसे जरा भी भाव नहीं देती थी. वैसे, वह उसे क्यों भाव देने लगी क्योंकि एक तो वह उस से एक पोस्ट नीचे था और दूसरा, दोनों अलगअलग जाति से थे. जहां दीप्ति राजपूत घराने की लड़की थी वहीं जिगर खांटी गुजराती परिवार से थी. दोनों का कहीं से भी मेल नहीं था. न खानपान में और न ही बातविचार में. बस, एकसाथ एक ही औफिस में काम करने से क्या वह उसे पसंद करने लगेगी...

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