अभय बहुत देर तक यों ही बैठा रहा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था कि क्यों उस ने सफाई करने की ठानी थी. न वह मम्मी की अलमारी की सफाई करता और न ही मम्मी का असली चेहरा उस के आगे आता.
आज नीरा ने घर से निकलते हुए कहा था, ‘अभय बेटा, घर थोड़ा ठीक कर देना और देखो, मेरी अलमारी को भी साफ कर देना, बहुत दिनों से नहीं कर पाई.’
अभय ने सोचा, क्यों न मम्मी की अलमारी से ही आरंभ किया जाए. मम्मी के पुराने सूट और साड़ी निकाल कर एकतरफ रख देगा काम वाली के लिए.
अलमारी को ठीक करते हुए अचानक से एक भूरे रंग का लिफाफा गिर पड़ा. लिफाफे के अंदर कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियों के पैकेट मुंह चिढ़ा रहे थे. अभय को समझ नहीं आया कि ये उस की मम्मी की अलमारी में क्या कर रहे हैं.
घिन सी आ रही थी अभय को. यह उम्र मम्मी की यह सब करने की है क्या. अभी पिछले माह ही तो 52 साल की हुर्ई हैं.
पर किस के साथ करती होंगी, औफिस के शर्मा अंकल के साथ या फिर नीरज ताऊजी के साथ. छिछि, इस से अच्छा तो दूसरा विवाह ही कर लेतीं, क्या जरूरत थी त्याग की मूरत बनने की. क्या जवाब देगा वह आन्या को अगर उसे उस की मां के चरित्र के बारे में पता चल गया.
आन्या कितनी भोली हैं, कितना पसंद करती हैं मम्मी को, बिलकुल अपनी मां की तरह ही प्यार करती हैं.
आन्या का विचार आते ही अभय के होंठों पर मुसकान थिरक उठी पर फिर वो भूरा लिफाफा याद आते ही मुंह कड़वा हो उठा.
अभय के पापा का 20 साल पहले निधन हो गया था. तब अभय मात्र 7 वर्ष का था और उस की मम्मी नीरा 32 वर्ष की थी. अभय ने कितनी दफा अपनी मम्मी को अकेले एक कोने में रोतेबिलखते देखा था.
कुछ ऐसी धुंधली यादें भी अभय के जेहन में थीं जब अभय और उस की मम्मी सदा के लिए दादाजी का घर छोड़ कर नानाजी के पास कानपुर आ गए थे.
कुछकुछ अभय को याद है कि नीरा का हाथ उस के ताऊजी नीरज, जो विवाहित ही थे, को दिया जा रहा था पर नीरा ने हाथ जोड़ क़र कहा था, ‘मैं ने नीरजजी को सदा बड़े भैया की नजर से देखा हैं. इस प्रथा के कारण मैं अपना रिश्ता कलंकित नहीं कर सकती हूं.’
दादाजी जहां तनाव में आ गए थे, वहीं दादीजी गुस्से में बोली थीं, ‘यह कोई अनोखी बात नहीं है. बहुत से घरों में यह ही होता है. नीरज तुम्हारी और अभय की सारी जिम्मेदारी उठाएगा.’ दादाजी सदियों पुराने विचारों के थे. न जाने किनकिन से पौराणिक कहानियां सुनते रहते थे. खूब पंडितों को दान देते.
नीरा ने तड़प कर कहा, ‘मम्मीजी, मेरे और नीरज भैया के रिश्ते का नाम क्या होगा?’
दादीजी बोलीं, ‘बेवकूफ लडक़ी, यह प्रथा तो बहुत पुरानी है, इस रिश्ते का कोई नाम नहीं होता, पर तुम्हें और तुम्हारे बेटे को सारे हक मिलेंगे.’
नीरा के मातापिता भी सहमत थे पर नीरा का मन नहीं माना. वह ऐसा घिनौना जीवन नहीं जीना चाहती थी, इसलिए चुपचाप नन्हे अभय का हाथ पकड़ कर अपने मातापिता के पास कानपुर आ गई थी.
