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‘‘ जी आभार, मुझे और आपको षादी की तैयारी भी करनी होगी. ’’

हमने चाय पी और अपने-अपने रास्ते पर चल दिए. दूसरे दिन रज्जो की सहेली ने बताया कि रज्जो और उसके मां-बाप उसकी  चाची और चाचा से मिले थे. उन्होंने आपकी ग्रारंटी तो ली लेकिन परिवार की बिल्कुल नहीं. इसलिए षादी का फैसला किया गया. इस तरह षादी हुई. वह मेरे जीवन में आई और मैं आगे-आगे ही बढ़ता गया.

एक झटके से गाड़ी रूकी तो मेरी तंद्रा टूटी. ड्राइवर ने कहा, ‘‘ सर, यहां लंच कर लेते है. ’’

‘ ठीक है. मैंने देखा, हम निचाई पर हैं. पास ही षुद्ध पानी का एक झरना बह रहा है. खाने के लिए इससे षानदार जगह हो ही नहीं सकती थी. हेल्पर ने मेरे लिए फोलडिंग टेबल, स्टूल रख दिया. ऐसे स्टूल और टेबल विभिन्न उद्देष्यों के लिए हर अफसर को उपलब्ध रहते हैं. जवान कहीं भी बैठ कर खाना खा लेते हैं. खाना, सचमें स्वादिश्ट था. खाने लायक गर्म था. मैंने पेट भर खाया.

खाने के बाद गर्म चाय पी. फिर आगे के सफर के लिए चल दिए. ड्राइवर का अनुमान ठीक था. हम 5 बजे अपनी यूनिट में पहंुचे.

वहां रात जल्दी हो जाती है. षाम 5 बजे ही काफी अंधेरा हो गया था. मेजर सुबरामनियम साहब ने अफसर कमांडिंग के लिए निष्चित कमरे में ही मेरे रहने का प्रबंध किया. वे दूसरे कमरे में षिफ्ट हो गए थे. उनकी पोस्टिंग षानदार जगह हुई थी. वे इस वातावरण से जल्दी निकल जाना चाहते थे. अपने परिवार के साथ रहना चाहते थे.

रात को डिनर से पहले ड्रिंक करते समय मेजर साहब को मैंने आष्वस्त कर दिया कि कल कमांडर साहब की इंटरव्यू के बाद आप मुझे ब्रीरिफंग करें, फिर कभी भी पोस्ंिटग जा सकते हैं.

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