लेखिका -डा. के रानी
सुधा बहुत ध्यान से टीवी धारावाहिक देख रही थी. सामने सोफे पर बैठे परेश अखबार पढ़ रहे थे. टीवी की ऊंची आवाज उन के कानों में भी पड़ रही थी. बीचबीच में अखबार से नजर हटा कर वे सुधा पर डाल लेते। सुधा के चेहरे पर चढ़तेउतरते भाव से साफ पता चल रहा था कि टीवी धारावाहिक का असर उस के दिमाग के साथ सीमित नहीं था वरन उस के अंदर भी हलचल मचा रहा था.
धारावाहिक की युवा नायिका अपनी मम्मी से सवालजवाब कर रही थी. सुधा को उस के डायलौग जरा भी पसंद नहीं आ रहे थे.
वह बोली,"देखो तो इस की जबान कितनी तेज चल रही है..."
"तुम किस की बात कर रही हो?"
"टीवी पर चल रहे धारावाहिक की."
"तो इस में इतना परेशान होने की क्या जरूरत है? सीरियल ही तो है."
"देखा नहीं, इस की हरकतें अपनी डिंपी से कितनी मिलती हैं."
"पता नहीं क्यों हर समय तुम्हारे दिल और दिमाग पर डिंपी सवार रहती है. तुम्हें तो हर जगह आवाज उठाने वाली लड़की डिंपी दिखाई देती है. लगता है, जैसे तुम हर नायिका में उसी का किरदार ढूंढ़ती रहती हो."
"वह काम ही ऐसा कर रही है. खानदान की इज्जत उतार कर रखना चाहती है. भले ही तुम्हें उस की हरकतों पर एतराज न हो लेकिन मैं उसे ले कर बहुत परेशान हूं।"
"सुधा, डिंपी जो करने जा रही है आज वह समाज में आम बात हो गई है।"
"तुम्हारे लिए हो गई होगी. मेरे लिए नहीं. एक उच्च कुल की ब्राह्मण लड़की हो कर वह जनजाति समाज के लड़के से शादी करना चाहती है और तुम्हें इस में कोई बुराई नजर नहीं आ रही?"
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन