22 साल की छोटी सी उम्र में इला फैशन इंडस्ट्री की एक जानीमानी हस्ती बन चुकी है. इतना ही नहीं अब इला ने शाहपुरजट इलाके में अपना नया शोरूम बना लिया है. साथ ही अपना ब्रैंड भी लौंच कर लिया है. अब वह बड़ेबड़े फैशन डिजाइनरों को टक्कर देने लगी है.
इला ने अपने नए ब्रैंड का नाम भी अनोखा सा ही रखा है, ‘जे फौर जानकी.’
जब कोई उस से पूछता है कि उस ने अपने ब्रैंड का यह नाम क्यों चूज किया है तो इला फख्र से बताती है कि जानकी मेरी प्यारी दादी मां का नाम है. आज यदि मैं अपनी लाइफ में इस मुकाम तक पंहुची हूं तो सिर्फ दादी मां की वजह से. मेरी दादी मां ही मेरी लाइफ की मैंटोर, मोटीवेटर व नेविगेटर आदि सब हैं.
इला की दादी मां इला के औफिस में हर रोज इला के साथ औफिस में आती हैं. कुछ देर आरामकुरसी पर बैठती हैं और जब थक जाती हैं तो इला ड्राइवर के साथ घर वापस भेज देती है. इला के मन में यह अटल विश्वास है कि दादी मां का चेहरा देख कर दिन की शुरुआत करने से निश्चय ही उस का पूरा दिन बहुत अच्छा गुजरता है.
जब इला उन की तरफ देख कर लोगों को इंगलिश में उन की तारीफ में कसीदे पढ़ती है तो उन शब्दों का पूरापूरा मतलब तो नहीं समझ पाती दादी पर इला के हावभाव से यह जरूर पता लग जाता है कि उन की पोती उन की तारीफ में ही कुछ कह रही है.
दादी मां इला की इस अदा पर मन ही मन खुश हो कर उस को ढेर सारे आशीर्वाद दे डालती हैं. दादी मां के चेहरे पर मंदमंद मुसकराहट खिल जाती है. इस मुसकराहट के पीछे न जाने कितनी दर्द की लकीरें अंकित हैं यह तो सिर्फ वे ही जानती हैं, फिर तुरंत ही अपने मन को यह कह कर समझ लेती हैं कि अंत भला तो सब भला.
इला उन के इकलौते बेटे राघव व बहू नीरा की इकलौती बेटी थी. इला के जन्म के बाद एक साल तक नीरा ने अवकाश ले कर इला की परवरिश की फिर औफिस जौइन करने के लिए यह सवाल सामने आया कि इतनी छोटी बच्ची को न तो घर में अकेले आया के साथ छोड़ा जा सकता है और न किसी डे केयर में.
नीरा ने जब यह समस्या अपनी मां के साथ शेयर की तो इला की नानी उस को अपने घर ले गईं. उन का मानना था कि इतनी छोटी बच्ची को अभी से किसी आया के भरोसे छोड़ना बिलकुल भी ठीक नहीं है. यों भी नीरा को अपनी बच्ची से अधिक अपने कैरियर की अधिक चिंता थी.
नीरा की मां ने लाख समझाया कि इला को अभी तुम्हारी व तुम्हारे प्यार की बहुत जरूरत है और जब तक इला 5 साल की नहीं हो जाती तब तक अपने जौब को भूल जाओ. लाइफ में समय व परिस्थिति के अनुसार कई समझौते करने ही पड़ते हैं. इन 5 सालों में तो मैं अपने कैरियर में इतना पीछे रह जाऊंगी कि फिर मुझे कोई जौब भी देगा या नहीं. मैं अपना कैरियर दांव पर नहीं लगा सकती, नीरा ने अपना दोटूक फैसला अपनी मां को सुना दिया.
काफी सोचविचार के बाद इला की नानी उसे अपने साथ अपने घर ले गई. इला अपनी नानानानी की आंखों का तारा थी. साथ ही इला की बालसुलब चपलता से उन का मन भी बहल जाता था. नीरा भी बीचबीच में अवकाश ले कर इला से मिलने जाती रहती थी. जब भी जाती अपनी बेटी के लिए ढेरों उपहार, टौफी, चौकलेट आदि ले जाती. शायद यही उस का अपनी बेटी को प्यार दिखाने का तरीका था.
