कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अस्पताल पहुंचने से पहले ही उन्होंने बड़े बेटे को फोन किया और पूरी घटना की जानकारी दी. अस्पताल पहुंच कर बड़ी मुश्किल से वे तपन को देख पाए. उस के सिर में चोट लगी थी, जिस के कारण उसे आईसीयू में रखा गया था. अस्पताल में बैंच पर बैठी वे डाक्टर का इंतजार करती रहीं. विभा मन ही मन कुढ़ रही थीं कि यह सब उन्हीं की गलती है. न वे उसे बैंक भेजतीं न उस का ऐक्सिडैंट होता. वह तो दुकान पर ही जाना चाहता था. उस ने तो कुछ भी नहीं खाया. कैसी मां हूं मैं. खुद ही बेटे को मौत के मुंह में धकेल दिया. पर उन्होंने ऐसा कहां सोचा था कि तपन के साथ ऐसी दुर्घटना होगी. पास खड़े कौंस्टेबल ने भी बड़ी आत्मीयता से कहा, ‘‘बाई, घबराओ नहीं, सब ठीक हो जाएगा.’’ एक घंटा ऐसे ही बीत गया, तब तक बड़ा बेटा भी वहां आ गया था. उन्होंने रुकरुक कर उसे सारी बातें बताईं. उस ने दिलासा देते हुए कहा कि वह डाक्टर से मिल कर आता है. थोड़ी ही देर में बड़ा बेटा निराश सा चेहरा लिए बाहर आ गया.

‘‘मां, तुम बाबा को ले कर घर जाओ.’’

‘‘लेकिन तपन कैसा है? यह तो बताओ. रात को रुकना पड़ेगा तो मैं घर का काम खत्म कर के आती हूं.’’

‘‘मां, तपन अब कभी नहीं आएगा, मैं अस्पताल की सारी कार्यवाही पूरी कर के आता हूं. पुलिस वालों को भी जवाब देना है. सिर में गहरी चोट लगने से उस की मृत्यु हो गई है.’’ उन्होंने एक बार कौंस्टेबल की ओर देखा और धम से बैंच पर बैठ गईं. किसी तरह बड़े बेटे ने दोनों को रिकशे में बैठा कर घर भेज दिया. पूरे कौंप्लैक्स में यह खबर आग की तरह फैल गई थी. कारण यह भी था कि पूरे कौंप्लैक्स में यह एक अकेली जेरौक्स और स्टेशनरी की दुकान थी. नए फ्लैट खरीदने या किराए पर लेने हेतु एग्रीमैंट बनवाने के लिए इसी दुकान पर जाना पड़ता था. सब अपनीअपनी अटकलें लगा रहे थे, पर सब की एकमत राय यही थी कि अब यह दुकान तेरहवीं के बाद ही खुलेगी. बिना तेरहवीं के कोई मांबाप कैसे दुकान खोल सकते हैं. वह भी जब जवान बेटा मरा हो. भला उस की आत्मा को शांति कैसे मिलेगी?

ये भी पढ़ें-Short Story: का से कहूं-क्यों दोनों सहेलियां टूट कर बिखर गईं

कई लोगों ने शाम को उस के घर जा कर सांत्वना प्रकट करने की पूरी तैयारी भी कर ली. वहां पर क्या बोलना है मन ही मन उन्होंने इस की प्रैक्टिस भी कर ली. कुछ लोग पोस्टमार्टम के बाद डेडबौडी घर आने की प्रतीक्षा कर रहे थे. आसपड़ोस के लोगों और नातेरिश्तेदारों से उन का घर भरा हुआ था. कुछ महिलाओं ने अपने अनुभवों का खजाना खोलते हुए एकदूसरे को इशारे से देखते हुए कहा, ‘‘रो नहीं रही हैं. रोना तो जरूरी है, नहीं तो हार्ट अटैक हो सकता है.’’ एक पुरुष जो दिन में ही दारू चढ़ा लेता था और आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए हुए बड़े संवेदनशील स्वर में बोले जा रहा था, ‘‘अब होनी को कौन टाल सकता है, विभाजी, जब राम और कृष्ण इसे नहीं टाल सके तो इंसान की क्या बिसात. तुलसीदासजी तो एक ही लाइन में जीवन का सार समझा गए, ‘हानिलाभ, जीवनमरण, यशअपयश, विधि हाथ.’ ये सब तो उन के ही हाथ में है. हम इंसानों की क्या बिसात है. ‘‘मैं कालोनी वालों की तरफ से आप को आश्वासन दिलाता हूं कि तेरहवीं तक सब आप के आने का इंतजार करेंगे. तब तक कोई भी कहीं से जेरौक्स नहीं करवाएगा.’’

