लेखिका- निधि अमित पांडे
पवित्रा को आवाज देते हुए पराग जैसे ही घर में दाखिल हुआ, शालिनी को वहां बैठा देख उस के होश उड़ गए थे. शालिनी मां और बाबू जी के साथ बैठ कर ऐसे बातें कर रही थी मानो कब से उन्हें जानती हो. पराग की आंखें पवित्रा को ढूंढ रही थीं. पवित्रा वहां नज़र नहीं आ रही थी.
पराग ने गुस्से से शालिनी को पूछा, “तुम यहां कैसे, यहां का पता तुम्हें किस ने बताया?” शालिनी ने कहा, “बहुत दिन हुए आप मेरा फोन नहीं उठा रहे थे. आप से कुछ बहुत जरूरी बात करनी थी, इसलिए आप से मिलने आप के औफिस गई थी. वहां जा कर पता चला कि आप घर जा चुके हैं, इसलिए आप से मिलने यहां चली आई. औफिस से आप के घर का पता मिल गया. बधाई हो आप को, सुना है कंपनी आप को विदेश भेज रही है.”
शालिनी की बातों से पराग का गुस्सा और तेज हो गया था. विदेश जाने की बात वह खुद अपने परिवार को देना चाहता था. घर में सब का मुंह मीठा करवा कर वह यह खुशखबरी देगा, ऐसा सोच कर पराग औफिस से लौटते हुए मिठाई लेने चला गया था जिस के कारण उसे घर आने मे देर हो गई थी. शालिनी का इस तरीके से घर तक चले आना उसे बिलकुल पसंद नहीं आया था. वह ऐसा कर सकती है, इस बात का पराग को जरा भी अंदाजा न था.
इस से पहले कि पराग शालिनी को वहां से चले जाने के लिए कहता, पवित्रा चायनाशता ले कर आ गई थी. उस ने पराग से कहा, “अरे, आप ने शालनीजी के बारे कभी बताया नहीं कि ये आप के पुराने औफिस में आप की सहायक थीं.पराग समझ गया था कि शालिनी ने अपना यही परिचय दिया होगा. उस ने पवित्रा से कहा, “हां, कभी मौका ही नहीं मिला पर तुम ये सब छोड़ो और अपना मुंह मीठा करो.”