‘अच्छा हुआ, जो तेरे पिताजी यह अपमान सहने से पहले ही चले गए. हे भगवान, तू मुझे पता नहीं क्याक्या दिखाएगा?’ क्रोध के साथ उन की आंखों में आंसू भी आ गए थे. आज से पहले भावेश ने उन से इस तरह की बात नहीं की थी.
‘उसी अहसान का बदला तो चुकाने की कोशिश कर रहा हूं, पर आखिर कब तक मुझे परीक्षा देनी होगी…? कब तक वक्तबेवक्त ताने सुनने पड़ेंगे…?’मां के इसी तरह के नित कड़ुवे वचन सुन कर भावेश भी स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाया और उसी तीक्ष्णता से उत्तर दिया और अंदर चला गया.
क्रोध से उबल रही पुष्पा ने बेटेबहू से तिरस्कार पा कर स्वयं को पूजाघर में बंद कर लिया. यही उन का ब्रह्मास्त्र था…अंजना ने चाय के लिए आवाज दी, पर उन्होंने दरवाजा नहीं खोला. खाने के लिए आवाज दी, फिर भी वे नहीं पसीजीं. पसीजतीं भी कैसे…? इस बार बहू ही आ कर पूछ रही थी. बेटा एक बार भी नहीं आया. आज से पहले जबजब भी उन में और बहू में तकरार हुई है, वह उसे मना कर उन के क्रोध को शांत कर दिया करता था और अंजना से भी ‘सौरी’ बुलवा दिया करता था, पर आज बात कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी.
सदा शांत रहने वाले पुत्र के मुंह से निकले शब्द अब भी पुष्पा के मन को मथ रहे थे. साथ ही, उस का उन से खाने के लिए भी न पूछना, उन्हें दंशित करने लगा, वे कुढ़ कर रह गईं.रात में जब भूख बरदाश्त नहीं हुई, तो धीरे से दरवाजा खोल कर वे बाहर आईं. किचन में कुछ न पा कर बड़बड़ाईं कि किसी को भी मेरी चिंता नहीं है. दोनों खा कर मजे से सो गए हैं. मैं जीऊं या मरूं, इस से किसी को मतलब ही नहीं रहा है. हे भगवान, न जाने कैसा जमाना आ गया है.
फ्रिज खोला तो उस में सब्जी के साथ ही रोटी का डब्बा रखा देख कर चैन की सांस ली. सब्जी की मात्रा व डब्बे में रोटियों की संख्या देख कर उन्हें लगा कि किसी ने भी खाना नहीं खाया है. फिर मन में आया कि कुछ और खा लिया होगा. जब मेरे लिए इन के दिल में इतनी कड़ुवाहट है तो वे खाना क्यों छोड़ेंगे…? अशांत मन से सब्जी गरम की और खाना खा कर सो गईं. सुबह उठीं, पूरे कमरे को रोशनी से नहाया देख कर चौंक गईं. सुबह के 8 बज गए हैं… इतनी देर तक तो वे कभी भी नहीं सोईं. नित्य काम से निवृत हो कर बाहर आईं, तो देखा कि बहू किचन में थी और बेटा घर से औफिस के लिए निकल रहा है. उन्हें देख कर भी उस ने उन से कुछ नहीं पूछा और न ही कहा.
उसे चुपचाप औफिस जाते देख मन में कुछ दरक गया… जिस बेटे के लिए इतना कुछ किया, वह उन से ऐसे मुंह मोड़ लेगा, कभी सोचा ही नहीं था.पति सिद्धार्थ के मरने के बाद उन्होंने अकेले ही पुत्र भावेश और पुत्री दीप्ति को हर कठिनाइयों से बचाते हुए पाला है. दीप्ति अपने घरसंसार में इतनी डूब गई है कि उसे उन की सुध ही नहीं है और आज भावेश ने अपनी पत्नी के लिए उसे खरीखोटी सुना दी. आज जब आराम करने का समय आया तो दोनों के ऐसे तेवर… अगर कुछ कह दिया तो दोनों के मुंह फूल गए… यह भी नहीं सोचा कि मां के दिल पर क्या बीत रही होगी?
