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उसे देख हम दोनों बहुत खुश हुए और उस के लिए थाली में गरमागरम समोसे रख दिए. पर समोसों को जितना मेरा पुराना अनिल प्यार करता था उतना शायद नया नहीं. इसलिए उस के चेहरे के भाव समोसे देख कर भी न बदले. अचानक मुझे वह दिन याद आ गया जब सुमन ने उस के लिए समोसे बनाए थे और वह सारे खा गया था. सुमन को, बस, एक ही समोसा मिल पाया था, हाहाहा… वह दिन याद कर के आज भी मेरी हंसी छूट जाती है. उस दिन समोसे देख कर अनिल के मुंह पर जो इंद्रधनुष के सात रंग विराजे थे वे न जाने कहां गुम हो गए. तभी सुमन ने मुझे विचारों की नींद से जगाते हुए कहा, "अरे आप भी खाइए न."

"हूं..हूं..हां," मैं ने हड़बड़ाहट में कहा. पर जैसे ही मैं ने समोसे का पहला कौर खाया, मैं तो मंत्रमुग्ध हो गया. "समोसे तो लाजवाब बने हैं," मुझ से तारीफ किए बिना रहा न गया और मैं बोल पड़ा.मेरी बात सुन सुमन मुसकरा पड़ीं और कहा, "पर लगता है हमारे अनिल को अच्छे नहीं लगे." यह बात सुन अनिल ने कहा, "अरे…” वह कुछ कहता कि उस से पहले ही उस के फोन की घंटी बज गई. उस ने फोन उठाया और कहा, "अरे अतुल, कैसे हो?" फोन अतुल का था जो अनिल का पक्का दोस्त था.

अतुल अकसर हमारे घर आताजाता रहता था, इसलिए हम दोनों भी उस से अच्छे से घुलमिल गए थे. बड़ा ही नेकदिल लड़का है वह. अपने बेटे के मुंह से अतुल का नाम सुन हम दोनों बहुत खुश हुए, सोच रहे थे कि चलो, अतुल से बात कर के हमारे बेटे का मन तो बहलेगा. तभी अनिल बोला, "अच्छा, यह तो खुशी की बात है. हां, मैं जरूर आऊंगा." वह यह सब कह तो रहा था पर उस के चेहरे के भाव कुछ और ही कह रहे थे. अनिल ने फोन रख दिया.

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