3 माह बाद ही नीरा को एक विद्यालय में नौकरी मिल गई थी. फिर नीरा ने किराए पर घर ले लिया था और किसी ने भी विरोध नहीं किया था. मामाजी की आंखों में राहत का भाव ही नजर आया था पर मामीजी की आंखें गीली थीं और मामीजी के कारण ही आज भी अभय और नीरा कभीकभार त्योहार पर चले जाते हैं.
अभय का मन किया, मामीजी को सब बता दे और पूछे कि क्या हुआ आप की दीदी को, जो इतने मान के साथ सुसराल की देहरी छोड़ आई थीं लेकिन अब क्या कर रही हैं. यह जीवन क्या बहुत इज्जत वाला है, इधरउधर मुंह मारना…
बैठेबैठे अंधेरा हो गया. तभी दरवाजे की घंटी बजी और नीरा अंदर आ गई. अभय के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली, ‘‘अंधेरे में क्यों बैठे हो?’’
अभय ने कुछ नहीं कहा, मम्मी के स्पर्श से उस का सर्वांग सिहर उठा. मन ही मन वह सोच रहा था, मम्मी आजकल अपने रखरखाव का काफी ध्यान रखने लगी हैं, हमेशा हंसतीमुसकराती रहती हैं.
नीरा खाना बनाने के लिए रसोई में घुस ही रही थी कि अभय बोला, ‘‘मेरा खाना मत बनाना, मैं आन्या के साथ डिनर पर जा रहा हूं.’’
नीरा इस से पहले कुछ बोलती, अभय जा चुका था.
अभय बाइक उठा कर बेमकसद इधर से उधर घूम रहा था. तभी मोबाइल की घंटी से उस का ध्यान टूटा, देखा, आन्या के 5 मिसकौल थे.
फोन लगाया तो आन्या गुस्से में बोली, ‘‘कोई नई गर्लफ्रैंड मिल गई हैं क्या? मेरा नाम आंटी से बोल कर कहां घूम रहे हो?’’
अभय गुस्से में बोला, ‘‘जहन्नुम में.’’ और मोबाइल स्विच औफ कर दिया.
रात के 12 बजे वह घर में घुसा तो देखा, मां नीरा फोन पर लगी हुई हैं. अभय को देख कर वे बोलीं, ‘‘बेटा, कौफी बना दूं तुम्हारे लिए.’’
अभय बोला, ‘‘नहीं, जरूरत नहीं. पर आजकल आप रातभर फोन पर क्या करती रहती हैं?’’
नीरा सकपका गर्ई, संभल कर बोली, ‘‘जो तुम करते हो, अभय.’’
अभय बोला, ‘‘मम्मी, मैं, बस, 27 साल का हूं, मेरी उम्र है.’’
नीरा हंसती हुई बोली, ‘‘बेटे, जज्बातों और खुशी की कोई उम्र नहीं होती.’’
अभय मन ही मन सोच रहा था, बेशर्मी की हद होती है.
उधर नीरा को समझ नहीं आ रहा था कि अभय को क्या हो गया है.
आन्या को फोन लगाया तो उधर से आन्या चहकती हुई बोली, ‘‘आंटी, हाऊ इस एंग्री यंगमैन?’’
नीरा बोली, ‘‘क्यों, मिलने नहीं आया तुम्हारा हीरो?’’
आन्या बोली, ‘‘नहीं आंटी, लगता है कोई और मिल गई है उसे?’’
नीरा हंसती हुई बोली, ‘‘पागल है तू, कल कान खींचती हूं तेरे हीरो के.’’
सुबह भी अभय का मूड खराब ही था. नीरा की हर बात का उलटा जवाब दे रहा था.
नीरा ने सोचा, हो सकता है दफ्तर का तनाव हो. पर जब पूरा हफ्ता बीत गया तो नीरा ने आन्या को फोन किया, ‘‘आन्या, क्या बात है, अभय इतना गुस्से में क्यों है? मुझ से तो सीधेमुंह बात भी नहीं करता.’’
