कंपनी के टूर पर हरि मुंबई गया हुआ था. वह 3 दिन मुंबई में रुका. सारा दिन कंपनीकार्य में कट जाता और शाम के समय कंपनी गेस्टहाउस आ जाता. लेकिन मन में हर शाम एक खयाल आता. बहन यहीं रहती है, जा कर मिल ले. मगर हरि के पैर गेस्टहाउस से बाहर नहीं निकले.

टीवी देखते समय मस्तिष्क के किसी बंद कोने से पुरानी यादें बाहर आने लगीं. बड़ी बहन है, बचपन में एकसाथ हंसते, खेलते, लड़तेझगड़ते खूब मस्ती करते थे. लड़ाई होती लेकिन बस कुछ पलों की, आधा घंटा, 2 घंटे. फिर एकसाथ खेलने लगते. वो बचपन के प्यारे दिन, कोई छलकपट नहीं, क्या तेरा और मेरा. सब मिलबांट कर काम करते थे. बड़े होते हैं, तो दूरियां बनती जाती हैं. कभी सोचा नहीं था कि इतनी दूरियां हो जाएंगी. मिलना तो छोड़ो, फोन पर भी बात नहीं होती है.

जब दिल में खटास आ जाए, दरार पड़ जाए तब गांठ न तो खुलती है, न ही दिल मिलते हैं. दूरियां नदी के दो पाट होती हैं, जो मिलते ही नहीं. कोई सेतु भी तो नहीं बनता, जो मिला दे. हरि की इसी सोच ने उसे शाम के समय गेस्टहाउस से बाहर निकलने नहीं दिया. कुछ ही दूर जुहू बीच था, वहां भी नहीं गया.

हरि के कंपनी टूर हर महीने लगते थे, जहां भी जाता, बच्चों और पत्नी के लिए कुछ न कुछ छोटीमोटी खरीदारी अवश्य करता. मगर इस टूर पर कोई खरीदारी भी नहीं की. 3 दिनों बाद दिल्ली वापस जाने के लिए एयरपोर्ट पहुंचा. फ्लाइट में अभी समय था. कंपनी का जब काम समाप्त हुआ, हरि भरेमन से एयरपोर्ट पर गया.

सिक्योरिटी चैक के बाद एयरपोर्ट की दुकानों में रखे सामान देखने लगा. चाहिए तो कुछ भी नहीं था, फिर भी समय व्यतीत करने हेतु हर दुकान पर खड़ा हो जाता. खरीदना कुछ भी नहीं था, लेकिन तन्मयता के साथ दुकानों में रखे सामान के दाम देखने लगा, शायद कुछ कम कीमत का सामान मिल जाए जिस की उसे उम्मीद न के बराबर थी.

‘हरि, हरि.’ उसे ऐसा प्रतीत हुआ कोई उस को पुकार रहा है. कौन हो सकता है? एक प्रश्न उस के जेहन में उभरा. ‘हरि,’ अब आवाज एकदम निकट से थी. उस ने आवाज की दिशा में गरदन घुमा कर देखा, बहन. हरि के पीछे उस की बड़ी बहन सरिता खड़ी थी. वह बहन, जिस के बारे में हरि 3 दिनों से सोचता रहा, लेकिन न फोन किया, न मिलने गया. आज एक लंबे अरसे बाद हरि का बहन से मिलना हुआ और आश्चर्यभाव लिए उस ने बहन को गले लगाया. ‘बहन, कैसी हो?’

‘मैं तो अच्छी हूं. तुम यहां एयरपोर्ट पर. मुंबई कब आए और अब कहां जा रहे हो?’ बहन सरिता ने एकसाथ कई प्रश्न पूछ लिए.

‘मुंबई कंपनी के काम से आया था, अब वापस दिल्ली जा रहा हूं.’

‘घर मिलने नहीं आए और फोन भी नहीं किया? बहन से नाराजगी दूर नहीं हुई अब तक?’ सरिता के व्यवहार में उसे कुछ परिवर्तन दिखा.

‘गलत मत सोचो, बहन. नाराजगी कुछ नहीं है. सुबह कंपनी के काम से आया था और शाम वापस जा रहा हूं. काम समाप्त होने के बाद समय नहीं मिला,’ हरि ने बहन सरिता को स्पष्टीकरण दिया.

