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‘‘मां, क्या सोच रही हो? अभी तो भैया से अलग हुए 24 घंटे भी नहीं हुए?’’ निन्नी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

‘‘कुछ नहीं बेटा, कोई विशेष बात नहीं.’’

‘‘मां, विशेष नहीं तो अविशेष बता दीजिए?’’

बिना सोचेसमझे उत्सुकता से गार्गी ने शौपिंग की सूची दोहरा दी.

‘‘यह तेरे भाई अर्णव व बच्चों की सूची है. तुम मुझे 300 पाउंड दे देना. अर्णव हिसाब कर देगा.’’

निन्नी खामोश रही.

गार्गी को गलती का एहसास होते ही उस की ममता कच्ची सी पड़ गई. सोचने लगी, ‘यह मैं ने क्या कर दिया, कैसे भूल गई? मैं तो उस का दुख बांटने आई हूं. वह अपनी बचकाना हरकत पर शर्मिंदा सी हो गई.’

गार्गी की बात सुनते ही निन्नी हैरान हुई. कुछ क्षण के लिए दोनों में मौन का परदा गिर गया. वह गुस्से में बड़बड़ाते बोली, ‘‘मां, भैया व उस के परिवार के लिए ही क्यों, छोटी बहन अलका व उस का परिवार भी तो है दिल्ली में?’’

गार्गी शर्मिंदगी का घूंट पीते हुए बोली, ‘‘बेटा, मैं ने अभी बात पूरी ही कहां की है. जानती हूं, अलका भी मेरी बेटी है.’’

‘‘मां, केवल कहने के लिए. बहुत दकियानूस हो. अपनी ही संतानों में भेदभाव करती हो.’’

स्थिति को भांपते हुए गार्गी ने अपने मुंह को बंद रखना ही उचित समझा और व्यंग्य से बड़बड़ाने लगी, ‘आगे से ध्यान रखूंगी मेरी मां.’

घर पहुंच कर निन्नी का विशाल मकान देख कर गार्गी हक्कीबक्की रह गई. न इधर, न उधर, न दाएं, न बाएं कोई भी तो घर दिखाई नहीं दे रहा था. उसे ऐसा लगा, मानो विशाल उपवन में एक गुडि़या का घर ला कर रख दिया गया हो. अभी घर के भीतर जाना शेष था. दरवाजा खुलते ही नानी, नानी करते नाती नानी से लिपट गए.
कुछ समय बैठने के बाद निन्नी ने बच्चों से कहा, ‘‘बेटा, नानी को उन का कमरा दिखाओ.’’

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