लड़का अपने शहर रायपुर को छोड़ कर भिलाई पहुंच गया, वहां के बारे में वह बहुत कुछ सुन चुका था. वह किसी घरेलू नौकरी की तलाश में था ताकि उसे पढ़नेलिखने की सुविधा भी मिल सके. ऐसा ही एक परिवार था, जहां से दोचार दिन में ही नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चल देते, क्योंकि उस घर की मालकिन के कर्कश स्वभाव से तंग आ कर वे टिक ही नहीं पाते थे. एक दिन लड़का उसी बंगले के सामने जा खड़ा हुआ और उस मालकिन से नौकरी देने का आग्रह करने लगा.
पहले तो उस ने लड़के की बातों पर कोई गौर नहीं किया, लेकिन फिर बोली, ‘‘लड़के, तुम क्याक्या काम कर सकते हो ’’ लड़के का आग्रह सुन कर मालकिन को लगा कि जरूर वह पहले कहीं काम कर चुका है. वह उस से बोली, ‘‘ठीक है, आज और अभी से मैं तुम्हें काम पर रखती हूं.’’
‘‘मालकिन, एक शर्त मेरी भी है,’’ लड़के ने हाथ जोड़ कर कहा.
‘‘बताइए, क्या है तुम्हारी शर्त ’’
‘‘मैं काम के बदले पैसा नहीं लूंगा बल्कि आप मुझे खाना, कपड़ा और मेरी पढ़ाईलिखाई की व्यवस्था कर दें,’’ लड़के ने दयनीय स्वर में कहा. पहले तो यह सुन कर मालकिन हड़बड़ा गई लेकिन अपनी मजबूरी को देखते हुए उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के कारण घर का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.’’ लड़के को उस घर में काम मिल गया. वह सब से आखिर में सोता और सवेरे सब से पहले उठ कर काम शुरू कर देता. फिर काम निबटा कर स्कूल जाता. लड़का इस घर, नौकरी और पढ़ाईलिखाई, सभी से बड़ा खुश था. वह अपना काम भी पूरी ईमानदारी, लगन और मेहनत से करता. मालकिन को घरेलू नौकरचाकरों पर रोब झाड़ने की बुरी आदत थी, लेकिन उसे भी लड़के में जरा भी खोट दिखाई नहीं दिया. वह उस के काम से खुश थी.
घर वालों से प्यार और अपनापन मिलने के बावजूद लड़का इस बात का बराबर खयाल रखता कि वह एक नौकर है और उसे पढ़लिख कर एक दिन अच्छा आदमी बनना है. अपनी विधवा मां और भाईबहनों का सहारा बनना है. इधर इतना अच्छा और गुणी नौकर आज तक इस परिवार को नहीं मिला था. घर के बच्चों और खुद मालिक को दिनरात इसी बात का खटका लगा रहता था कि कहीं मालकिन इसे भी निकाल न दे. उधर आदत से मजबूर मालकिन उस लड़के से लड़ने का बहाना ढूंढ़ रही थी. एक दिन वह सोचने लगी कि यह दो कौड़ी का छोकरा इस घर में इतना घुलमिल कैसे गया न काम में सुस्ती, न अपनी पढ़ाईलिखाई में आलस और खाने के नाम पर बचाखुचा जो कुछ भी मिल जाए खा कर वह इतना खुश रहता है. एक दिन मालकिन ने सब की उपस्थिति में लड़के से कहा, ‘‘देखो, अब से तुम हर महीने अपना वेतन ले लिया करना, ताकि तुम अपने खानेपीने, रहने और पढ़नेलिखने का अलग से इंतजाम कर सको.’’
लड़का आश्चर्य से मालकिन की ओर देखने लगा. उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. उस ने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘मालकिन, मुझे मौका दो मैं अपना काम और अच्छी तरह से करूंगा.’’ लड़के की बातों से ऐसा लगा जैसे मातापिता की सेवा करने वाले इकलौते और गरीब श्रवणकुमार को किसी राजा ने अपना शिकार समझ कर आहत कर दिया हो और बाकी लोग राजा के डर से मात्र मूकदर्शक बने बैठे हों. मालकिन को अपने पति और बच्चों की चुप्पी से ठेस लगी. वह भीतर ही भीतर तिलमिला कर रह गई, लेकिन कुछ नहीं बोली. अब तक ऐसे मौकों पर सभी उस का साथ दिया करते थे, लेकिन इस बार घर के सब से छोटे बच्चे ने ही टोक दिया, ‘‘मां, इस तरह इस बेचारे को अलग करना ठीक नहीं.’’
