परी और मनीष 4 घंटे तक वहां बैठे रहे. परी को लगा ही नहीं कि वह यहां पहली बार आई है. जहां मनीष के घर उसे हर समय डर सा लगा रहता था कि कहीं कुछ गलत न हो जाए. हर समय अपने रंगरूप को ले कर सजग रहना पड़ता था, वहीं यहां वह एकदम सहज थी.
तभी परी के मोबाइल की घंटी बजी. शकुंतलाजी दूसरी तरफ थीं, ‘‘परी तुम्हें कुछ
होश है या नहीं, क्या समय हुआ है? मनीष
का तो वह दोस्त है पर तुम्हें तो खयाल रखना चाहिए न...’’
जब वे लोग वहां से बिदा हो कर चले तब रात के 11 बज चुके थे. घर पहुंच कर परी जब चेहरा धो रही थी तब उस ने करीब से देखा, उस दाने के साथ एक और दाना बगल में उग चुका था. वह गहरी चिंता में डूब गई. वह मन ही मन सोच में डूब गई कि अब कैसे सामना करूंगी? उस ने तो मुझे पसंद ही मेरी खूबसूरत पारदर्शी त्वचा की वजह से किया है.
मनीष अधीरता से बाथरूम का दरवाजा पीट रहा था, ‘‘डौल, मेरी बार्बी डौल जल्दी आओ.’’
उस की कोमल व बेदाग साफ त्वचा के कारण ही तो वह उसे बार्बी डौल कहता था.
फिर से उस ने फाउंडेशन लगाया और बाहर आ गई. मनीष ने उसे बांहों में उठाया
और फिर दोनों प्यार में डूब गए.
उषा की किरणों ने जैसे ही कमरे के अंदर प्रवेश किया, मनीष प्यार से अपनी बार्बी डौल
के गाल थपथपाने लगा. पर यह क्या, मनीष एकदम बोल उठा, ‘‘परी, तुम्हारे गाल पर यह क्या हो रहा है?’’
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