लेखिका- काव्या कटारे
“अरे सुमन जी, आज तो आप ने पूरे घर को ही खुशबू की चाशनी में डूबो दिया है. हम से तो रहा न गया, इसलिए चले आए आप की जादुई दुनिया में. वैसे, अब बता भी दीजिए कि हम्म… तो अपने लाल की ख्वाहिश पूरी की जा रही है, समोसे बनाए जा रहे हैं. वही तो हम कहें कि इतनी सुगंध किस पकवान की है जिस ने हमारी नाक को अपने जाल में फंसा लिया है.”
“अच्छाअच्छा, ठीक है, बहुत मस्का लगा लिया. मैं जानती हूं यह सब आप मुझे खुश करने के लिए कह रहे हैं. वैसे भी, इन बूढ़े हाथों में अब वह बात नहीं जो सालों पहले हुआ करती थी, वरना जिस खुशबू ने दूसरे कमरे में जा कर आप की नाक को बंदी बना लिया है वह मेरे करीब तक न आई. अब तो इन हाथों में बस इतनी ही जान बची है कि वे मैदा को बेल कर, उस में आलू डाल कर तेल में तल सकें, स्वाद मिलाने का काम तो बहुत पहले ही बंद हो गया.”
मेरी पत्नी ने मेरी बातों का जवाब देते हुए उपरोक्त बात कही. उन की बातों में ऐसी मासूमियत थी कि मैं उन जवाब दिए बिना रह न पाया, “देखिए मिसेज सुमन चतुर्वेदी, आप को मेरी पत्नी की बुराई करने का कोई हक नहीं है. बेहतर यह होगा कि आप मेरे और मेरी पत्नी के बीच में न आएं. मैं ने अपनी पत्नी की बुराई करने का हक जब खुद को नहीं दिया तो आप को कैसे दे दूं.”
मेरी बात सुन वे फूलों की तरह खिलखिला उठीं और मुसकराते हुए कहा, “वैसे मिस्टर चतुर्वेदी, आप की जानकारी के लिए बता दूं कि मिसेज चतुर्वेदी आप की पत्नी है और मैं ही मिसेज चतुर्वेदी हूं.” यह कह कर वे और जोरजोर से हंसने लगीं.
आज बहुत दिनों बाद मैं ने अपनी पत्नी को इतना खुश देखा था. और तभी मैं ने कहा, “वैसे, आप को एक बात बता दूं, आप के हाथ भले ही समय के साथ बूढ़े हो गए हों पर आप के हाथों का स्वाद और भी जवान हो गया है.” मेरा इतना कहते ही वे शरमा गईं और दूसरी ओर मुंह फेर लिया. तभी मुझे खुराफात सूझी और मैं ने व्यंग्य करते हुए कहा, “वैसे, झुर्रियों वाले चेहरे को मैं ने पहली बार शरमाते हुए देखा है.”
मेरे यह कहते ही वे गुस्से में मेरी और मुड़ीं, “यह सही नहीं है चतुर्वेदी जी, पहले अंतरिक्ष की सैर करा दो, फिर जमीन पर धम्म से गिरा दो.””और जो आप अपने मुंह से अपनी झूठी बुराई कर के मेरे मुंह से अपनी तारीफ करवाती हो, वह सही है?” मैं ने उन्हें शक की निगाहों से देखते हुए कहा. वे मंदमंद मुसकाने लगीं. तभी मैं ने उन से शिकायत करते हुए कहा, “भई, यह बढ़िया है, बेटे को बना दो राजा, दिनरात उस की सेवा करो. और तो और, साहबजादे के लिए समोसे भी बनाए जा रहे हैं. हम पर तो कोई ध्यान ही नहीं देता. हम इतने दिनों से महरी बनाने को कह रहे हैं पर वह नहीं बनाई गई. बेटे ने जो एक बार समोसे बनाने को कह दिया, तो वह तो उसी दिन बनाए जाएंगे.”
“अरे, नहींनहीं, उस ने बनाने को नहीं बोला. वह तो मेरा मन हुआ, तो उस के लिए बना दिए,” पत्नी जी ने ने कहा.”तो यह तो और भी शिकायत करने की बात है. यहां हम बोलबोल कर थक गए और उसे बिना बोले ही समोसे मिल गए. वाह… वैसे, यह बताने की कृपा करेंगी कि उस की इतनी देखभाल क्यों की जा रही है.” मेरे ये शब्द उन के दिल में तीर की भांति चुभ गए और उन्होंने आंसूभरी आंखों से मुझे देखा. उन की आंख में दर्द साफ झलक रहा था. मैं सब समझ गया और मैं ने नजरें झुका लीं.
उन्होंने कहा, “वे अनिल को खाने के लिए बुलाने जा रही और वहां से जाने लगीं, तभी मैं ने उन्हें रोका और कहा, “मैं अनिल को खाने के लिए बुलाने जा रहा हूं.”मैं जैसे ही जीने चढ़ने के लिए मुड़ा, उन्होंने अपनी साड़ी से आंसू पोंछ लिए. मैं आहिस्ताआहिस्ता अपने कमजोर पैरों से जीने चढ़ने लगा. मुझे डर लग रहा था पर इस बात का नहीं कि मेरे पैर मेरा वजन न सह पाएंगे और मैं गिर पडूंगा बल्कि इस बात से जरूर डरा हुआ था कि मैं अपने बेटे के उदास चेहरे का सामना कैसे करूंगा. अपने हंसतेखेलते अनिल को यों गुमसुम पड़ा कैसे देखूंगा. यह सब सोचसोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा था. फिर भी मैं साहस जुटा कर जीने चढ़ने लगा. जैसे ही मैं ऊपर पहुंचा, मैं ने अपने आंसू पोंछ लिए और उस के कमरे की ओर बढ़ने लगा. उस के कमरे के नजदीक पहुंचा, तो मेरा दिल एक बार फिर उदास हो गया.
कमरे से रोशनी की एक किरण तक नहीं आ रही थी. उन चारदीवारों में कुछ भी देखना बहुत मुश्किल प्रतीत हो रहा था. इसलिए जैसे ही मैं अंदर पहुंचा, मैं ने कमरे की लाइट जला दी. मुझे देख वह चौंक गया. वह जल्दी से उठा और अपनी आंखों पर ताले लगाने लगा ताकि उस का एक भी आंसू मेरे सामने न निकल पड़े. मैं एक बार फिर से टूट गया.