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तपन आज दुकान पर ही जाना चाहता था. अब बच्चों के स्कूल खुल गए थे और उसे विश्वास था कि इस वक्त उन की दुकान में इतनी बिक्री होगी कि 2 महीने का बैंक लोन वह आसानी से चुकता कर सकेगा. बैंक वालों ने कई बार तकाजा तो किया ही था, साथ ही इस बार चेतावनी भी दी थी कि अगर किस्त समय पर नहीं भरी तो वे दुकान पर ताला लगा देंगे. कुमार की पत्नी विभा तो इस बात से डर गई थीं, क्योंकि यह दुकान ही उन के भरणपोषण का एकमात्र जरिया थी, इसलिए तो वे दुकान को तीसरा बेटा मानती थीं.

तपन ने वकीलों की तरह जिरह करना शुरू कर दिया था कि मां ने लोन की किस्त भरने के लिए बैंक जाने को क्यों कहा, ‘‘लेकिन मां, ये पैसे तो दुकान का सामान लाने के लिए रखे थे न, अगर सामान नहीं आया तो हम बेचेंगे क्या?’’ ‘‘बेटा, यदि दुकान ही नहीं रही तो हम सामान का क्या करेंगे. अभी जो सामान दुकान में है उस की बिक्री से घर का खर्च चल जाएगा और दुकान में सामान भी आ जाएगा,’’ तपन को किसी तरह समझाबुझा कर मां ने लोन की किस्त भरने उसे बैंक भेज दिया और खुद किचन में चली गई. किचन का काम जल्दीजल्दी निबटा कर उन्हें दुकान पर भी जाना था. इधर कुमार साहब की तबीयत भी ठीक नहीं है. कई दिन से खांसी हो रही है, नहीं तो दोचार घंटे वे भी दुकान पर बैठ जाते.

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तपन की वकालत की पढ़ाई के 6 महीने ही बाकी हैं. एक बार वह अच्छे नंबरों से पास हो गया और किसी कौरपोरेट औफिस में लग गया तो उन के सारे दुखदर्द हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे. बड़े बेटे से तो कोई आशा थी नहीं. विवाह के बाद से वह घर से अलग ही रहता था. सारी आशा उन की तपन पर ही टिकी थी. इसलिए उन्होंने सोच रखा था कि तपन जब अपने पांव पर खड़ा हो जाएगा, तभी वे उस की शादी करेंगी. कोई पूछता भी कि आप के कितने बेटे हैं तो विभा बडे़ अजीबोगरीब ढंग से कहतीं कि एक तो यह तपन है और दूसरी यह दुकान है जो हमें कमा कर खिला रही है. यदि कोई भूलेभटके बड़े बेटे के बारे में पूछता तो वे तीखी नजरों से सामने वाले को भेदती हुई कहतीं कि जले पर नमक छिड़कना तो कोई आप से सीखे. आप को सब मालूम ही है, फिर उस से ही जा कर क्यों नहीं पूछते?

कुमार की पत्नी विभा ने बड़े बेटे की तसवीर तक उठा कर अटैची में रख दी थी. उस से अब कोई नाता ही नहीं था. किचन से बाहर आ कर तौलिए से हाथ पोंछती हुई विभा सोच रही थीं कि यह दिमाग भी हर समय चलता ही रहता है. अगर इंसान भी बिना पैसे लगाए दिमाग की तरह घूमघाम आता तो कितना अच्छा होता. रातदिन की झिकझिक से छुटकारा मिल जाता. फिर वे खुद पर हंसीं. कलाई घड़ी में देखा तो 10 बजने को थे. उन्हें देर हो रही थी. तपन भी बैंक से सीधे दुकान पर ही पहुंचेगा. उन्हें निकलना चाहिए. वे चप्पल पहन कर दुकान पर जाने के लिए निकल ही रही थीं कि अचानक मोबाइल की घंटी बज उठी. किस का फोन हो सकता है, इस समय. क्या तपन ने बैंक में किसी से कोई मारपीट तो नहीं कर ली. यह लड़का भी न अजीब है, सोचता कुछ है और करता कुछ है. आज भी तपन के घर से निकलने से पहले उन्होंने कहा था, ‘‘तपन, खाली पेट घर से नहीं जाते, कुछ खा कर जाओ,’’ वह कितने दिन से कह रहा था, ‘मां, मछली बनाओ,’ लेकिन  पैसे की कमी से वे बना नहीं पा रही थीं. आज किसी तरह महीने के खर्चे में से पैसे बचा कर मछली बनाई थी तो बिना खाए ही चला गया.

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खाली पेट दिमाग भी गरम होता है. तपन ने मां से कहा था, ‘‘मैं आप को बैंक की रसीद दे कर घर वापस आऊंगा तो फिर खा लूंगा.’’ तपन ने कुछ खायापीया नहीं है, बैंक वाले से तूतूमैंमैं हो गई होगी. यह लड़का भी न. अभी वे घर से निकलना ही चाहती थीं कि फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी.

बिना कुछ पूछे उन्होंने झुंझला कर फोन पर कहा, ‘‘अब क्या हुआ तपन?’’

दूसरी तरफ से मर्दानी आवाज थी, ‘‘विभा… विभा…’’

‘‘हां, मैं विभा ही बोल रही हूं, क्या बात है?’’

उस की बात सुने ही उन्होंने पूछ लिया, ‘‘विभाजी, आप का बेटा…’’

‘‘क्या हुआ, तपन ने पैसे तो जमा कर दिए न, अगले महीने हम अगली किस्त दे देंगे.’’

सामने से फिर आवाज आई, ‘‘मैडम, मैं इंस्पैक्टर रवि बोल रहा हूं.’’

‘इंस्पैक्टर रवि,’ वे खुद से बुदबुदाईं. तपन तो मारधाड़ करने वाला लड़का नहीं है, फिर यह इंस्पैक्टर क्यों?

‘‘मैडम, आप सुन रही हैं न, आप फौरन यहां हाईवे पर आ जाइए. आप के बेटे तपन का ऐक्सिडैंट हो गया है.’’

‘‘क्या,’’ उन्हें जैसे करंट सा लगा. यह कैसे हो सकता है. जिस सिरे को पकड़ कर वह इतना बड़ा तानाबाना बुन रही हैं, वह अचानक उन के हाथ से छूट कैसे सकता है?

वे घबराहट में बोलीं, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? आप को जरूर कोई गलतफहमी हुई है. मेरा बेटा तो बैंक गया है.’’

‘‘मैडम, आप को जो भी सवाल पूछना है, वह यहां आ कर पूछिए, हमें और भी फौर्मेलिटीज पूरी करनी हैं,’’ कह कर इंस्पैक्टर ने फोन रख दिया.

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उन्होंने 2-3 बार फिर फोन ट्राई किया, लेकिन कोई जवाब न मिलने से तपन के बाबा को ले कर वे किसी तरह दुर्घटनास्थल पर पहुंचीं. वहां 2-3 पुलिस वाले और कुछ लोग मौजूद थे. खून के कुछ धब्बे सड़क पर सूख गए थे. पुलिस के पास जा कर उन्होंने पूछताछ की तो पुलिस वालों ने बैंक की रसीद, कुछ कागजात, उस का आईडी कार्ड निकाल कर उन्हें देते हुए बताया कि तपन को सरकारी अस्पताल में भरती कराया गया है.

 

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