यहां हरि झूठ बोल गया, जबकि वह पिछले 3 दिनों से मुंबई में था और बहन की यादों की कशमकश भी थी. ‘अच्छा बहन, तुम एयरपोर्ट पर अकेली, जीजा कहां हैं?’

‘भाई, सब बेंगलुरु गए हैं. मैं भी वहीं जा रही हूं. सास की तबीयत ठीक नहीं है. बड़े भाईसाहब के घर में हैं. कभी भी अंतिम सांस ले सकती हैं. तुम्हारे जीजा एक सप्ताह से बेंगलुरु में हैं,’ सरिता ने हरी को बताया.

आज लगभग 10 वर्षों बाद हरी और सरिता मिल रहे थे. 55 वर्ष का हरी और उस की बड़ी बहन सरिता 61 वर्ष की. हरि कुछ यादों में खो गया. हरि और उस की बहन में आर्थिक अंतर बहुत अधिक था. हरि एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था और उस का बहनोई एक सफल व्यापारी. बड़ी दुकान, बड़ा औफिस. नौकरी के कारण हरि की आर्थिक स्थिति व्यापार जगत में विशेष स्थान रखने वाली बहन और बहनोई के मुकाबले कुछ भी नहीं थी. बच्चों की उच्चशिक्षा और विवाह के लिए धनअर्जन की खातिर वह अपनी इच्छाओं को दबा देता था. 10 वर्षों पहले धनी बहन-बहनोई की बड़ी पुत्री के विवाह पर हरि कुछ अधिक उपहार नहीं दे सका, जिस कारण विवाह समारोह पर सरिता की सास के तानों पर हरि बहन-भाई के नाजुक रिश्ते की अहमियत को ध्यान में रखते हुए चुप रहा.

अपनी सास और दूसरे बड़ेबूढ़ों के आगे सरिता भी बेबस थी. उस ने मौके की नजाकत नहीं समझी. सास और घर के अन्य बूढ़ों के आगे उस ने भी हरि को खरीखोटी सुना दी कि खाली हाथ आने से अच्छा होता, शादी में न आता. कम से कम उसे ताने तो नहीं सुनने पड़ते. हरि अपनी हैसियत से अधिक उपहार ले कर गया था लेकिन बहन सरिता की सास और दूसरे बड़ेबूढ़ों की नाक के नीचे वे उपहार नहीं उतरे. उन के परिवार में भांजी की शादी पर मामा के घर से चूड़ा और अन्य कीमती उपहार की प्रथा थी. हरि मौके और रिश्ते की नजाकत समझता था, इसलिए चुपचाप खून का घूंट पी लिया. परंतु सरिता अपना आपा खो बैठी.

उस दिन जो दिलों में दूरियां बनीं, उन को आज 10 वर्ष हो गए. उस दिन के बाद वह बहन से कभी नहीं मिला और फोन भी नहीं किया. बहन-भाई का रिश्ता टूट गया. आज 10 वर्षों बाद सरिता की सास अंतिम सांस ले रही है. एयरपोर्ट पर दोनों की मुलाकात अचानक हो गई. 10 वर्ष की कुट्टी के पश्चात दोनों के मन की खटास खुद दूर हो गई, यह कुदरत का करिश्मा ही रहा जब सरिता ने एयरपोर्ट पर विंडो शौपिंग करते देख हरि को आवाज दी. और हरि ने पलट कर बहन को गले लगा लिया. हरि खयालों से बाहर आया, बोला, “बहन, खड़ेखड़े थक जाओगी. चलो, बैठ कर बात करते हैं.”

दोनों की फ्लाइट उड़ने में समय था. एक घंटे तक दोनों परिवार की कुशलक्षेम पूछते रहे और अपने दिल का हाल बांट कर पुराने गिलेशिकवे भुलाते रहे. समय ने दोनों को दूर किया और अचानक मिलवा कर नजदीक किया. दोनों ने पिछले 10 वर्षों में कभी नहीं सोचा था कि फिर कभी कहीं इतनी आत्मीयता से मिलना होगा.

