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‘तो क्या करूं? इज्जत तो रखनी ही पड़ेगी. नहीं होगा तो एक बीघा खेत ही बेच डालूंगा.’

‘क्या कहा? खेत बेच डालोगे?’ लगा किसी ने मेरे सिर पर हथौड़े का प्रहार किया हो. क्षणभर को मैं इज्जत के ऐसे रखरखाव पर सिर धुनती रह गई. तीखे स्वर में बोली, ‘उस के बाद? सुधा और अंजना के ब्याह पर क्या करोगे? तुम्हारा और तुम्हारे लाड़लों के भविष्य का क्या होगा? तुम्हारे पिताजी तो तुम्हारे लिए 4 बीघा खेत छोड़ गए हैं जो तुम रस्मों के ढकोसले में हवन कर लोगे, लेकिन तुम्हारे बेटे किस का खेत बेच कर अपनी मर्यादा की रक्षा करेंगे?’ सत्य का नंगापन शायद इन्हें दूर तक झकझोर गया था. बुत बने ये ताकते रह गए. फिर तिक्त हंसी हंस पड़े, ‘तुम तो ऐसे कह रही हो, विमला की मां, मानो 4 ही बच्चे तुम्हारे अपने हों और विमला तुम्हारी सौत की बेटी हो.’

‘हांहां, क्यों नहीं, मैं सौतेली मां ही सही, लेकिन मैं गौना नहीं होने दूंगी. शादी करो तब पूरे खानदान  को न्योता दो, गौना करो तब फिर पूरे खानदान को बुलाओ. कपड़ा दो,  गहना दो, यह नेग करो वह जोग करो. सिर में जितने बाल नहीं हैं उन से ज्यादा कर्ज लादे रहो, लेकिन शान में कमी न होने पाए.’ इन के होंठों पर विवश मुसकान फैल गई. जब कभी मैं ज्यादा गुस्से में रहती हूं, इसी तरह मुसकरा देते हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो. इन के होंठों की फड़कन कुछ कहने को बेताब थी, परंतु कह नहीं सके. उठ खड़े हुए और आंगन पार करते हुए कमरे की ओर चले गए. जब से विमला की शादी तय हुई, शादी संपन्न होने तक यही सिलसिला जारी रहा. ये कंजूसी से ब्याह कर के समाज में अपनी तौहीन करवाने को तैयार नहीं थे, और मैं रस्मों के खोखलेपन की खातिर चादर से पैर निकालने को तैयार नहीं थी. ‘गौने की रस्म अलग से करनी ही होगी. सदियों से यह हमारी परंपरा रही है,’ मैं इस थोथेपन में विश्वास करने को तैयार न थी.

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