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तभी हौल में खुसुरफुसुर शुरू हो गई. ‘‘आप गाइए, अरे, आप सुनाइए. आप तो कितना अच्छा गाती हैं.’’ सब एकदूसरे को आगे करने में लगे थे, तभी एक कमाल हो गया. हौल में उपस्थित अंगरेजी बैंड पार्टी हिंदी गीत की धुन बजाने को तैयार हो गई.

‘‘क्या, आप हिंदी धुन बजाएंगे? हिंदी गीत यहां भी इतने लोकप्रिय हैं क्या?’’सभी को बहुत आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी.

बैंड के ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी...’ गाने की धुन शुरू होते ही हौल में एक जोरदार हर्षध्वनि हुई और फिर रितु के नृत्य ने तो बस, समां ही बांध दिया.

उस के बाद तो कुछ कहनेसुनने की जरूरत ही नहीं रही. बैंड एक के बाद एक हिंदी सुरसंगीत बजाता रहा, नएपुराने गानों की बौछार होने लगी.

बारबार सुनेसुनाए अपने ही गीत उस पराई धरती पर नएनिराले अर्थ और भाव दे रहे थे. गर्वगौरव, मानअभिमान हर हिंदुस्तानी अपने ऊपर नए सिरे से नाज कर उठा.

रात रंगीन हो चली. फरमाइशी गानों की झड़ी सी लग गई. लोग भूखप्यास भूल गए. डिनर सर्व करने का समय भी हो गया. होटल के कर्मचारी अनमने से दिखने लगे तो बैंड ने क्षमायाचना सहित रात की अंतिम धुन की घोषणा कर दी, ‘अलीशा चिनौय की मेड इन इंडिया.’

हौल में जैसे धमाका हो गया. धूमधड़ाका मच गया. तालियों और सीटियों की आवाज गूंज गई.‘दिल चाहिए बस मेड इन इंडिया, प्यारा सोणिया...’ संगीत की स्वरलहरियों के साथ लगे सभी झूमने.

अगले दिन पुरुष वर्ग की कौन्फ्रैंस थी. गोष्ठियों और सेमिनारों की व्यस्तताएं थीं. कारोबारी काम थे. व्यापारिक सौदे होने थे.महिला वर्ग को व्यस्त रखने के लिए, थेम्स नदी पर जलविहार, ट्यूब ट्रेन की सैर और खरीदारी का कार्यक्रम रखा गया था.

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