फ्लाइट का समय हो गया. हरि दिल्ली आ गया और सरिता बेंगलुरु चली गई. दिल्ली आने के बाद हरि औफिस के काम में कुछ अधिक व्यस्त रहा, जिस कारण हरि पत्नी से सरिता के मिलने का जिक्र नहीं कर सका. सुबह जल्दी औफिस जाना और रात देर से घर वापस आना. रविवार की छुट्टी पर हरि ने पत्नी से एयरपोर्ट पर सरिता के मिलने का जिक्र किया. पत्नी हरिता चुप रही. उस ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की.

विवाह समारोह में अपने पति का अपमान वह नहीं भूली थी. हरि ने सरिता को माफ कर दिया था हालांकि बोलचाल 10 वर्षों बाद हवाईअड्डे पर हुई लेकिन हरिता ने ननद सरिता और उस की ससुराल को अभी भी माफ नहीं किया था. एक भारतीय नारी होने के कारण वह भरी बिरादरी में अपने पति का अपमान नहीं सहन कर सकी थी. हरिता के मन की दशा भांप कर हरि ने बात आगे नहीं बढ़ाई.

एक सप्ताह बाद रविवार के दिन टैलीफोन की घंटी बजी. लैंडलाइन पर फोन आया. लैंडलाइन फोन सिर्फ इसलिए नहीं कटवाया, घर पर मोबाइल के सिग्नल नहीं आते थे. हरी बाजार से फलसब्जी लेने गए थे. हरिता ने फोन उठाया. “भाभी,” हरिता की आवाज सुन सरिता ने कहा. हरिता कुछ नहीं बोली. फोन कान पर लगाए चुप रही. उस की आंखें नम हो गईं.

सरिता की सास के निधन का समाचार सुन कर हरिता रो पड़ी. “भाभी, रोते नहीं हैं. क्या मुझ से अभी भी नाराज हो?” सरिता का गला रुंध गया.

“नहीं दीदी. कोई नाराजगी नहीं. उठाला कब है?” हरिता ने पूछा.

“बुधवार को बेंगलुरु में है.” इतना सुन हरिता ने फोन रख दिया.

सरिता समझी कि हरिता अभी भी नाराज है. सरिता की सास की मृत्यु पर हरिता के मन में सभी गिलेशिकवे दूर हो गए. गिलेशिकवे की जो वजह थी वही चली गई तब किस बात की नाराजगी. सास और दूसरे बुजुर्गों के आगे सरिता बेबस थी. हरिता सब समझती थी. उस की नाराजगी भाई-बहन के संबंध तोड़ने पर थी. सरिता ने राखी भी भेजनी छोड़ दी थी. बांधने नहीं आती लेकिन डाक से भेज तो देती. 10 वर्षों से सरिता ने हरि को राखी भी नहीं भेजी थी. भरी बिरादरी में उस ने सास का साथ दिया, मगर भाई से राखी का संबंध तो न तोड़ती. डाक से भेज देती, कभीकभार फोन कर देती. यह सब वह सोच ही रही थी कि हरी फलसब्जी ले कर घर आए.

हरिता ने सरिता की सास की मृत्यु का समाचार दिया. हरी हमें उन के उठाले पर जाना चाहिए. तुम टिकट बुक करवा लो. “क्या तुम जाना चाहती हो?” हरि ने हैरत से पूछा.

“गमी के मौके पर हमें अवश्य जाना चाहिए. पूरी उम्र नाराजगी के बोझ के साथ नहीं जीना चाहिए. कारण चला गया, नाजरगी भी जानी चाहिए.”

हरिता ने अपने आने की सूचना सरिता को दी. यह सूचना सुन कर सरिता की आंखों में आंसू आ गए.

अपनी सास के उठाले पर हरि और हरिता को देख सरिता अति प्रसन्न हुई. गले लगा कर भाईभाभी का स्वागत किया. जिन बुजुर्गों ने हरि का मजाक सरिता की सास के साथ मिल कर उड़ाया था वे आज चुपचाप दांतों तले उंगली दबा कर हैरानी से देख रहे थे.

आज बुजुर्गों की परवा किए बिना हरि के बहन-बहनोई ने सब के सामने हरि और हरिता को गले लगा कर स्वागत किया. रिश्तों पर जमी बर्फ पिघल गई. हैरानपरेशान बुजुर्गों के सामने हरि और हरिता के मुख पर आत्मविश्वास की मुसकान थी

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