कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

3 महीने बाद जब कुसुम घर आई तो उसे देखने पूरा गांव उमड़ पड़ा था. जैसे ही कुसुम के आने की जानकारी संगीता को हुई, वह भी कुसुम के घर जा पहुंची थी. उस के मन में जो भावना थी कि मां अगर अपनी पागल बेटी की सेवा नहीं कर सकती तो डाक्टर या नर्स क्या करेंगे, कुसुम से बातचीत होने के बाद यह भावना बदल गई थी. कुसुम ने बताया था कि कोई पागल अगर डाक्टर या नर्स को थप्पड़ भी मार देता है तो पलट कर मारने की कौन कहे, वे खीझते तक नहीं हैं. यह जानने के बाद संगीता के मन में अस्पताल के प्रति विश्वास उपजा था. शायद निधि अस्पताल जा कर ही ठीक हो जाए. आखिरकार, निधि को अस्पताल भेजने का निर्णय संगीता ने कर लिया. इस के बाद उस ने बड़े बेटे को फोन कर के घर बुलाया. लेकिन जिस दिन से उस ने निधि को अस्पताल भेजने का निर्णय लिया था उसी दिन से उस की नींद उड़ गई थी. उसे लग रहा था कि उस ने यह निर्णय हार कर लिया है. इस से उस के दिमाग पर एक तरह का बोझ सा लद गया. अस्पताल पर उसे विश्वास हो गया था, यही उस के लिए बहुत बड़ी बात थी. निधि सयानी होती जा रही थी, तो संगीता बूढ़ी. बहुएं निधि के लिए कुछ कर नहीं सकतीं, यह बात संगीता अच्छी तरह जानती थी क्योंकि दोनों में से एक भी बहू ने आज तक कभी उसे अपने घर आने के लिए नहीं कहा था. बहुओं का ही क्या, बेटों से भी किसी तरह की उम्मीद नहीं रह गई थी. इस स्थिति में उसे अस्पताल में ही भरती करा देना ठीक है. इस से वह निश्ंिचत हो कर मर तो सकेगी कि निधि की सेवा कोई अपना नहीं, पराया तो कर ही रहा है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...