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‘‘अत्याचार? कैसा अत्याचार? ऐसा तो कुछ भी नहीं लिखा? वह यहां हर तरह से खुश थी, सभी प्रकार के ऐशोआराम व वैभव उपलब्ध थे उसे. फिर तरुण तो उसे हथेली पर रखता था. अत्याचार कौन करता?’’

मेरी बात बीच में ही काट कर तरुण का बूढ़ा नौकर बोल उठा, ‘‘हम भी तो इन से यही कह रहे हैं कि पल्लवी बिटिया इस घर में पूरी तरह से सुखी थीं. पूरे घर में उन्हीं का हुक्म चलता था. घर में उन के अतिरिक्त रहता ही कौन था? तरुण सुबह 9 बजे तक उलटासीधा नाश्ता कर के अपनी फैक्टरी पर चले जाते और मालिकमालकिन दुकान पर.’’

‘‘चुप रहो,’’ भैया ने नौकर को डांट दिया और मेरी तरफ क्रोध से आंखें तरेरीं, जैसे मैं ने नौकर के सामने सचाई बखान कर के बहुत बड़ा जुल्म कर डाला हो.

‘‘तुम बाहर जा कर बैठो, हमारी बातों में दखल मत दो,’’ तभी मां ने नौकर को जाने का इशारा किया. वह उठ कर बाहर निकल गया.

भैया इस प्रकार मुझे समझाने लगे जैसे मैं बहुत छोटी नासमझ बच्ची हूं, ‘‘देखो श्वेता, हमें इस वक्त अपना केस मजबूत करना है तभी हम इन लोगों को सख्त सजा दिलवाने में सफल हो पाएंगे. इन का क्या है, ये तो पुलिस को रुपया भर कर छूट जाएंगे पर हमारी तो जगहंसाई हो जाएगी. लोग हमारे ऊपर व्यंग्य कसेंगे कि हम कायर थे, लड़की की मौत का बदला नहीं ले पाए. इन लोगों के दबदबे में डर कर खामोश बैठ गए.’’

‘‘मैं अपनी बेटी की मौत का बदला अवश्य लूंगी,’’ मां छाती ठोंक कर कठोरता से कह उठीं, ‘‘मैं भरी अदालत में जज के सामने खड़ी हो कर चिल्लाचिल्ला कर कहूंगी कि मेरी बेटी रोरो कर मुझे फोन करती थी. उस के ससुराल वाले उस पर सैकड़ों प्रकार के जुल्म ढा रहे थे. उसे भूखा रखा जाता था, ढेर सारा काम कराया जाता था. मायके से दहेज लाने के लिए विवश किया जाता था…’’

भैया ने मां की बात बीच में ही काट दी, ‘‘मां, तुम जोश में होश खो रही हो, ऐसी उलटीसीधी बातें करने से तो हमारा मामला ही गड़बड़ा जाएगा. भूखा रखने और ढेर सारा काम कराने की बात जम नहीं पाएगी. उन का वकील हमारे इस मुद्दे को तिनके की भांति तोड़ कर रख देगा. सभी जानते हैं इस घर में खाने की कमी नहीं है. रसोई की अलमारियां, फ्रिज वगैरह खाद्यान्नों से ठसाठस भरे रहते हैं. दुबलीपतली पल्लवी विवाह के 6 महीने बाद ही फूल कर काफी मोटी हो चुकी थी. रही बात घर का काम करने की, सो भोजन बनाने वाली महाराजिन, बच्ची को खिलाने वाला और घर की पहरेदारी करने वाला यह बूढ़ा नौकर और झाड़ूपोंछा लगाने व बाजार से सामान लाने वाला पहाड़ी छोकरा क्या घास छीलने के लिए घर में रह रहे थे.’’

मां सिटपिटा कर चुप बैठ गईं. भाभी ने अपना सुझाव पेश किया, ‘‘मैं लोगों से कहूंगी कि पल्लवी दीदी अकसर मेरे पास बैठ कर अपने पति की चरित्रहीनता का दुखड़ा रोया करती थीं. कहती थीं, तरुण के कई लड़कियों के साथ अनैतिक संबंध थे.’’