यह सुन कर मालकिन आगबबूला हो गई और चिढ़ कर बोली, ‘‘यह छोटा सा चूहा भी अच्छेबुरे की पहचान करने लगा है और मैं अकेली ही इस घर में अंधी हूं.’’वहां पर कुछ देर के लिए अदालत जैसा दृश्य उपस्थित हो गया. न्यायाधीश की मुद्रा में साहब ने कहा, ‘‘किसी नौकर को निकालने या रखने के नाम से ही घर वाले आपस में लड़ने लगें तो नौकर समझ जाएगा कि इस घर में राज किया जा सकता है.’’
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‘‘क्या मतलब ’’ मालकिन की आवाज में कड़कपन था.
‘‘मतलब साफ है, नौकर से मुकाबला करने के लिए हमें आपसी एकता मजबूत कर लेनी चाहिए,’’ साहब ने शांत स्वर में कहा. मालकिन अपनी गलती स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थी. बुरा सा मुंह बनाते हुए वह भीतर कमरे में चली गई. साहब ने बाहर जाते हुए लड़के को समझा दिया कि वह उन की बातों का बुरा न माने और भीतर कमरे में सब को समझाते हुए कहा कि लड़के पर कड़ी नजर रखी जाए. जहां तक हो सके उसे रंगेहाथों पकड़ा जाना चाहिए, ताकि उसे भी तो लगे कि उस ने गलती की है, चोरी की है और उस से अपराध हुआ है.
वह दिन भी आ गया, जब लड़के को निकालने के बारे में अंतिम निर्णय लिया जाना था. लड़का उस समय रसोई साफ कर रहा था. घर के सभी सदस्य एक कमरे में बैठ गए. साहब ने पूछा, ‘‘अच्छा, किसी को कोई ऐसा कारण मिला है, जिस से लड़के को काम से अलग किया जा सके ’’ मालकिन चुप थी. उसे अपनेआप पर ही गुस्सा आ रहा था कि वह भी कैसी मालकिन है, जो एक गरीब नौकर में छोटी सी खोट भी नहीं निकाल सकी. मालकिन की गंभीरता और चुप्पी को देख कर साहब ने मजाक में ही कह दिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि बबूल में भी गुलाब खिल सकते हैं.’’
‘‘जिस माली की सेवा में दम हो, वह बबूल और नागफनी में भी गुलाब खिला सकता है,’’ मालकिन के मुंह से ऐसी बात सुन कर, दोनों बच्चों और साहब का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया. जब बात बनने के लक्षण दिखने लगे तो साहब ने कहा, ‘‘देखो भाई, जो भी कहना है, साफसाफ कह दो. बेचारे लड़के का मन दुविधा में क्यों डाल रहे हो ’’ तब मालकिन ने चिल्ला कर उस लड़के को बुलाया. लड़का आया तो मालकिन ऐसे चुप हो गई, जैसे उस ने लड़के को पुकारा ही न हो. वह ऐसे मुंह फुला कर बैठ गई, जैसे लड़के की कोई बड़ी गलती उस ने पकड़ ली हो.
अभीअभी बबूल, नागफनी, गुलाब और माली की बातें करने वाली मालकिन को फिर यह कैसी चाल सूझी यह सोच कर साहब ने कहा, ‘‘जो कहना है साफसाफ कह दो, बेचारा कहीं और काम कर लेगा.’’
‘‘मुझे साफसाफ कहने के लिए समय चाहिए,’’ मालकिन बोली और वैसे ही मुंह फुला कर बैठी रही.
‘‘और कब तक इस बेचारे को अधर में लटका कर रखोगी, जो कहना है अभी कह दो,’’ साहब ने कहा, इस बार साहब और बच्चों ने भी तय कर लिया था कि मालकिन की इस तरह बारबार नौकर बदलने की आदत को सुधार कर ही दम लेंगे. मालकिन ने ताव खा कर कहा, ‘‘तो सुनो, जब तक यह लड़का अपने पांव पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक इसी घर में रहेगा, समझे.’’ एकाएक मालकिन में हुए इस परिवर्तन से सभी को आश्चर्य तथा अपार खुशी हुई. वैसे बबूल, नागफनी, गुलाब और माली वाली बातों का खयाल आते ही, सब को लगा कि मालकिन लड़के को पहले से ही अच्छी तरह परख चुकी थी और उस की जिंदगी संवारने के लिए मन ही मन अंतिम निर्णय भी ले चुकी थी.