आन्या भी बुझे से स्वर में बोली, ‘‘हां आंटी, आप सही बोल रही हैं. लेकिन मुझे भी नहीं पता बात क्या है? मैं बात कर के देखती हूं.’’
शुक्रवार की शाम आन्या बिना फोन किए अभय के दफ्तर में धमक गई और सामने बैठते हुए बोली, ‘‘क्या बात है, क्यों पिछले कई दिनों से मुझे इगनोर कर रहे हो? कोई और है जीवन में तो सीधे बताओ.’’
अभय धीरे से बोला, ‘‘और भी गम हैं जमाने में इश्क से सिवा.’’
आन्या अपने घुंघराले बालों से खेलती हुई बोली, ‘‘ओफ्फोह, पहेलियां मत बूझाओ, सीधे बोलो कि क्या बात है.’’
आन्या और अभय रंगोली रैस्तरां में आमनेसामने बैठे थे. आन्या को देख कर अभय सोच रहा था, क्या बताऊं आन्या को कि मम्मी का अफेयर चल रहा है. उन की अलमारी में मुझे कंडोम और बर्थकंट्रोल पिल्स मिली हैं.
आन्या डोसे को सांभर में लपेटती हुई बोली, ‘‘अभय, क्या मुंह में दही जमा कर बैठे हो?’’
अभय ने नजर नीची कर के बिना सांस रोके सब बता दिया. आन्या बोली, ‘‘तो क्या हुआ, अभय, इतना परेशान क्यों हो रहे हो?’’
अभय बोला, ‘‘आन्या, मेरी मम्मी चरित्रहीन हैं, शर्म आ रही है यह सोचते हुए कि मैं उन का बेटा हूं.’’
आन्या हैरानी से अभय को देख रही थी और बिना कुछ कहे चुपचाप चली गई. अभय बैठा हुआ सोच रहा था, आन्या भी उस की तरह शायद सदमे में चली गर्ई है.
आजकल अभय नीरा से बात नहीं करता था. नीरा ने कोशिश की पर असफल रही. नीरा ने आन्या से भी बात करने की कोशिश की पर आन्या ने कहा, ‘‘आंटी, अभय का दिमाग खराब हो गया है, आप ध्यान मत दीजिए.’’
हफ्ता बीत गया. आन्या ने न अभय को मैसेज किया और न ही फोन किया तो अभय समझ गया था कि आन्या उस से अब रिश्ता नहीं रखना चाहती है. ठीक भी है, कौन मुझ से रिश्ता रखना चाहेगा, न मेरा कोर्ई परिवार है और एक मां हैं वह भी चरित्रहीन.
जब नीरा ज्यादा घुटन सह नहीं पाई तो उस ने आन्या को एक दिन घर पर डिनर के लिए बुला लिया.
आन्या को घर पर देख कर अभय चौंक गया, बोला, ‘‘तुम कैसे अचानक से आ गईं?’’
आन्या बोली, ‘‘क्यों, तुम भूल गए क्या कि मेरा आंटी के साथ भी रिश्ता है और आज उन्होंने मुझे डिनर पर बुलाया है.’’
अभय, आन्या और नीरा चुपचाप खाना खा रहे थे. राजमा, चावल, भरवा भिन्डी, दम आलू सबकुछ आन्या और अभय की पसंद का था.
खाने के बाद दोनों का मनपंसद फ्रूट कस्टर्ड भी था. नीरा को महसूस हो रहा था कि अभय और अन्या के बीच में किसी बात को ले कर तनाव है. उस ने ऐसे ही आन्या से बोला, ‘‘तुम और अभय कब शादी कर रहे हो?’’
आन्या बोली, ‘‘आंटी, मैं अभय से शादी नहीं कर सकती.’’
नीरा बोली, ‘‘बेटा, छोटीमोटी बातें तो रिश्तों में होती रहती हैं, इस के लिए ऐसी बातें नहीं करते.’’
