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समय  अपनी  गति से भाग रहा था. अवनी और मंयक युवावस्था में प्रवेश कर चुके थे. पूरे 7 वर्षों बाद पराग आज घर वापस लौट रहा था. मां और बाबूजी की खुशी का ठिकाना न था. अवनी भी अपने पिता से मिलने के लिए उतावली थी. लेकिन पवित्रा के चेहरे पर उत्साह और खुशी की जगह अनगिनत सवालों की छाप थी.

पिता के इंतजार में बैठी अवनी दरवाजे की घंटी बजते ही झट से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए भागने ही वाली थी कि पवित्रा ने उसे रोक लिया और कहा, “तुम अपने कमरे में जाओ और जब तक मैं न बुलाऊं, तुम और मंयक बाहर मत आना.” पवित्रा के इस बरताव से मां और बाबूजी को आने वाले किसी तूफान की आशंका हो रही थी. पवित्रा ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने पराग को खड़ा देख उस की आंखों में गुस्से का उबाल आ गया था, पर उस ने खुद को संभाल लिया था.

पराग ने उसे देखते ही अपनी बांहें फैला ली थीं जिसे पवित्रा ने जानबूझ कर अनदेखा कर दिया था. पवित्रा दरवाजा खोल कर अंदर आ गई थी. पराग अपना सामान ले कर अंदर आया तो मां और बाबूजी उठ खड़े हुए. इतने सालों बाद बेटे से मिलने की खुशी आंसू बन कर उन की आंखों से बह रही थी. मांबाबूजी से मिलने के बाद पराग ने पवित्रा से पूछा, “अवनी कहीं नजर नहीं आ रही, तुम ने उसे बताया नहीं कि मैं आज आने वाला हूं. कहां चली गई वह?”

पवित्रा ने कहा, “वह अपने कमरे में है.” पराग अवनी से मिलने के लिए उस के कमरे की ओर बढ़ा ही था कि  पवित्रा ने उस से कहा, “रुक जाइए, पहले मुझे आप से कुछ बात करनी है.” पराग ने कहा, “ऐसी कौन सी जरूरी बात है जिस के लिए तुम मुझे अपनी बेटी से मिलने से रोक रही हो?’

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