यह सुन प्रियंका हंस पड़ी, क्या जवाब देती... आज उस की डिगरियां उस को मुंह चिढ़ा रही थीं. राहुल ने शादी की पहली ही रात कह दिया था कि मुझे घर संभालने वाली लड़की चाहिए. नौकरी के चक्कर में घर की शांति भंग नहीं कर सकता. आखिर घर में और भी महिलाएं हैं... प्रियंका ने दूसरे ही दिन उन सपनों को कहीं गहरे तहखाने में दबा कर रख दिया था.
"मयंक कह तो तुम सही रहे हो. शायद तुम को अच्छा न लगे, पर तुम्हारे घर का जो माहौल है, वहां तुम्हारी बीवी से साड़ी पहनने की उम्मीद की जाए, खाने में 3 तरह की सब्जी की उम्मीद की जाए, तो वो बेचारी कहां से नौकरी कर पाएगी."
"साड़ी...? मामीजी इन 2 सालों में मैं ने किसी को भी सलवारसूट में नहीं देखा. आप साड़ी की बात कर रही हैं. आप 3 सब्जी की बात कर रही हैं. मैं तो यह भी उम्मीद नहीं करता कि उसे खाना बनाना भी आता हो. जब मुझे बनाना नहीं आता, अगर उसे बनाना नहीं आता तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी. वैसे भी वो सब तो मैनेज हो ही जाता है."
मयंक की बेबाकी कहीं न कहीं उसे अंदर तक भेद गई थी. कहीं न कहीं वह अपने भविष्य के लिए भी भयभीत हो रही थी. कुछ वर्षों बाद वह भी तो उसी दहलीज पर खड़ी होगी, जहां आज दीदी खड़ी थी.
प्रियंका हतप्रभ थी, क्या वाकई में जमाना इतना बदल गया है. प्रियंका की आंखों के सामने दीदी का चेहरा घूम गया, बहू के लिए देखे गए वो अनगिनत सपने कहीं न कहीं उसे चूरचूर होते दिख रहे थे, जिस की किरचें उसे चुभती सी महसूस हो रही थीं.
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