उस के इस जुमले से कई लोग आगबबूला हो गए, बड़ा नेता बनता है. एक रुपए के जेरौक्स में 75 पैसे ही देगा, बाकी पैसा मार लेगा और खुद कौंप्लैक्स वालों का ठेका ले कर घूम रहा है. अरे, किसी को इमरजैंसी होगी तो क्या 13 दिन तक वह इंतजार करता रहेगा. कई लोगों की तनी भृकुटी देख कर वह अपना काला चश्मा चढ़ा कर वहां से खिसक गया. विभा इस सारी बातचीत से उदासीन अपने खयालों में गुम थीं. कैसे तपन उन के पतलेदुबले शरीर को अपनी मजबूत बांहों में उठा कर घुमाते हुए कहता था, ‘मां, थोड़ा खापी कर तंदुरुस्त बनो, अन्यथा सास बनने का बोझ कैसे उठाओगी. तुम्हारी बहू तो तुम से डरेगी भी नहीं. इसीलिए तो भाभी तुम्हें छोड़ कर चली गईं. तुम हुक्म चलाने लायक मजबूत थी ही नहीं.’

‘हां, और तेरी बहू भी बात नहीं मानेगी न,’ वे हंसते हुए कहतीं.

‘कैसे नहीं मानेगी,’ उन्हें सोफे पर बैठाते हुए तपन कहता, ‘कुछ दिन की बात है मां, मेरी पढ़ाई पूरी होने दो. मैं ने विदेश में स्कौलरशिप के लिए अप्लाई कर दिया है. उम्मीद है, मिल ही जाएगी. उस के बाद अच्छी नौकरी मिल जाएगी, तब तुम्हें खिलापिला कर तंदुरुस्त बना दूंगा, फिर तुम दोनों जगह राज करना?’

‘दोनों जगह मतलब.’

‘दोनों जगह यानी दुकान पर और घर में, दुकान में एक आदमी रख लेना और घर में बहू रहेगी.’

‘फिर मैं दुकान क्यों जाऊंगी. उसे बंद कर दूंगी, रोजरोज की झिकझिक बंद…’

अचानक ही उस का चेहरा गंभीर हो जाता, ‘नहीं मां, इसे बंद मत करना, यह तुम्हारा तीसरा बेटा है. मैं विदेश जा कर अगर मेम ले आया या वहीं बस गया तो यह तुम्हारा तीसरा बेटा ही तो तुम्हारे काम आएगा.’

विभा उदास हो जातीं, ‘क्या तू भी भैया की तरह मुझे छोड़ कर चला जाएगा?’

‘नहीं मां,’ तपन हंसते हुए कहता, ‘तुम्हें लगता है मैं छोड़ कर चला जाऊंगा. बहुत दुख देखे हैं तुम ने. पापा की बीमारी, हमारी परवरिश, दुकान का रखरखाव सब के लिए तुम ने अपनी कभी परवा नहीं की. अब मैं तुम्हें देशविदेश घुमाऊंगा. तुम शहर से कभी बाहर नहीं गईं, मैं तुम्हें कोलकाता ले जाऊंगा. दुकान पर तब तक जिस आदमी को रखेंगे वह संभालेगा. तुम केवल महारानी की तरह उस से हिसाबकिताब मांगना और बहू के साथ शौपिंग करना.’

‘अच्छा, बहू की तरफदारी करता है. वह काम नहीं करेगी, केवल शौपिंग करेगी.’

कुमार साहब, मांबेटे की चुहल देखते हुए कहते, ‘क्या खुसुरफुसुर हो रही है मांबेटे के बीच.’

‘हां, आप की शिकायत हो रही है. बेटा तो मेरा है न.’

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...