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“मैं तो भूल ही गया था कि जनरल डब्बे में सारी रात मैं ने जाग कर काटी है. थोड़ी देर आराम कर लेता हूं,“ इतना कह कर राम लाल अपने कमरे में आ गए.

बेटी के सुनहरे भविष्य के लिए उस की आंखों में ढेर सारे सपने थे. एक मामूली सी सरकारी नौकरी में रह कर उस ने अपने दोनों बेटे और बेटी को अच्छी शिक्षा देने की पूरी कोशिश की थी. दोनों बेटे उस की तरह सरकारी नौकरी तो न पा सके, लेकिन प्राइवेट नौकरी कर अपनी गृहस्थी अच्छे से चला रहे थे. राम लाल को उन्हें देख कर संतोष था. बेटी ने भी ग्रेजुएशन करने के बाद आगे पढ़ने की इच्छा नहीं जताई. उस की बात मान कर राम लाल ने भी उस पर कोई जोर न दिया. वह नौकरी करना चाहती थी. एक प्राइवेट फर्म में वह पिछले 5 सालों से काम कर रही थी. राम लाल को उस के काम करने पर कोई एतराज न था. वह समय से घर से निकलती और ड्यूटी खत्म होते ही घर वापस आ जाती. सबकुछ ठीक चल रहा था.

जवान बेटी को देख राम लाल को उस की शादी की चिंता सताने लगी थी. उस ने रिश्ते देखने शुरू किए, तो रवि ने बाबूजी को आगाह किया, “बाबूजी, आप उस से भी पूछ लीजिए. कहीं उस ने अपने लिए किसी को पसंद तो नहीं कर रखा है.“

“जमाने को देखते हुए तुम ठीक कहते हो बेटा. लेकिन, हमारी यशस्वी ऐसी नहीं है. अगर ऐसी कोई बात होती, तो वह अपनी अम्मां को बता देती.“ “आप अम्मां से कह दीजिए कि वह उस की इच्छा जरूर पता कर ले.“

बेटे की बात रमा को भी ठीक लगी. उस ने यशस्वी से पूछा, “तुम्हारी शादी की उम्र हो गई है. तुम्हारे बाबूजी रातदिन तुम्हारे लिए रिश्ता ढूंढ़ने में लगे हुए हैं. तुम्हारी अपनी कोई पसंद हो तो पहले ही बता दो. तुम जानती हो, हमारे लिए बिरादरी बहुत महत्व रखती है. हम उस से बाहर जा कर कोई काम नहीं कर सकते.“

“अम्मां, ऐसी कोई बात नहीं है. बाबूजी जो भी मेरे लिए सोचेंगे, अच्छा ही सोचेंगे.“ “मुझे तुम से यही उम्मीद थी कि हमारी बेटी कभी भी हम से बाहर नहीं जा सकती,“ आश्वस्त हो कर रमा बोली. उस के बाद यशस्वी ने आगे अम्मां से कोई बात नहीं की और नाश्ता कर के अपनी ड्यूटी पर चली गई.

शाम को यशस्वी घर आई. वह काफी थकी हुई लग रही थी. उसे उस के साथ काम करने वाला सुखविंदर छोड़ने आया था. यशस्वी ने आते की उस का परिचय कराया, “पापा, यह सुखविंदर है. मेरे साथ काम करते हैं.“

सुखविंदर ने औपचारिकतावश हाथ जोड़ दिए. राम लाल ने उस से सीधे पूछा, “इधर कैसे आना हुआ?“ “औफिस में यशस्वी की तबीयत ठीक नहीं थी, इसीलिए मैं इसे घर पहुंचाने आ गया.“ “ठीक किया तुम ने. दुखसुख में साथी ही काम आते हैं.“

इतना कह कर राम लाल अपने काम में लग गए. उसे वहां बैठना अटपटा सा लग रहा था. वह सरल स्वभाव का अच्छा लड़का था. हर एक की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता. यशस्वी के घर पर किसी को उस का आना अच्छा नहीं लगा था. यह बात वह भी महसूस कर रहा था. यशस्वी बोली, “बैठो. मैं चाय बना कर लाती हूं.“

“चाय पीने फिर कभी आऊंगा. अभी तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम आराम करो,“ इतना कह कर सुखविंदर वहां से चला गया. उस के जाने के बाद रमा बोली, “तुम्हें ऐसे ही किसी को घर ले कर नहीं आ जाना चाहिए.“ “क्यों…? क्या हो गया…?“

“तुम देख रही हो कि सुखविंदर का यहां आना तुम्हारे बाबूजी को जरा भी पसंद नहीं आया. पता नहीं महल्ले वाले क्याक्या बातें बनाते होंगे कि औफिस में काम करने वाला लड़का हमारी बेटी को छोड़ने घर तक आने लगा है.“ “इस में बुराई क्या है अम्मां?“

“यह तुम नहीं समझोगी. औफिस की दोस्ती वहीं तक सीमित रखा करो. साथियों को घर लाने की कोई जरूरत नहीं है,“ रमा डपट कर बोली. रमा को अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा था. वह हमेशा अपने बच्चों के सामने एक ही बात कहती रहती, “हमें अपनी सीमाओं में रह कर काम करना चाहिए.“

यशस्वी बहुत गुणी थी. वह दिनभर औफिस में काम करती और शाम को भी अकसर अम्मां के साथ काम पर लग जाती. आसपड़ोस के लोग उस का उदाहरण देते कि लड़की हो तो यशस्वी जैसी. नौकरी के पूरे 5 बरस में उस ने कुछ रुपए बचा कर अपने लिए कुछ गहने भी जोड़ लिए थे. अच्छे कपड़ों का उसे बचपन से ही शौक था.  अपना शौक पूरा करने के लिए ही उस ने जल्दी ही नौकरी करनी शुरू कर दी थी.

राम लाल को आज नींद नहीं आ रही थी. कुछ देर आराम करने के बाद वह घर से बाहर निकलने लगा, तो रमा ने पूछा, “अभी कहां जा रहे हो? थोड़ा और आराम कर लेते.“ “तुम तो जानती हो कि यशस्वी की शादी के लिए पैसों का इंतजाम करना है. मैं पहले मैडम से मिल कर आता हूं. उन्होंने पहले भी कहा था कि जब भी तुम्हें जरूरत पड़े सीधे मेरे पास आना. जब तक रुपयों का इंतजाम नहीं हो जाता, मुझे चैन से नींद नहीं आएगी.“

“ठीक है, समय से घर लौट आना,“  रमा ने कहा. राम लाल ने अपनी स्कूटी उठाई. थोड़ी ही देर में राम लाल मैडम के पास पहुंच गया. मैडम शर्मा उस के औफिस की बौस थी. राम लाल को सेवानिवृत्त हुए 6 साल हो गए और मैडम भी इसी साल रिटायर हुई थी. उन्होंने इसी शहर में अपना घर बना लिया था. आज भी राम लाल उन के एक फोन पर उन के पास दौड़ा चला आता. वह भी उस की हर तरह से मदद करती. दोनों बेटों की शादी में भी उन्होंने उस की आर्थिक मदद की थी. धीरेधीरे उस ने सारा उधार चुका दिया था. मैडम को किसी चीज की जरूरत पड़ती तो फोन कर देती. राम लाल तुरंत आ कर उन का काम निबटा देता.

 

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