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‘ जयहिंद, सर. आपकी पोस्ंिटग आ गई है. ’ हैडकर्लक साहब ने जब मुझे बताया तो मेैंने पूछा, ‘ कहां की है ? ’‘‘ पता नहीं, पर, सर आप को चंदीगढ़ ट्रांजिट कैंप में रिपोर्ट करनी है. यह लैटर दिया है. ’’

मैं समझ गया, यह फारवर्ड ऐरिया की छोटी यूनिट है जिसे मुझे कमांड करना है. लैटर में लिखा था, यूनिट फीलड में है और फैमिली क्वार्टर उपलब्ध नहीं हैं. लेह एयरपोर्ट से आपको गाड़ी लेने आएगी. सर्दी काफी रहंेगी. मन के भीतर केवल यह विचार था कि हर सैनिक को चाहे वह किसी भी रैंक का हो, इस ऐरिया में जाना पड़ता है.

मैंने अपनी पत्नी को बताया तो उसने कहा, ‘‘ पोस्ंिटग आनी ही थी. यह अच्छा है, आपकी इंडिपैंटड कमांड होगी. बच्चे पढ़ रहे है. क्वार्टर यही रहेगा. ’’‘ हां, बिल्कुल. अकैडमिक वर्श तक यही क्वार्टर रहेगा.  मैंने सेप्रेटड  फैमिली क्वार्टर के लिए अप्लाई किया है. जल्दी मिल जाएग‘‘ कोई बात नहीं जैसा होगा देखा जाएगा. ’’

मन से मैं चाहता था, क्वार्टर मिल जाए तो मैं उस में सेट करके ही जाऊं. इतनी दूर से बार बार आना मुष्किल होता है. मुझे नई यूनिट में जाने के लिए 1 महीने का समय दिया गया था. मुझे 15 दिन में क्वार्टर मिल गया था. सबकुछ मेनेज करते करते 1 महीना हो ही गया था.

वहां इस समय कमांड कर रहे अफसर से बात हुई तो उन्होंने कहा, ‘‘ सर, चंदीगढ़ ट्रांजिट कैंप के चक्कर में न पड़ें. आप सीधे लेह की फलाइट पकड़ें. अगर वहां ऐयर लिफटिंग के वारंट उपलब्ध नहीं है तो मैं यहां से भेज देता हूं. मैं लेह एयरपार्ट पर गाड़ी भेज दूंगा. स्नोह कलोदिंग की भी वहां उतरते ही जरूरत पड़ेगी, वह भी भेज दूंगा. जो लैटर आपको भेजा है. वह रुटीन लैटर है. सबको भेजा जाता है ’

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