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“यशस्वी अब तुम ऐसे घर जा रही हो, जहां तुम्हें नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं. अब तुम काम छोड़ दो.“ “बाबूजी, नौकरी एक दिन में नहीं छोड़ सकते. इस के लिए 15 दिन पहले नोटिस देना पड़ता है. मैं दो हफ्ते बाद नौकरी छोड़ दूंगी.““पंडितजी ने कहा है कि बिटिया को इन दिनों घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए.“

“यह कैसी बातें कर रहे हैं बाबूजी? इस जमाने में  लड़कियां मांबाप के कंधे से कंधा मिला कर सारे काम निबटाती हैं.“ “मैं यह सब नहीं जानता. काम में हाथ बंटाने के लिए तुम्हारे भाई हैं. पंडितजी की बात सौ फीसदी सही होती है. तुम तो जानती हो कि उन के कहने पर पूजापाठ से तुम्हारे लिए इतना अच्छा रिश्ता मिला है. अब जरा सी बात के लिए मैं उस में कोई रुकावट नहीं चाहता. जितनी जल्दी हो सके, काम पर जाना छोड़ दो और मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाओ.“

यशस्वी को बाबूजी की दकियानूसी बातें सुन कर गुस्सा आ रहा था. वह  चुपचाप वहां से हट गई. राम लाल ने सब को अलगअलग जिम्मेदारियां सौंप दी थीं. सभी अपने कामों में लगे हुए थे. 2 हफ्ते बाद यशस्वी ने बताया कि उस ने नौकरी छोड़ दी है. वह रोज दिन में बाजार के काम निबटाने के लिए घर से निकल जाती. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, राम लाल की चिंता बढ़ती जा रही थी. रमा पति को समझाती, “आप चिंता न करें. समधीजी ने जब कोई मांग रखी नहीं है, तो फिर तनाव कैसा? हम शादी अच्छे से निबटा देंगे और हम से जो बन पड़ेगा अपनी बेटी को भी देंगे. देख लेना सबकुछ ठीक से निबट जाएगा.“

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