इधर कुछ दिनों से इला की नानी की तबीयत खराब रहने लगी तो उन्होंने नीरा से कहा कि अब तुम इला को अपने साथ रखो ओर उस की देखरेख के लिए किसी अच्छी आया का इंतजाम कर लो.
नानानानी के लाड़प्यार ने इला को जिद्दी व बिगड़ैल बना दिया था. राघव व नीरा तो सारा दिन औफिस में व्यस्त रहते. इला अभी इतनी बड़ी नहीं हुई थी कि उसे घर में अकेले छोड़ा जा सके. अभी वह सिर्फ 6 साल की थी.
नीरा ने अपनी समस्या औफिस की कुलीग के साथ शेयर की. किसी ने आया रखने की सलाह दी तो किसी ने घर पर दादीनानी को बुला कर उन के पास छोड़ने की सलाह दी. अधिकांश कुलिग्स का कहना था कि कितनी भी अच्छी आया रख लो फिर भी बच्चे के पास किसी अपने का होना जरूरी है. इस से बच्चा सिक्योर फील करता है.
नीरा ने औफिस से एक सप्ताह का अवकाश लिया, शहर की अच्छी से अच्छी सिक्योरिटी एजेंसियों के बारे में पता किया जो अच्छीअच्छी आया का प्रबंध कर सकती थी. 1-2 कंपनियों ने तो शहर के नामीगिरामी लोगों के नाम भी बताए कि हमारे यहां से भेजी गई आया के व्यवहार से उस के घर वाले संतुष्ट थे. नीरा ने पूरे घर में कैमरे भी फिट करवा दिए जिस से वह औफिस मे बैठेबैठे आया के क्रियाकलापों पर नजर रख सके कि आया उस की बच्ची के साथ कैसा व्यवहार कर रही है.
नीरा इतना करने के बाद काफी संतुष्टि का अनुभव कर रही थी कि वह तसल्ली से अपनी जौब पर फोकस कर सकेगी. राघव के टूर से लौटने पर उस ने अपने इंतजाम के बारे में बताया.
नीरा की सब बात सुनने के बाद राघव ने खुश हो कर कहा, ‘‘नीरा, हमारी बेटी इला के बारे में जो सोचा है बहुत अच्छा सोचा है. लेकिन मेरा मानना अभी भी यही है कि जबकि हम दोनों अपनेअपने जौब में बिजी हैं, ऐसे में आया के अलावा घर में किसी अपने का होना बहुत जरूरी है.
आप का क्या मतलब है कि किसी अपने का होना जरूरी है. अब कोई अपना क्या बाजार से खरीद कर लाया जाएगा? आप को तो मालूम है कि मेरी मां ने 6 साल तक इला को पालापोसा है. अब मेरे परिवार में तो कोई है नहीं जो हमारे घर आ कर रहे इला के साथ.
‘‘क्यों, इला की दादी तो है अभी. वे स्वस्थ भी हैं, अनुभवी भी. उन को जा कर ले आता हूं, वही रहेंगी इला के साथ. फिर जब इला कुछ और बड़ी हो जाएगी तो उसे किसी अच्छे होस्टल में डाल देंगे, जहां उस की पढ़ाईलिखाई व देखरेख दोनों भलीभांति हो जाएगी,’’ राघव के मुंह से इला की दादी को अपने घर में लाने की बात सुन कर नीरा का मूड उखड़ गया.
‘‘आप को तो बस हरदम अपनी मां को ही इस घर में लाने के मौके की तलाश रहती है. आप को तो मालूम है कि मुझे अपने घर में किसी की दखलंदाजी जरा भी पसंद नहीं है फिर वह देहातिन मेरी बच्ची को क्या अच्छी आदतें व संस्कार सिखाएगी.’’
‘‘क्यों, हम भाईबहनों को भी तो उन्होंने ही पाला है और अच्छे संस्कार भी दिए हैं,’’ इस मुद्दे को ले कर राघव व नीरा में काफी बहस हुई. आखिर नीरा को अपनी मौन सहमति देनी ही पड़ी.
