राइटर- डा. के रानी हर
राम लाल जतिन और उस के परिवार से मिल कर आज बहुत खुश था. उसे लगा कि अब उसे उस की मंजिल मिल गई है. खातेपीते घर का जतिन देखने में बहुत सुंदर और अच्छी नौकरी पर था. इस से ज्यादा राम लाल को और क्या चाहिए था? बात करने में शिष्ट और स्वभाव से सरल जतिन राम लाल को पहली नजर में ही भा गया था. उस के मांबाप तो जैसे सज्जनता की प्रतिमूर्ति थे. उन्होंने राम लाल से कुछ साधारण बातें पूछी और बोले, “हमें अच्छे घर की लड़की बहू के रूप में चाहिए. हमारी और कोई मांग नहीं है. बस लड़की संस्कारवान होनी चाहिए.“
“मैं यकीन से कह सकता हूं कि आप को यशस्वी बहुत पसंद आएगी. मेरी बेटी बहुत संस्कारवान है. आप जब उस से मिलेंगे तो आप को बहुत अच्छा लगेगा.“
“इस से ज्यादा हमें और कुछ नहीं चाहिए. जल्दी ही हम यशस्वी से मिलने आप के घर आएंगे और आगे की बात तय कर लेंगे.“
कुछ देर इधरउधर की बातें कर राम लाल ने हाथ जोड़ कर उन से विदा ले ली. राम लाल उन से बहुत प्रभावित था. पिछले 2 सालों से यशस्वी के लिए राम लाल ने अब तक 50 से ज्यादा लड़के देख लिए थे, लेकिन कहीं भी बात नहीं बन पाई. जहां उसे लड़का और उस का खानदान पसंद आते, वहां यशस्वी विचार न मिलने की बात कह कर रिश्ते से इनकार कर देती.
इतना सब होने पर भी राम लाल ने हिम्मत नहीं हारी थी और लगातार प्रयास में लगे हुए थे. वह जल्दी से जल्दी बेटी के हाथ पीले कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. उन्हें पूरा यकीन था कि इस बार यशस्वी जतिन में कोई कमी न निकाल सकेगी. लड़का सर्वगुण संपन्न था और परिवार भी खातापीता. इस से ज्यादा उन्हें और कुछ नहीं चाहिए था.
राम लाल का सिर मन ही मन पंडितजी के प्रति श्रद्धा से झुक गया. उसे लगा कि इस बार पंडितजी की बात सच साबित हुई. उन्होंने कह दिया था, “राम लाल इस बार तुम्हें ऐसा लड़का मिला है, जिस में बिटिया कोई कमी न निकाल सकेगी. मैं ने पूजापाठ कर के उस के तेज ग्रह शांत कर दिए हैं.“
पंडितजी ने दिन, वार तय कर के राम लाल को दामाद देखने की सलाह दी थी. उन की भविष्यवाणी फलित हो गई और राम लाल का भरोसा उन पर और बढ़ गया. पहले भी वह पंडितजी को पूछ कर लड़के देखने जाता था. हर बार पंडितजी उसे कार्य सफल होने का आशीर्वाद देते थे. इस बार उन्होंने पहले से ही राम लाल को आगाह कर बड़ी पूजा से तेजस्वी के ग्रहों को शांत करने का उपाय कर दिया था. उन्हीं की वजह से आज राम लाल को यह दिन देखना नसीब हो रहा था.
वह जल्दी से जल्दी घर पहुंच कर यह खुशखबरी अपनी पत्नी रमा को सुनाना चाहता था. फोन पर बात करने का वह आनंद कहां, जो सामने बैठ कर बात करने में आता है.
राम लाल ने रात की ट्रेन पकड़ी और सुबह देहरादून पहुंच गया. उस ने जैसे ही घर में कदम रखा, रमा ने पूछा, “कैसी रही उन से मुलाकात?“
“मैं ने तुम्हें फोन पर बता दिया था. बहुत अच्छी रही.“ “तुम्हारे चेहरे से लग रहा है कि इस रिश्ते से तुम बहुत खुश हो.“ “मुझे ही नहीं, यशस्वी को भी यह रिश्ता पसंद आएगा. कहां है यशस्वी?“
“अभी सो कर नहीं उठी है.“ “मैं उसे यह खुशखबरी अभी सुनाना चाहता था.“ “पहले उसे उठने तो दो. उस के बाद सुना लेना. बिटिया कहां भागी जा रही है.“
राम लाल के दोनों बेटे रवि और विशाल भी बाबूजी का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. राम लाल ने यह खुशखबरी उन्हें भी सुना दी. “बाबूजी, उन्हें यशस्वी की फोटो तो पसंद आ गई. वे रिश्ता पक्का करने के लिए कब आ रहे हैं?“ “बहुत जल्दी बुला लेंगे बेटा. मैं ने उन से कुछ समय मांगा है. बस उन की एक ही इच्छा है कि शादी धूमधाम से होनी चाहिए. बाकी उन्होंने किसी चीज की मांग नहीं रखी.“
“तब तो वास्तव में वे बहुत सज्जन लोग होंगे.“ “मुझे थोड़ा पैसों का इंतजाम करना है. पैसों का इंतजाम होते ही मैं चट मंगनी और पट ब्याह कर दूंगा.“
“बाबूजी, आप ने यशस्वी के लिए रिश्ता ढूंढ़ने में बहुत भागदौड़ की है. हम भी देख रहे हैं 2-3 साल से आप ने रातदिन एक कर रखा है. आसपास का कोई शहर आप ने नहीं छोड़ा, जहां आप रिश्ता ढूंढ़ने न गए हों.“
“यशस्वी मेरी बेटी है और तुम्हारी इकलौती बहन. मैं नहीं चाहता कि उसे जीवन में कभी कोई परेशानी उठानी पड़े. चाहे मुझे इस के लिए कितनी भी भागदौड़ क्यों न करनी पड़े. जिस के साथ उसे जीवन बिताना है, वह उसे हर लिहाज से पसंद आना चाहिए.“
“आप ठीक कहते हैं बाबूजी. शायद इसीलिए आप इतनी भागदौड़ कर रहे हैं.“ “मेरी भागदौड़ के पीछे पंडितजी का बहुत योगदान है. इस बार उन्होंने पहले से ही बड़ी पूजा कर के सारा इंतजाम पक्का कर दिया था. तभी मेरा प्रयास सफल हो पाया है. नहीं तो अकेले मैं क्या कर सकता था? उन के आशीर्वाद के बगैर इतना अच्छा रिश्ता मिलना नामुमकिन था. औलाद हर मांबाप को अपने से ज्यादा प्यारी होती है. उन का ध्यान रखना हमारा फर्ज है.“
“आप आराम कर लीजिए बाबूजी. ट्रेन में कहां नींद आ पाती है? थक गए होंगे.“