‘‘परंतु उन लड़कियों को लाओगी कहां से? वकील और जज तो पूरे सुबूत मांगेंगे. लड़कियों को कोर्ट में पेश करने को कहेंगे. फिर तुम्हारा झूठ क्षणभर में शीशों के टुकड़ों की भांति छिन्नभिन्न हो कर बिखर जाएगा,’’ भैया ने कहा तो भाभी का मुंह लटक गया, मां और पिताजी ने हाथों पर सिर थाम लिए.

फिर मां के मुंह से कराह जैसा स्वर निकला, ‘‘मेरी बेटी बड़ी भली थी. उस ने कभी अपने ससुराल वालों की बुराई नहीं की. किसी भी पत्र में कोई ऐसीवैसी बात नहीं लिखी.’’

‘‘मां, चुप भी करो, दीवारों के भी कान होते हैं,’’ भैया झुंझला उठे, ‘‘इस वक्त हमें ऐसी कोई बात नहीं कहनी है जो पल्लवी के सासससुर, पति के पक्ष में हो. मुझे पल्लवी की नासमझी पर क्रोध आ रहा है. चार बरतन होते हैं तो खटका भी करते हैं. कौन विश्वास कर सकता है कि 2 वर्ष के वैवाहिक जीवन में उस का अपने सासससुर या पति से झगड़ा न हुआ होगा. पर उस ने पत्रों में वह सब लिखा क्यों नहीं? उस का लिखा हुआ पत्र हमारे लिए सब से बड़ा सुबूत होता. फिर कानून के सभी पहलू हमारे पक्ष में होते.’’

‘‘तब क्या मेरी बेटी के हत्यारे, निर्दोष छूट जाएंगे?’’ पिताजी के स्वर में निराशा झलक उठी.

‘‘मेरे रहते ऐसा नहीं हो सकेगा. मैं इन लोगों से गिनगिन कर बदला लूंगा. मेरा सुबूत पक्का है. मैं पुलिस वालों से कह चुका हूं कि तरुण ने हम लोगों से मोटरगाड़ी की मांग की थी. हम देने में असमर्थ थे इसलिए उस ने क्रोध में भभक कर पल्लवी को जला कर मार डाला.’’

‘‘ठीक है, तुम जैसा उचित समझो करना, हम सब तुम्हारी हां में हां मिलाते जाएंगे,’’ पिताजी बोले. उन्हें अपने

बेटे के साहस व कर्मठता पर पूरा विश्वास था.

तभी मेरी गोद में दुबकी नूरी भूख से व्याकुल हो कर रोने लगी. उस के लिए दूध की आवश्यकता थी. मैं नूरी को गोद में लिएलिए ही रसोईघर की ओर बढ़ गई. वह बूढ़ा नौकर वहीं दीवार से चिपका कमरे की ओर कान लगाए खड़ा था.

मुझे देख कर वह मेरी ओर लपक आया, ‘‘बेटी, मैं सच कहता हूं, बहूरानी की मौत के लिए कोई दोषी नहीं है. इस घर के लोग तो बिलकुल देवता हैं, वह तो दुर्घटना थी. बहूरानी अपनी गलती से जल गई थीं, वे बिटिया के लिए दूध गरम कर रही थीं, तभी…’’

‘‘मैं जानती हूं, काका, पर मांपिताजी, भैयाभाभी को कैसे समझाऊं? सभी तो आक्रोश से भरे बैठे हैं.’’

‘‘लाओ, बच्ची को मुझे दे दो, तुम बहुत देर से लिए बैठी हो, थक गई होगी.’’

‘‘नहीं, रहने दो, इसे गोद में लेना मुझे अच्छा लग रहा है,’’ मैं नूरी को लिएलिए ही दूध गरम करने लगी.

तभी मुझे अपने पीछे किसी के खड़े होने का आभास हुआ, देखा भाभी थीं जो शायद चाय बनाने के लिए रसोई में आई थीं.

वह मेरा व नौकर का वार्त्तालाप सुन चुकी थीं, इसलिए झुंझला कर नौकर को झिड़कने लगीं, ‘‘तुम अभी तक सोए नहीं? अपने कमरे में जाओ या बाहर बैठ कर घर की पहरेदारी करो. हमारी बातों से तुम्हें क्या लेनादेना है? हम जो चाहें करें.’’

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