भावावेश मे आ कर नीरा ने सासूमां के लिए जो देहातन शब्द का प्रयोग किया था उस पर उसे खुद ही खेद हुआ और इस के लिए राघव से उस ने तुरंत सौरी कह कर माफी मांग ली.
दूसरे दिन इतवार था. राघव कार ले कर गया और दोपहर तक मां को ले कर आ गया. बहू नीरा ने उन्हें देख कर जिस अंदाज मे पैर छुए और जिस तरह मुंह लटका लिया वह उन्हें बहुत खला. आखिर वह बच्ची तो नहीं थीं. अनमने ढंग से किए जाने वाले स्वागत को पहचानने की बुद्धि वह रखती ही थीं. उन की पोती भी उन्हें अजनबी नजरों से देखती रही. फिर राघव ने इला को बताया कि तुम्हारी दादी मां हैं. इन को अपना कमरा नहीं दिखाओगी?
यों तो नीरा ने इला को व्यस्त रखने के लिए उस को कई तरह की ऐक्टिविटीज की क्लासेस जौइन करा दी थीं. इन क्लासेस में वह क्या सीख कर आ रही है या नहीं, यह जानने और पूछने का नीरा को समय कहां था. उस की कौरपोरेट जगत की नौकरी, उस का सारा समय खा जाती थी. नीरा चाहते हुए भी इला से अधिक इंटरैक्शन नहीं कर पाती थी.
नीरा अपने जौब में व्यस्त रहती. सुबह 8 बजे घर से निकल कर शाम 8 बजे तक ही घर पहुंच पाती. तब तक इला सो चुकी होती. यही कारण था कि इला धीरेधीरे अपनी मां से दूर व दादी मां के नजदीक होती जा रही थी.
हां, शुरूशुरू में तो इला को अपने कमरे मे दादी मां का रहना अजीब लगा फिर उन के प्यार व स्नेहभरे व्यवहार से अब उन के साथ घुलनेमिलने लगी थी.
एक दिन ड्राइंग क्लास से लौटी तो बहुत खुश थी. जानकीजी ने उस की खुशी का कारण पूछा तो उस ने अपनी ड्राइंग की कौपी उन को दिखाई और बताया कि मैम ने हैप्पी फैमिली ड्रा करने को बोला था. मैं ने जो बनाया उस को देख कर बहुत खुश हुईं. मुझे शाबाशी दी. उस ने अपनी ड्राइंग कौपी में मम्मीपापा के साथ दादी मां को भी चित्रित किया था. जानकीजी यह जान कर बहुत खुश हुईं.
समय अपनी गति से बीत रहा था. घर में आया के साथसाथ इला की दादी मां है, यह सोच कर नीरा काफी निश्चिंत हो गई थी. इला धीरेधीरे बड़ी हो कर 12 साल की उम्र तक पहुंच रही थी. एक दिन स्कूल से लौटी तो स्कूलबैग पलंग पर पटक कर अपने बैड पर औंधे मुंह गिर कर रोने लगी. जानकीजी ने उस के स्कर्ट पर खून के दाग देखे तो घबरा गई. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा, ‘‘मुझे बताओ, क्या तुम को कहीं चोट लगी है, स्कूल में खेलते समय.’’
इला ने कहा, ‘‘नहीं, पर मेरे पेट मे जोर का दर्द हो रहा है. मां को 2-3 बार फोन मिलाया पर बात नहीं हो पाई. दादी मां, क्या आप के पास मेरे पेट दर्द को दूर करने की कोई दवा है?’’
‘‘हां, है न, मेरी दवा से तुम्हारा दर्द एकदम छूमंतर हो जाएगा,’’ जानकीजी समझ गईं कि इला को पीरियड्स शुरू हो गए हैं और इसी कारण उस की स्कर्ट पर खून के दाग लगे हैं और पेट दर्द हो रहा है.
उन्होंने आया को बोल कर गरम पानी की बोतल लाने को कहा. इला को अपने पास लिटाया, उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और पेट की सिंकाई की. थोड़ी देर में ही इला को नींद आ गई. जब वह सो कर उठी तो बोली, ‘‘लव यू दादी मां, आप ने तो सच में ही मेरा पेट दर्द गायब कर दिया.’’
