लेखिका-डा. क्षमा चतुर्वेदी
‘‘मुझे लगता है कि घनश्याम कुछ छिपा रहा है, अब चंडीगढ़ पहुंच कर उस से बात करनी पड़ेगी. विशाल ने फिर परी को भी तैयार किया, अकेले उसे इस हाल में तो छोड़ा भी नहीं जा सकता था.
‘‘अब तू कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर चल...’’ वीणा के आग्रह को फिर परी टाल नहीं पाई थी. पर, घनश्याम ने जो कहा, उसे सुन कर तो वीणा और विशाल अवाक ही रह गए.‘‘हम ने तो यही सोचा था कि परी से शादी कर के प्रमेश अपनी लंदन की गर्लफ्रेंड को भूल जाएगा, पर क्या करें... परी बांध नहीं पाई उसे और वह सबकुछ छोड़ कर वापस लंदन चला गया...’’
घनश्याम और सुनीता ने सबकुछ इतनी सहजता से कहा, मानो कुछ हुआ ही न हो.
‘‘आप को हमारी भोलीभाली बेटी ही मिली थी बलि चढ़ाने को...’’वीणा अपना गुस्सा रोक नहीं पा रही थी, उधर विशाल का ब्लड प्रेशर और बढ़ने लगा था. ‘‘घनश्याम, तू ने आज अपने दोस्त की पीठ पर छुरा घोंपा है. इस का अंजाम अच्छा नहीं होगा. तू ने आज मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद कर दी. ब्याहशादी क्या गुड्डेगुड़ियों का खेल समझा था तू ने.’’
पर घनश्याम और उस की पत्नी पर जैसे कोई असर ही नहीं हो रहा था. किसी प्रकार विशाल को संभालते हुए वीणा घर आई. ‘‘अब आप अपनेआप को संभालिए, अभी हमें बेटी को भी संभालना है...’’ उधर विशाल कहे जा रहा था.‘‘गलती हमारी ही थी, हमें शादी की जल्दी करनी ही नहीं थी. पहले प्रमेश के बारे में पता करना था, पर क्या पता था कि दोस्त हो कर...’’