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“मेरी आंखें तो आज ही खुली हैं. आज से पहले तो मैं बेटी की ममता में अंधी हो रखी थी. मुझे उस के कुलक्षण दिखाई ही नहीं दिए. लोग कहते हैं कि मां तो बेटी की आंखों के इशारों से उस के लक्षण समझ जाती है. मेरी आंखें कैसी फूटी थीं, जो कुछ न देख पाईं.“

“अपने को दोष मत दो रमा. संभालो अपने को.““1-2 दिन में घर पर मेहमान आने शुरू हो जाएंगे. यह तो सोचो कि हम उन्हें क्या जवाब देंगे ?“ रवि बोला, तो राम लाल निरुत्तर हो गए. जिस शादी की तैयारी में वे जीजान से जुटे हुए थे, उस का पटाक्षेप इस तरीके से होगा, यह तो उन की कल्पना से परे था. इस के बारे में सोचते हुए उन का दिल जोरों से धड़क रहा था. रवि और विशाल को बाबूजी की चिंता थी. कहीं वे इतना बड़ा सदमा न झेल पाए तो क्या होगा? राम लाल निढाल हो कर कुरसी पर पसर गए. रवि ने पूछा, “बाबूजी, आप ठीक तो हैं?“

“हां, मैं ठीक हूं. अपने को संभालने की कोशिश कर रहा हूं.““ बाबूजी, हिम्मत रखिए. जो होना था हो चुका. उसे अब बदला नहीं जा सकता. एक बार वह मेरे हाथ लग जाए, तो मैं उसे घर से भागने का मतलब ठीक ढंग से समझा देता,“ रवि गुस्से से बोला.

“यह वक्त यह सब सोचने का नहीं है. कल का सवेरा हम कैसे झेलेंगे? अगलबगल के लोगों की नजरों का जवाब कैसे देंगे? हमारी सूरत देख कर सब समझ जाएंगे कि यहां कोई बड़ी घटना घटी है.““सुबह का सूरज तो देखना ही होगा बाबूजी. कैसे भी  हम दुनिया का सामना करेंगे और सब को बता देंगे कि यह कोई नई घटना नहीं हुई. ऐसा भी होता ही रहता है दुनिया में.“

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