India-Pakistan War : पाकिस्तान सरकार व उस के साए में पलते आतंकवादी आखिर यह सोच कैसे पाते हैं कि वे कहीं पर, कभी भी भारत के निहत्थे निर्दोषों को गोलियों से भून कर भाग जाएंगे और देश चुप बैठा रहेगा. वर्ष 1965 और 1971 के युद्धों और कारगिल की झड़पों ने साबित कर दिया है कि चाहे जो भी कीमत हो, पाकिस्तान हो या कोई और देश, भारत चुप न बैठेगा, चाहे उस का प्रधानमंत्री कोई भी हो, किसी भी पार्टी का हो.

आतंकवादियों से निबटने में बस एक खतरा हर प्रधानमंत्री को मोल लेना होता है कि कहीं बात इतनी न बढ़ जाए कि आणविक हथियार सामने आ जाएं.

भारत द्वारा 7 मई से 10 मई तक मिसाइलों से आतंकवादियों के 9 ठिकानों पर जो हमले किए गए हैं वे न आखिरी हैं न पूरे जोर वाले हैं. यह पक्का है कि भारत आतंकवाद का उत्तर देगा और इस का दंड हो सकता है उन को भी भुगतना पड़े जो इन आतंकवादियों के आसपास रह रहे हैं. आतंकवादी हमेशा जनता में घुलेमिले रहते हैं ताकि दुश्मन उन्हें मार न पाए. वे इतने कायर होते हैं कि न अपना नामपता बताते हैं, न यह तक बताते हैं कि वे किस गुट के हैं. आमतौर पर उन्हें भेजने वाले गुट भी छोटे सनकियों के होते हैं जो 100-200 लोगों को जमा कर के भारत जैसे देश पर हमला करने को तैयार हो जाते हैं.

उन्हें पकड़ने के लिए अगर वह देश, जहां ये पनप रहे हैं व पनाह ले रहे हैं, खुद आगे नहीं आता तो पीडि़त देश को पूरा हक है कि वह अपनी जानकारी और सम झ से बदले की कार्रवाई करे, चाहे उस से दोनों देशों के निहत्थों, निर्दोषों की जान भी चली जाए. आतंकवाद का मुकाबला करना हर सरकार का पहला कर्तव्य है और उस में कोई भी कसर छोड़ी नहीं जा सकती.

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