इस से पहले आन्या कुछ बोलती, अभय फट पड़ा, ‘‘मम्मी, यह तुम्हारी करतूत की वजह से मुझ से शादी नहीं करना चाहती है. तुम्हें शर्म नहीं आती कि इस उम्र में तुम गुल खिला रही हो?’’
नीरा का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस का अपना बेटा कभी उस पर ऐसे घटिया इलजाम लगाएगा.
अभय बिना रुके धाराप्रवाह बोले जा रहा था, ‘‘आप के कारण मैं अपने दादा के परिवार से दूर हो गया, तब आप को लग रहा था कि आप ऐसा घिनौना जीवन नहीं जी सकती हैं. अब क्या कर रही हैं आप, इस से अच्छा तो ताऊजी के साथ ही रह लेतीं.’’
नीरा धम्म से सिर पकड़ कर कुरसी पर बैठ गई. आन्या दौड़ कर नीरा के पास आई और अभय से बोली, ‘‘अभय, मैं आंटी के कारण नहीं, तुम्हारी घटिया और छोटी सोच की वजह से तुम से विवाह नहीं करना चाहती हूं. आंटी तुम्हारी मां होने के साथसाथ एक औरत भी हैं और उन्हें अपनी जिंदगी कैसे बितानी है, यह उन का निजी मामला है.’’
अभय बोला, ‘‘तो पहले क्या हो गया था, तब क्यों उन्हें वह जिंदगी घृणित लग रही थी. अब भी तो वो ही सब कर रही हैं.’’
नीरा उठी और अभय व आन्या से बोलीं, ‘‘अभय, अगर मैं तब रुक जाती तो तुम्हारी ताईजी के परिवार के टूटने का कारण बन जाती और नीरज मेरे लिए हमेशा बड़े भाई की तरह ही थे. हां, अभी भी मैं एक रिश्ते में बंधी हुई हूं जिस का कोई नाम नहीं हैं पर मैं किसी का घर नहीं तोड़ रही हूं क्योंकि मेरे साथी सुबोध तलाकशुदा हैं.’’
आन्या बोली, ‘‘आंटी, फिर आप उन से शादी क्यों नहीं कर लेती हैं?’’
नीरा बोली, ‘‘बेटा, जो जैसा है, मैं उस में ही खुश हूं. अभय, मुझे पता था कि उस दिन तुम ने अलमारी की सफाई करते हुए वह पैकेट देख लिया था पर मुझे यह नहीं पता था कि इस कारण तुम नाराज हो. मैं तो सोच रही थी कि तुम समझ जाओगे कि मैं और सुबोध क्यों इतना मिलतेजुलते हैं.’’
‘‘अभय, तुम और आन्या भी तो पिछले 4 वर्षों से रिश्ते में हो. जब भी शादी की बात आती है तो तुम दोनों टाल जाते हो पर मैं ने तो तुम्हारे चरित्र का आकलन कभी नहीं किया.’’
अभय चुपचाप नजरें नीची किए बैठा रहा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से कैसे माफी मांगे.
आन्या बोली, ‘‘आंटी, कोई जरूरत नहीं है आप को अभय को कुछ भी सफाई देने की. मैं खुश हूं कि, इस छोटी सी घटना से ही सही, तुम्हारा असली चेहरा सामने आ गया. जो पुरुष अपनी मां के चरित्र पर सवाल उठा सकता है, उस की इज्जत नहीं कर सकता, वह भला पत्नी की इज्जत क्या करेगा? स्त्री व पुरुष में संबंध कोई नैतिकअनैतिक नहीं होते. यह आपसी जरूरत और सहमति का मामला है. तुम ने मां की निजता पर सवाल उठाए हैं, उन के फैसले को चरित्रहीनता का नाम दिया है तो हमारे बीच जो होता रहा है वह क्या था. क्या तुम चरित्रहीन हो, क्या मैं चरित्रहीन हूं.’’
यह कह कर आन्या ने अपनी उंगली से अभय की अंगूठी निकाली और अभय के हाथ में रख दी.
आन्या को जाते हुए देख कर अभय सोच रहा था, वह तो मां के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर रहा था और आन्या खुद उस के चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लगा गई है.