‘‘कमल मेरे बस में नहीं है दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी.
‘‘देख चांदनी, तुझे अपने कमल को इस दलदल से खींच कर लाना होगा. मैं तेरा साथ दूंगी. अच्छा, सुन तुझे कुसुम की याद है न,’’ सूरजा बोली.
‘‘हां, सुना है. उस की भी शादी यहीं चौक में हुई है रमन के साथ. काफी बड़ा आदमी है.’’
‘‘सुन चांदनी, आज रात तुम दोनों को कुसुम के यहां आना है, समझीं और देख मैं जैसा कहूं वैसा ही करना,’’ इस के बाद देर तक सूरजा ने चांदनी को समझाया.
उस के जाने के बाद चांदनी ने एक लंबी सांस ली. आंखें आने वाली विजय के प्रति आश्वस्त हो चमक उठी थीं और वह कमल की प्रतीक्षा करने लगी.
शाम को 4 बजे जब कमल घर आया तो उस का चेहरा खिला हुआ था. आते ही उस ने चांदनी का चेहरा चूमा और बोला, ‘‘क्या बात है, मेरी चांदनी उदास क्यों है?’’
चांदनी कुछ बोल नहीं पाई. उस की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी.
‘‘चांदनी, ओ चांदनी,’’ कमल ने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया था, ‘‘क्या बात है, बोलो न, वर्ष भर में तो यह त्योहार आता है और तू मुंह लटकाए बैठी है.’’
‘‘एक बात पूछूं, सचसच बताइएगा,’’ चांदनी ने अपने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘आज आप का दफ्तर बंद था न,’’ कमल का चेहरा मुरझा गया, ‘‘वह... चांदनी...’’
‘‘मैं जानती हूं, आज फिर दोस्तों के साथ बैठे थे न.’’
‘‘चांदनी, तुम तो जानती हो दीवाली के दिन हैं, ऐसे में दोस्त जब घसीट कर ले जाते हैं तो इनकार नहीं कर सकते,’’ कमल बोला.
‘‘जिंदगी इतनी कमजोर नहीं कमल, और दीवाली के दिन की खुशी जुआ ही नहीं है. सोचो कमल, साल में एक बार आने वाला यह त्योहार सब के लिए खुशियों के दीप जलाता है और तुम्हारी चांदनी दुख के गहरे काले अंधेरे में पड़ी सिसकती रहती है. तुम्हें उस पर जरा भी दया नहीं आती. बोलो, क्या अपनी चांदनी के लिए भी तुम यह जुएबाजी बंद नहीं कर सकते?’’
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