अंजना ने उन के सामने चाय रखी, तो वे भड़क कर बोलीं, ‘बेटे को तो मुझ से दूर कर ही दिया… अब और भी कुछ करना बाकी है तो वह भी कर दे… पता नहीं, उसे क्या पट्टी पढ़ा दी कि आज वह मुझ से बिना बात किए औफिस चला गया.’इस बार अंजना भी चुप न रह सकी और बोली, ‘रात में चुपचाप उठ कर आप ने खाना खा लिया… बहू की तो दूर, पर क्या आप यह सोच भी पाईं कि बेटे ने भी रात में कुछ खाया है या नहीं. इस समय भी वे बिना खाए औफिस चले गए हैं… यहां तक कि टिफिन भी नहीं ले गए हैं.’
‘तेरा पति है तू जाने कि उस ने क्यों नही खाया…?’ चाय पीते हुए निर्लिप्त स्वर में उन्होंने कहा.‘आप भी तो उन की मां हैं… क्या आप का फर्ज नहीं है कि एक बार अपनी पेटपूजा से पहले अपने बेटे से भी पूछ लें कि उस ने कुछ खाया है या नहीं…?’
सदा चुप रहने वाली अंजना भी आज चुप न रह पाई. वह भी आज भावेश के बिना खाए निकल जाने के कारण बेहद दुखी थी. ‘बहुत बोलने लगी है तू… कर्म तो मेरे ही फूटे थे, वरना एक से एक लड़कियां आ रही थीं मेरे भावेश के लिए… दहेज भी खूब मिलता, पर तू ने उस पर न जाने कैसा जादू कर दिया कि वह तुझे ब्याह लाया…
‘एक तो गरीब घर की और ऊपर से बेशऊर… न बात करने का तरीका और न रहने का. मैं तो यह सोच कर तुझे अपनाने के लिए तैयार हो गई थी कि गरीब है तो क्या हुआ, मेरे भावेश की पसंद है और शायद मेरे इस अहसान के बदले तू मुझ से दब कर रहेगी और मेरी हर बात मानेगी.
‘पर, बात माननी तो दूर, तू तो मेरे भावेश को ही मेरे विरुद्ध भड़काती रहती है, वरना वह पहले ऐसा नहीं था…’‘आखिर कब तक आप मुझे ताने देती रहेंगी…? गरीब हूं, तो क्या मैं इनसान नहीं हूं…? क्या मेरा कोई आत्मसम्मान नहीं है?’गरीब होने के बावजूद मेरे मातापिता ने मुझे पढ़ाया, आईआईटियन बनाया. भावेश ने मेरी योग्यता के कारण मुझ से विवाह किया था… इस सब के बावजूद भी दिनरात ताने… आखिर कितना सहूं,’ अंजना ने रोते हुए कहा और अपने कमरे में चली गई.
‘जा…जा… इन टेसुओं से मैं पिघलने वाली नहीं… इन टेसुओं के सिवा लाई ही क्या है…? मेरे सोने से घर को नरक बना कर रख दिया है,’ पुष्पा ने जोर से चिल्लाते हुए कहा.
सास के स्वर अंजना के मनमस्तिष्क में शीशे की तरह चुभचुभ कर उसे लहूलुहान कर रहे थे. विवाह के बाद लड़की का जीवन बदल जाता है… यह तो उस ने सुना था, पर रिश्ते निभाने के लिए उसे अपमान भी सहना होगा, यह उस ने नहीं सोचा था. उस ने अपनी सास की हर बात मानने और उन की इच्छानुसार काम करने की भरपूर कोशिश की, पर उस की हर कोशिश नाकाम रही. उस की हर बात में कमी निकाल कर उसे बेशऊर सिद्ध करना उस की सास को सुकून पहुंचता था. घर की सजावट में थोड़ा भी फेरबदल करने का प्रयत्न करती तो तुरंत कह देतीं कि यह मेरा ड्रीम हाउस है. जब तक मैं हूं, कोई फेरबदल नहीं होगा. आखिर उस ने घर की साजसज्जा के बारे में सोचना ही छोड़ दिया. उस के हिस्से में अधिकार के बजाय कर्तव्य ही आए. कर्तव्य करतेकरते अगर कहीं कुछ भूलचूक हो जाती तो ऐसे ताने दे कर लहूलुहान कर दिया जाता कि उसे लगता ही नहीं था कि वह इस घर की बहू है.
छुटपन में ही मां के गुजर जाने के कारण अंजना को बचपन से मां का प्यार नहीं मिला था. सोचा था, सास के रूप में मां को प्राप्त कर वह सारी कमी पूरी कर लेगी. पर मां तो ऐसे व्यवहार करती जैसे वह उन की बहू नहीं नौकरानी हो.