इला को अपने पास बैठा कर धीरेधीरे उसे पीरियड्स की जानकारी दी और बताया, ‘‘बेटा, एक उम्र आने पर ऐसा सभी के साथ होता है. अब हर महीने तुम को इस से गुजरना होगा. 3-4 दिन के बाद तुम नौर्मल महसूस करोगी. डरने जैसी कोई बात नहीं है मेरी बच्ची. हां, इस दौरान तुम को अधिक उछलकूद से बचना होगा और अपने खाने में हैल्दी फूड्स शामिल करने होंगे ताकि इस दौरान जो रक्त तुम्हारे शरीर से बाहर निकलेगा उस से कमजोरी महसूस न हो.’’ इला ने दादी मां की सारी बातें बहुत ध्यान से सुनीं और कहा कि आगे से इन बातों का ध्यान रखेगी.
समय धीरेधीरे आगे बढ़ रहा था. दादी मां को सिलाई व कढ़ाई करते देख उस का रुझान भी इस ओर बढ़ रहा था. इस बार एग्जाम में क्राफ्ट की फाइल में उसे फुल मार्क्स मिले थे क्योंकि दादी मां से सीखे कसीदों ने उस को काफी हुनरबाज बना दिया था.
आज इला खुश थी क्योंकि उस की टीचर ने उस की क्राफ्ट फाइल दिखा कर उस की बहुत तारीफ की थी. घर आते ही इला दादी मां के गले मे बांहें डाल कर लिपट गई और बोली, ‘‘लव यू दादी मां.’’
जानकीजी इला को अब तक गुड टच व बैड टच के बारे में भी बता चुकी थीं. यों तो इला कार से ही स्कूल आनाजाना करती थी. सुबह ड्राइवर स्कूल छोड़ आता. शाम को वापस घर ले आता.
एक दिन इला स्कूल से आ कर अपने कमरे में कपड़े बदल रही थी. उस की क्लास का लड़का नोट्स लेने के बहाने घुस आया क्योंकि दरवाजा असावधानीवश खुला रह गया था. जानकीजी रसोई में इला के लिए खाना लगा रही थीं. वह लड़का पहले तो इला से छेड़छाड़ करने लगा फिर उस से जबरदस्ती करने की कोशिश की. इला जोर से चिल्लाई. आवाज सुन कर दादी मां तुरंत दौड़ी आई और उस लड़के का कौलर पकड़ कर 2-3 थप्पड़ मारे फिर घर के बाहर खींच कर ले गईं और जोरजोर से आवाज लगा कर पूरे महल्ले को जमा लिया. सभी लोगों ने पूरी बात जान कर उस लड़के की जम कर धुलाई की. तब तक किसी ने पुलिस को बुला लिया था. उस लड़के को पुलिस के हवाले कर दिया गया.
कमरे में आने पर देखा कि इला कोने में डरीसहमी खड़ी थी. वह जानकीजी को देख कर उन से लिपट कर रोने लगी और रोतीरोती बोली, ‘‘लव यू दादी मां. यू आर ग्रेट. यदि आज आप न होतीं तो न जाने क्या हो जाता. आया आंटी तो इन सब से बेखबर घोड़े बेच कर सो रही है.’’
शाम को नीरा के औफिस से वापस आने पर इला ने पूरी घटना अपनी मां को बताई कि किस तरह दादी मां की वजह से आज आप की बेटी किसी अनहोनी का शिकार होने से बच गई. नीरा को महसूस हुआ कि घर में किसी अपने का होना बहुत जरूरी है. साथ ही उस ने जा कर अपनी सासू मां को धन्यवाद दिया और अपने अब तक के व्यवहार के लिए माफी मांगी.
इला ने 12वीं तक जातेजाते जानकीजी से कपड़ों की कटिंग, कढ़ाई व डिजाइनिंग आदि सब सीख लिया था. इसलिए उस ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने का मन बना लिया था. उस की मां ने भी उस की चौइस पर अपनी हां की मुहर लगा दी क्योंकि इला के साथसाथ नीरा भी सासूमां के हुनर को सलाम करने लगी थी और इला वह तो उठतेबैठते हर समय बस एक ही बात बोलती रहती थी, ‘‘लव यू दादी मां.’’