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अम्मा बड़बड़ाती रह गई. मैं बाहर निकल गई. जैसे ही हमारी कार बाहर निकली, मैं ने रशीद को एक खंभे के सहारे उदास खड़े देखा.

हम महताब के घर न जा कर सीधे समंदर किनारे चले गए. वहां उस की शानदार हट थी. ये मेरे लिए एकदम नई दुनिया थी. रात 12 बजे तक हम वहीं रुके और भविष्य के सपने बुनते रहे. वहां से मैं सीधी घर आ गई. दूसरे दिन भी यही सिलसिला रहा.

मैं महताब की शादी में भी नहीं गई. मेरी बेरुखी के बावजूद रशीद चुपचाप हमारी खिदमत करता रहा. पता नहीं उस ने अब्बा से क्या कहा कि वह अम्मा से कहने लगे, ‘‘रशीद अच्छा लड़का है, देखाभाला. अच्छाखासा कमाता भी है. मैं ने तय किया है कि हुस्ना की शादी रशीद से कर दी जाए. वह सुखी रहेगी और हमारी आंखों के सामने भी.’’

अम्मा ने ऐतराज करना चाहा तो अब्बा बोले, ‘‘इस से अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा. रशीद हुस्ना को पसंद भी करता है. गरीब चपरासी की लड़की के लिए किसी शहजादे का रिश्ता तो आएगा नहीं.’’

मैं ने अब्बा से कहा, ‘‘अब्बा, मैं रशीद से शादी नहीं करना चाहती और वह भी नहीं चाहता.’’

मुझ पर शाहनवाज के इश्क का ऐसा नशा चढ़ा था कि जो दिल में आया, कह दिया. अब्बा उस वक्त खामोश हो गए. दूसरे दिन स्कूल से वापस लौटते हुए मैं रशीद की दुकान पर रुक गई. मैं ने उस से रूखेपन से कहा, ‘‘तुम ने अब्बा से यह क्यों कहा कि मुझ से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम से मोहब्बत करता हूं और तुम अपनी सहेली के कजिन से शादी करना चाहती हो पर याद रखना वह फ्रौड है, तुम्हें धोखा देगा.’’

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