अपने बेटेबहू के घर छोड़ कर अलग हो जाने के बाद मुझे यह एहसास बहुत सता रहा है कि मैं ने आप दोनों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है. अपनी बेटी को समझाने के बजाय मैं उसे भड़का कर हमेशा ससुराल से अलग होने की राय देती रही. अब मुझे अपने किए की सजा मिल गई है, बहनजी…आप मुझे आज माफ कर दोगी तो मेरे मन को कुछ शांति मिलेगी.’ पश्चात्ताप की आग में जल रही मीना ने जिस वक्त आरती से आंसू बहाते हुए क्षमा मांगी थी उस वक्त उमाकांत और महेश भी उस कमरे में ही उपस्थित थे.
जब आरती ने मीना को गले से लगा कर अतीत की सारी शिकायतों व गलतफहमियों को भुलाने की इच्छा जाहिर की तो भावविभोर हो उमाकांत और महेश भी एकदूसरे के गले लग गए थे.
आरती और महेश ने मीना और उमाकांत को अपने घर से 3 दिन बाद ही विदा किया था.
‘तुम ऐसा समझो कि अपनी बेटी की ससुराल में नहीं, बल्कि अपनी सहेली के घर में रह रही हो. तुम से बातें कर के मेरा मन बहुत हलका हुआ है. मुझे न कमर का दर्द सता रहा है न बहूबेटे के गलत व्यवहार से मिले जख्म पीड़ा दे रहे हैं. तुम कुछ ठीक होने के बाद ही अपने घर जाना,’ आरती की अपनेपन से भरी ऐसी इच्छा ने मीना को बेटी की ससुराल में रुकने के लिए मजबूर कर दिया था.
आने वाले दिनों में दोनों दंपतियों के बीच दोस्ती की जड़ें और ज्यादा मजबूत होती गई थीं. पहले एकदूसरे के प्रति नाराजगी, नफरत और शिकायतों में खर्च होने वाली ऊर्जा फिर आपसी प्रेम को बढ़ाती चली गई थी.
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