लेखिका -डा. के रानी
"ऐसा नया जमाना तुम्हें ही मुबारक हो डिंपी जो तुम सब को इतनी बेशर्मी की छूट देता है."
"आप को हमारी दोस्ती पर एतराज है ना मम्मी, तो ठीक है हम शादी कर लेंगे। तब तो किसी को कोई एतराज नहीं रहेगा। राहुल तुम मुझ से शादी करने के लिए तैयार हो?" डिंपी ने पूछा.
रमा के सामने मम्मीबेटी की बहस में राहुल चुप रहा। इस समय कुछ कह कर उन का गुस्सा बढ़ाना नहीं चाहता था। वह कभी सुधा आंटी का मुंह देख रहा था तो कभी रमा बुआ का.
"चुप कर। जो मुंह में आ रहा है वह बके जा रही है,"रमा जोर से बोली. "आंटी ठीक कह रही हैं. हमें बड़ों की इज्जत करनी चाहिए और उन का मान भी रहना रखना चाहिए," कह कर राहुल दरवाजे से ही लौट गया.
डिंपी भी गुस्से से पैर पटकती हुई अपने कमरे में आ गई. रमा ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और घर लौट गई. अगर वह कुछ देर और वहां रुकती तो शायद बात बहुत बढ़ जाती. डिंपी की हरकतें देख कर सुधा आज बहुत परेशान थी.
डिंपी के कहे शब्द सुधा के कानों में हथौड़े की तरह बज रहे थे। वह बड़ी बेसब्री से परेश के औफिस से वापस आने का इंतजार कर रही थी. शाम को 6 बजे परेश घर आए। आते ही उन्होंने सुधा से पूछा,"तुम्हारा मुंह क्यों उतरा हुआ है?"
"यह तो तुम अपनी बेटी से पूछो." "हुआ क्या है?" परेश बोले तो सुधा ने पूरी बात बता दी.
"डिंपी ने गुस्से में कह दिया होगा मैं जानता हूं वह ऐसा नहीं कर सकती" "तुम उस से खुद ही पूछ लो," कह कर पैर पटकते हुए सुधा वहां से हट गई.
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